News & Events
इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1. भविष्य की प्राथमिकताएं
एक आईने की तरह विधायक प्राथमिक योजनाओं को पढ़ा जाए तो विधानसभा क्षेत्रों के नेतृत्व, विजन और भविष्य की परिकल्पना सामने आती है। विकास की जरूरतों में विधायकों के पास वार्षिक बजट की सियाही कितनी काम आती है, इसका एक अंदाजा हम लगातार हो रही बैठकों से लगा सकते हैं। वार्षिक योजनाओं के आकार में पिछले तीन वर्ष का लेखा-जोखा रखते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर 2382 करोड़ का हिसाब देते हैं, जिसके तहत 639 विधायक प्राथमिक योजनाएं सामने आती हैं। इनमें प्रमुखता से देखें तो सड़क व पुलों का निर्माण तथा पेयजल व विद्युत आपूर्ति परियोजनाओं का शृंगार होता नजर आएगा। ऐसे में व्यापक बदलाव की जरूरत है ताकि भविष्य के इरादे न केवल चिन्हित हों, बल्कि भविष्य के पथ पर दिखाई भी दें। बजट आबंटन की रूपरेखा में विधानसभा क्षेत्रों के प्रति सरकार की राजनीतिक प्राथमिकताएं अकसर मनमानी करती हैं और इसी परिप्रेक्ष्य में राज्य के लाभार्थी क्षेत्र भी बदल जाते हैं। होना यह चाहिए कि बजट यह बताए कि हर विधानसभा क्षेत्र में राज्य के लक्ष्य किस तरह निर्धारित होंगे। प्रदेश की 68 विधानसभा क्षेत्रों की संयुक्त महत्त्वाकांक्षी परिकल्पना का प्रतिनिधित्व करती योजनाओं का खुलासा करते कार्यक्रम व नीतियां बनें, तो राज्य की प्राथमिकताएं भी सामने आएंगी।
विधायकों की प्राथमिक योजनाओं को राज्य की प्राथमिक योजना में किस तरह निरुपित किया जाए, यह अपने आप में पारदर्शी लक्ष्य होना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर रेणुकाजी के विधायक विनय कुमार धार्मिक पर्यटन या चिंतपूर्णी के विधायक बलवीर सिंह मंदिर सौंदर्यीकरण पर तवज्जो चाहते हैं, तो हर साल के खाके में ऐसे विषयों की प्राथमिकता का असर दिखना चाहिए। विधायक प्राथमिक योजना बैठकों में कुसुम्पटी, चौपाल, हमीरपुर व धर्मशाला के विधायकों ने बस स्टैंड परियोजनाओं को रेखांकित करती मांगों को आगे बढ़ाया है, तो यह राज्य की प्राथमिकता होनी चाहिए। जरूरी नहीं कि सारी परियोजनाएं सरकारी क्षेत्र ही पूरा करे, बल्कि ऐसे निवेश के लिए निजी क्षेत्र के साथ आगे बढ़ना होगा। प्रदेश में कम से कम सौ छोटे-बड़े बस स्टैंड का खाका बनाकर निजी निवेश को आगे बढ़ाया जाए, तो क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। दरअसल विधायकों के साथ निजी निवेश की प्राथमिक परियोजनाओं और मनरेगा की भूमिका पर भी चर्चा होनी चाहिए। हर विधानसभा क्षेत्र में निजी निवेश का माहौल पैदा करने के लिए विधायक भी सोचें, तो आगामी कुछ सालोें में स्वरोजगार का ढांचा पैदा होगा। चंबा के विधायक पवन नैयर व भरमौर के विधायक जिया लाल अगर रज्जु मार्ग जैसी परियोजनाओं को अपने क्षेत्र की प्राथमिकता बना रहे हैं, तो इसके लिए निजी निवेश अनिवार्य है। इसी तरह सोलन के विधायक अगर पार्किंग की माकूल सुविधा मांग रहे हैं, तो यह अब गांव-देहात की प्राथमिकता भी है। कमोबेश हर छोटे-बड़े कस्बे में पार्किंग, पार्क और सामुदायिक मैदानों की आवश्यकता है।
