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आर्थिक सुधार@30 : आगे की राह

24 जुलाई 1991, इसे भारत की आर्थिक आज़ादी का दिन कहा जाए तो ग़लत न होगा. तीस साल पहले 24 जुलाई को पेश किए गए बजट ने भारत में एक नई खुली हुई अर्थव्यवस्था की नींव रखी…जिसे आर्थिक उदारीकरण या आर्थिक सुधार कहा गया…ये कदम जरूरी था…भुगतान संतुलन की गंभीर समस्या ने वर्ष 1991 में आर्थिक संकट को जन्म दिया… 90 का वो दशक …जब देश की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय स्थिति में पहुंच गई थी… देश में विदेशी मुद्रा भंडार रसातल में चला गया था…और मात्र 15 दिनों के आयात कने लायक राशि बची थी… तब देश को सोना गिरवी रखकर विदेशी मुद्रा की व्यवस्था करनी पड़ी थी…जब देशकी अर्थव्यवस्था कराह रही थी..तब उसपर आर्थिक सुधारों का मरहम लगाया गया…भारत की व्यापक आर्थिक बैलेंस शीट को सुधारने के लिये और स की गति को बढ़ाने के लिये बहुआयामी सुधार एजेंडा शुरू किया….औऱ आर्थिक उदारीकरण की बयार चल पड़ी…लाइसेंस परमिट राज के उलट खुली अर्थव्यवस्था में निजी कंपनियों की आज़ादी… निजी उद्योंगो का प्रोत्साहन… सरकारी निवेश कम करने, खुले मार्केट को बढ़ावा देने का फ़ैसला किया गया…नीजि बैंकों की शुरुआत, दूरसंचार क्रांति, हवाई सेवा का विस्तार, विदेशी पूंजी निवेश की शुरुआत सहित आर्थिक और बैंकिंग क्षेत्रों में कई तरह के सुधार कार्यक्रम लागू किए गए…1991 के आर्थिक सुधार भारत के स्वतंत्रता के बाद के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था जिसने अर्थव्यवस्था की प्रकृति को मौलिक तरीकों से बदल दिया… बीते तीन दशकों में, सभी सरकारों ने देश को 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की लीग में ले जाने के लिए इस रास्ते का अनुसरण किया है…बीते 3 दशकों में भारत ने जबदस्त आर्थिक प्रगति की है…

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