सरकार को इस लिहाज से नीतिगत फैसला लेते हुए वनभूमि का आबंटन करवाना होगा। हर गांव को वनभूमि से कम से कम बीस कनाल क्षेत्र चाहिए, तो शहर को अपना माकूल भूमि बैंक बनाना होगा। सोलन, मंडी या हमीरपुर जैसे शहर को खुले स्थानों की जरूरत है और यह लैंड बैंक बनाए बिना संभव नहीं होगा। विडंबना यह है कि स्वयं मुख्यमंत्री मान चुके हैं कि छह सौ परियोजनाओं के लिए वनभूमि की हां का इंतजार है। प्राथमिक योजनाओं में विधायक राज्य के परिप्रेक्ष्य में क्या सोचते हैं, इसका एक उदाहरण नादौन के विधायक सुखविंदर सुक्खू बनते हैं, जब वह हर जिला मुख्यालय में हेलिपोर्ट की मांग करते हैं। इसी तरह हर विधानसभा क्षेत्र में ऑडिटोरियम, पर्यटन गांव या हाई-वे टूरिज्म, मनोरंजन पार्क, बस स्टैंड, कूड़ा-कचरा प्रबंधन, स्वरोजगार अधोसंरचना, आधुनिक बाजार, खेल स्टेडियम, पार्क और पार्किंग का निर्माण अगर प्राथमिक के आधार पर हो तो प्रदेश की सूरत और सीरत बदल जाएगी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जिला स्तर पर योजना बैठकों की शुरुआत करने का नेक मन बनाया है और अगर इसके तहत जमीनी जरूरतों का मुआयना तथा वित्तीय आबंटन हो तो अवश्य ही विकास के मायने सार्थक होंगे। प्रदेश के विधायकों की प्राथमिकताओं में कला, संस्कृति तथा खेलों के प्रति अकाल दिखाई देता है अतः सरकार को अपने तौर पर इन क्षेत्रों के संरक्षण, विस्तार और जनरुचि का संचार करते हुए प्रयत्न करने होंगे।
2.‘भारत-रत्नों’ की जांच!
लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर को भारत या एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया जानती-पहचानती और उनका सम्मान करती है। दोनों ही महान हस्तियों को भारत सरकार ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से नवाजा है। यकीनन यह अप्रतिम उपलब्धि और मान्यता है। लता दीदी ने 20 भाषाओं में करीब 30,000 गाने गाए हैं। उन्हें 1974 में ही ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज किया गया और सम्मानित भी किया। एक और महान तथा अभूतपूर्व उपलब्धि…! लता जी एक संपादकीय आलेख का विषय नहीं हैं। वह एक किताब नहीं, महाकाव्य की रूपक हैं। सिर्फ एक प्रसंग ही उनकी शख्सियत को सत्यापित करता है। 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद लता जी ने एक गीत गाया था-‘ऐ मेरे वतन के लोगो! जरा आंख में भर लो पानी…।’ उस समारोह में देश के प्रथम और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी मौजूद थे। गीत सुनकर उनकी आंखें भी छलक उठीं। वह समारोह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है।
लताजी के अलावा ‘शतकों के शतकवीर’ सचिन तेंदुलकर का उल्लेख करते हैं, जिनके नाम क्रिकेट में बल्लेबाजी के तमाम बड़े कीर्तिमान दर्ज हैं। एक ही खेल में, जीवन की छोटी-सी उम्र में, 100 महान शतक…! अभूतपूर्व, अतुलनीय, अकल्पनीय कीर्तिमान..! गौरतलब यह है कि उन्हें ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार को संविधान में संशोधन करना पड़ा था। उससे पहले खेल में ‘भारत-रत्न’ देने का नियम नहीं था। उसी सरकार ने सचिन को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था। दुर्भाग्य और विडंबना है कि उसी कांग्रेस के एक अनाम कार्यकर्ता की शिकायत पर ‘भारत-रत्नों’ के अलावा कुछ और महान, लोकप्रिय हस्तियों के खिलाफ भी जांच बिठाई गई है। यह हरकत महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने की है, जो खुद एक फर्जी और गैर-जनादेशीय सरकार है। बेशक सरकार को शपथ दिलाई गई है, लेकिन देश जानता है कि चुनाव के बाद महाराष्ट्र का जनादेश क्या था? बहरहाल लता मंगेशकर, सचिन तेंदुलकर, अक्षय कुमार, अजय देवगन, विराट कोहली और साइना नेहवाल आदि के खिलाफ जांच शुरू की गई है, क्योंकि उन्होंने भारत के खिलाफ ट्वीट करने वाले विदेशी चेहरों को मुंहतोड़ जवाब दिया था। उन सभी महान भारतीय हस्तियों ने सार-रूप में भारत की संप्रभुता, एकता, अखंडता की बात करते हुए ‘भारतीय’ होने का गौरवमय दायित्व निभाया था। हमने उनके ट्वीट देखे हैं और उनकी भाषा, भावना और पीड़ा को भी समझने की कोशिश की है। बेशक ये सभी भारतीय हस्तियां ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में जो असीमित सफलताएं हासिल की हैं, उपलब्धियों के जो शिलालेख लिखे हैं, उनके मद्देनजर वे हमारे लिए ‘भारत-रत्न’ ही हैं। पॉप गायिका रिहाना, पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा और पॉर्न स्टार मिया खलीफा आदि विदेशियों के हमारे राष्ट्रीय, आंतरिक मामलों में दखल के पलटजवाब क्यों नहीं देने चाहिए थे?
यह करके इन ‘भारत-रत्नों’ ने क्या अपराध किया है? कौन-सी आपराधिक साजि़श की है? यदि भारत सरकार के पक्ष में उनके बयान ध्वनित हुए हैं, तो वह कौन-सा अपराध है? महाराष्ट्र भी तो भारत का ही एक राज्य है। यदि सभी पक्षों ने, जिसमें विदेश मंत्रालय भी शामिल है, भारत की संप्रभुता और एकजुटता की बात कही है, तो ठाकरे सरकार किन तथ्यों की खुफिया जांच कराएगी और उस जांच का हासिल क्या होगा? क्या ठाकरे सरकार यह जांच कराने का दुस्साहस कर सकती है कि कहीं मोदी सरकार के दबाव में तो इन हस्तियों ने ट्वीट नहीं किए? क्या इस उम्र और उपलब्धियों के मुकाम हासिल करने वाली इन हस्तियों पर कोई दबाव भी दे सकता है और दबाव में कुछ भी लिखवाया जा सकता है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ठाकरे सरकार की व्याख्या को भी संविधान में शामिल कर लिया जाए, यह हमारा विनम्र सुझाव है। सवाल यह भी है कि जांच का निष्कर्ष क्या होगा? क्या जांच के बाद इन ‘भारत-रत्नों’ को सजा भी सुनाई जा सकती है? अब लगता है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी भी ‘परजीवियों’ को है, देश की महान हस्तियों को नहीं है। इस दुस्साहस का फलितार्थ भी कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा। हम तो इतना ही कह सकते हैं- वतन के लिए बोलने वालों का, यही बाकी निशां होगा।
- मनमानी के खिलाफ
भारत सरकार के निर्देश के बावजूद किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की मनमानी या बहानेबाजी चिंता और विचार की बात है। सरकार और ट्विटर के बीच फिर एक बार ठन गई है। 26 जनवरी को लाल किले और दिल्ली में हिंसा के खिलाफ कदम उठाते हुए भारत सरकार ने सैकड़ों ट्विटर हैंडल पर रोक लगाने का निर्देश दिया था, पर ट्विटर ने निर्देश की पूरी पालना से इनकार कर दिया है। ट्विटर के अनुसार, ये विवादित ट्विटर हैंडल भारत में नहीं, पर दुनिया के दूसरे देशों में यथावत देखे जाएंगे। सरकार चाहती थी कि जिन ट्विटर हैंडल का उपयोग हिंसा भड़काने के लिए किया गया है, उन्हें पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाए। ट्विटर ने भारत सरकार के कानून का ही हवाला देते हुए ऐसे प्रतिबंध लगाने से मना कर दिया है। इतना ही नहीं, उसने अपने ब्लॉग पर भारत सरकार को अभिव्यक्ति की आजादी का पाठ भी पढ़ा दिया है। ट्विटर की यह मनमानी किसी अन्य ताकतवर देश में शायद ही संभव है। उसके अधिकारियों की सरकार से वार्ता होनी थी, पर उसके पहले ही अपने विचार पेश करके उसने आग में घी डालने का काम किया है।
भारत सरकार ने ट्विटर की सफाई या बहानेबाजी पर उचित ही नाराजगी का इजहार किया है। सवाल यह है कि ट्विटर ज्यादा सशक्त है या भारत सरकार? क्या ट्विटर सरकार के आदेश-निर्देश से ऊपर है? सरकार आने वाले दिनों में कदम उठा सकती है, जिससे ट्विटर की परेशानी बढे़गी। गौर करने की बात है कि भारत सरकार के मंत्री ने ‘कू’ नामक भारत निर्मित एप पर ट्विटर को शुरुआती जवाब दिया है। अनेक मंत्री और मंत्रालय भी कू के प्लेटफॉर्म पर जाने लगे हैं। मतलब साफ है, ट्विटर से भारत सरकार की निराशा का दौर आगे बढ़ चला है। यह किसी भी सोशल प्लेटफॉर्म की मनमानी रोकने का एक तरीका हो सकता है, पर ट्विटर की भारत में जो पहुंच है, उसे जल्दी सीमित करना आसान नहीं होगा। दूसरी ओर, ट्विटर को बेहतर जवाब के साथ अपना बचाव करना चाहिए। भारत एक बड़ा लोकतंत्र ही नहीं, बड़ा बाजार भी है। यहां सोशल प्लेटफॉर्म चलाने वाली कंपनियों को ज्यादा संवेदनशील रहने की जरूरत है। कहीं ऐसा न हो कि ये कंपनियां भारत सरकार के आदेशों को ही मानने से इनकार करने लगें। जो ट्विटर हैंडल दिल्ली में हिंसा भड़काने में लगे थे, उनके खिलाफ कुछ कार्रवाई की गई, पर कुछ घंटों के बाद कई हैंडल बहाल कर दिए गए। केंद्र सरकार ने ट्विटर से कार्रवाई करने को फिर कहा, बल्कि उसके खिलाफ दंडात्मक उपायों की चेतावनी भी दी। इसके बावजूद अगर ट्विटर के पास कोई ठोस तर्क है, तो उसे सरकार के साथ बैठकर विवाद को सुलझाना चाहिए। लेकिन अपना जवाब ब्लॉग के जरिए देकर ट्विटर ने विवाद को बढ़ा दिया है। सरकार को भी अपनी गरिमा का ध्यान रखना होगा। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कुछेक ट्वीट के आधार पर मीडिया संस्थानों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई को अंजाम दिया जाए। सोशल मीडिया पर हिंसा भड़काने की किसी भी साजिश को माकूल जवाब मिलना चाहिए, लेकिन प्रतिकूल या आलोचनात्मक टिप्पणियों को बाधित करना भी कतई ठीक नहीं है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोकतांत्रिक शालीनता और सहिष्णुता सुनिश्चित रहनी चाहिए।
4.रिश्तों की नयी इबारत
लोकतांत्रिक मूल्यों व सामरिक रिश्तों को तरजीह
अमेरिका जैसे विश्व के सबसे शक्तिशाली मुल्क का मुखिया यदि कोरोना संकट के बीच सत्ता संभालने के बाद किसी देश से संवाद स्थापित करता है तो उस देश के सामरिक व कूटनीतिक महत्व का पता चलता है। हालांकि, इससे पहले अमेरिका के रक्षा सचिव व भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, विदेश मंत्री टोनी ब्लिन्केन व उनके भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर के बीच बातचीत हो चुकी थी लेकिन नवनियुक्त अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच टेलीफोनिक बातचीत दोनों देशों के संबंधों के महत्व को दर्शाती है। दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखियाओं ने जिन दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की, उनमें जलवायु परिवर्तन और स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र शामिल हैं। निस्संदेह हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे पारंपरिक अमेरिकी सहयोगियों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। दरअसल, हाल के वर्षों में गाहे-बगाहे ये देश चीन की साम्राज्यवादी नीतियों से जूझते रहे हैं। लगता है कि बाइडेन काल में भारत-अमेरिकी संबंधों को व्यापकता मिलेगी। व्यापारिक रिश्तों के साथ कूटनीतिक व सामरिक रिश्तों को तरजीह दी जायेगी, जिसके केंद्र में चीनी साम्राज्यवाद की चुनौती से निपटना है। दोनों ही देश जलवायु परिवर्तन और कोविड संकट के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में एक बड़ी भूमिका निभाएंगे। अमेरिकी महत्वाकांक्षाओं का क्वाड समूह एक अनौपचारिक समूह है जो चीनी निरंकुशता पर अंकुश लगाने की कवायद का हिस्सा है। जरूरी है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य गतिविधियों के अलावा राजनीतिक व वाणिज्यिक गतिविधियों को गति मिले। दोनों ही राष्ट्र प्रमुखों ने आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ाई लड़ने को लेकर भी प्रतिबद्धता जतायी है। हालांकि, इस मुद्दे पर पाकिस्तान व अफगानिस्तान की अमेरिकी नीति को लेकर कई विसंगतियां भी सामने आ सकती हैं लेकिन एक बात तो तय है कि यह मुद्दा अमेरिका की नयी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल रहेगा।
अमेरिका के नये निजाम और भारत के संबंधों में कई ऐसे घटक भी हैं, जिनको लेकर मतभेद सामने आ सकते हैं। दरअसल, डेमोक्रेट मानवाधिकारों व स्वतंत्रता के मुद्दे को खासी प्राथमिकता देते हैं। विगत में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और सीएए को लेकर पार्टी की तरफ से तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई थी जो राजग सरकार की प्राथमिकताओं से मेल नहीं खाती। हालिया किसान आंदोलन को लेकर भी कुछ डेमोक्रेटों की नजर टेढ़ी रही है। कृषि सुधारों का अमेरिका ने स्वागत तो किया है लेकिन शांतिपूर्ण आंदोलन को लेकर संवेदनशीलता की वकालत भी की है। बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से उदारवादी पहल होती नजर आए। हाल ही में इस केंद्रशासित प्रदेश में इंटरनेट की 4-जी सेवा का बहाल होना इसी दिशा में एक कदम हो सकता है। हालांकि, किसान आंदोलन को लेकर भारतीय दक्षिणपंथियों की प्रतिक्रिया को अमेरिका में अच्छे नजरिये से नहीं देखा जाता। यही वजह है कि अमेरिकी सरकार ने हालिया आंदोलनों के बाबत लोकतांत्रिक संस्थाओं और मानदंडों की रक्षा की जरूरत पर बल दिया था। इसके बावजूद अमेरिका को क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिये भारत की एक कूटनीतिक व सामरिक साझेदार के रूप में सदा जरूरत रहेगी जो भारत व अमेरिका के बेहतर संबंधों की बुनियाद रखेगा। यही वजह है कि बुधवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि अमेरिका भारत के अग्रणी विश्व शक्ति के रूप में उभरने का स्वागत करता है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करने में सहायक होगा। साथ ही दोनों देशों की सामरिक भागीदारी को व्यापक व बहुआयामी बताया जो आने वाले दिनों में और गहरी होगी। साथ ही भारत के अगले दो साल के लिये सुरक्षा परिषद में शामिल होने का भी स्वागत किया गया है। यह भी कि भारत अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहेगा। साथ ही भारत से एक दिल का रिश्ता उन चालीस लाख भारतीय-अमेरिकियों के जरिये बताया जो अमेरिका के विकास में भूमिका निभा रहे हैं।