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इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.खेल नीति के इंतजार में
खेल नीति के इंतजार में मैदान पछाड़ रहे खिलाड़ी, कोच और खेल प्रोफेशनल के लिए पूर्व मंत्री एवं विधायक रामलाल ठाकुर का बयान रौंगटे खड़े कर देता है। पूर्व खेल मंत्री के अनुसार खेल विभाग की संगत में पलते सपनों को जमीन पर उतारने का संकल्प दिखाई नहीं देता और ऐसे में विभागीय कसौटियां केवल सरकारी दरी बिछाने तक ही रह गई हैं। पूर्व मंत्री गिनवाते हैं कि जिस प्रदेश में ग्यारह जिला खेल एवं युवा सेवाएं अधिकारी पदों में से सात खाली चल रहे हों, जूनियर कोच के पचास पदों में से 44 रिक्त हों या सीनियर कोच के 13 में से 12 खाली हों, वहां खेलों के प्रति सरकार की प्राथमिकताएं स्पष्ट हो जाती हैं। तस्वीर का यह पहलू महज राजनीतिक आलोचना के कारण दफन नहीं हो सकता है, बल्कि यह तसदीक करता है कि खेल जैसे विषय में हमारा प्रदेश किस तरह अपनी भूमिका को गौण कर रहा है। जिस खेल नीति का शृंगार काफी समय से हो रहा है, उसके दर्शन कब होंगे कोई नहीं जानता। आते ही वर्तमान खेल मंत्री ने विभागीय फाइलों पर खूबसूरत हस्ताक्षर तो किए, लेकिन खेल मैदानों पर दर्ज उदासीनता की दरारें नहीं देखीं। दरअसल हिमाचल में खेल व युवा सेवाओं का अलग-अलग अस्तित्व होना चाहिए ताकि लक्ष्यों की फेहरिस्त में जवाबदेही तय हो। अगर सात जिलों में खेल अधिकारी ही नहीं होंगे, तो योजना का नेतृत्व तथा क्षेत्रीय संभावनाओं का परिदृश्य क्या होगा।
केंद्रीय योजना व बजट के तहत हर विधानसभा में खेल स्टेडियम बनाने का खाका भले ही खेल मंत्री राकेश पठानिया के लिए राजनीतिक प्रदर्शन कर दे, लेकिन मर्ज की दवा तो विभागीय कौशल में है या खेल जीवन अपनाने के प्रोत्साहन से ही युवाओं को प्रेरित किया जा सकता है। जिस खेल नीति का घंूघट हटाने की आहट है, वह अगर निर्दोष व निर्लिप्त साबित हो तो कम से कम खिलाडिय़ों के लिए भविष्य का मार्ग तो प्रशस्त होगा। धर्मशाला में राज्य एथलेटिक्स प्रतियोगिता के माध्यम से यह देखा जा सकता है कि परिणामों की मोहक छटा के बावजूद राज्य की रैंकिंग में सुधार की गुंजाइश है। बेशक खेलों की अधोसंरचना में निरंतर सुधार व वैज्ञानिक तरीके अपनाने की जरूरत है, लेकिन सर्वप्रथम प्रशिक्षण का उच्च स्तर तथा खिलाड़ी चयन की प्राथमिक शाखा खुलनी चाहिए। पंजाब ने खेलों में प्रतिभा चयन के लिए गांव स्तर तक जो प्रयोग किए हैं या मणिपुर ने अपनी भौगोलिक व पर्वतीय परिदृश्य का जिस तरह इस्तेमाल किया है, उससे सीखना होगा। हिमाचल किन खेलों में बेहतर हो सकता है, इसके लिए देश की नामी हस्तियों के साथ मिलकर अकादमियों का संचालन कर सकते हैं।
सायना नाहिवाल के साथ बैडमिंटन अकादमी एक भली शुरुआत तभी मानी जाएगी अगर राज्य से कम से कम पांच खिलाड़ी इसके तहत प्रशिक्षित हों। इसी तरह वालीबाल, फुटबाल, हाकी के अलावा एथलेटिक्स तथा जल क्रीड़ाओं पर बेहतर प्रशिक्षण तथा राष्ट्रीय अकादमियों की स्थापना से आबोहवा का फायदा उठाया जा सकता है। प्रदेश में स्नेहलता जैसे समर्पित खेल कोचों से प्ररेणा लेनी चाहिए जिन्होंने निजी तौर पर हैंडबाल प्रशिक्षण के आयाम स्थापित करते हुए हिमाचली प्रतिभाओं से ही राष्ट्रीय टीम का सूर्योदय कर दिया। इसी तरह भूपिंद्र सिंह और केहर सिंह पटियाल ने प्रशिक्षण में अपने जुनून से हिमाचल के खिलाडिय़ों का मंच ऊंचा कर दिया। ऐसे बहुत सारे जीवंत उदाहरण हैं जिन्हें खेलों का हिमाचली राजदूत बनाना होगा। खेल कानून या खेल नीति से अगर खिलाड़ी, कोच या प्रतिष्ठित खेल हस्तियां आगे आती हैं, तो ही सारे पहलू ठीक होंगे।
एक सशक्त खेल नीति सर्वप्रथम खेल संगठनों के संचालन को मौजूदा राजनीतिक वर्चस्व से मुक्ति दिला सकती है तथा खिलाडिय़ों की आजीविका का स्थायी हल भी ढंूढ सकती है। हिमाचल के बैंकिंग, कारपोरेट क्षेत्र, वन, पुलिस, विद्युत तथा शिक्षा विभाग के साथ खेल विभाग की परिधि का विस्तार संभव है। पुलिस विभाग को अपने स्तर पर विभागीय मैदानों को युवा, खेल गतिविधियों तथा प्रशिक्षण केंद्र बनाते हुए संस्थागत प्रयोग करने होंगे। उदाहरण के लिए लॉन टेनिस प्रशिक्षण व प्रतिस्पर्धा में पुलिस विभाग की अधोसंरचना से राष्ट्रीय संभावना पैदा की जा सकती है। शिक्षा विभाग पौंग झील के किनारे पर स्थित नगरोटा सूरियां कालेज को खेल क्रीड़ाओं का प्रमुख केंद्र, ऊना महाविद्यालय को हॉकी का केंद्र, धर्मशाला में लड़कियों तथा बिलासपुर में लडक़ों के खेल विंग स्थापित करके राज्य स्तरीय प्रशिक्षण को स्तरोन्नत कर सकता है। खेलों का भविष्य पैदा करने के लिए अगले कुछ सालों में राष्ट्रीय खेलों का आयोजन करते हुए एक साथ धर्मशाला, हमीरपुर, बिलासपुर, सुजानपुर, ऊना, मंडी, कुल्लू तथा पालमपुर में खेल ढांचा विकसित होगा, जबकि मुख्य आयोजन के लिए धर्मशाला पुलिस स्टेडियम का विस्तार संभव है।
2.राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी सियासत
राष्ट्रीय सुरक्षा पर सियासत नहीं की जानी चाहिए, लेकिन वही किया जा रहा है। इधर सुरक्षा से जुड़े कुछ बेहद संवेदनशील मामले सामने आए हैं। उन पर अनाप-शनाप बयान दिए जा रहे हैं। लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी तथा सरकार की आलोचना के मायने ये नहीं होते कि ऊल-जलूल कुतर्क किए जाएं। सर्वोच्च न्यायालय कई बार व्याख्या कर चुका है। बीती 14 फरवरी को पुलवामा का ‘शहादत दिवस’ भी सियासत के साथ गुजऱा। 2019 में उस दिन सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमला किया गया था, जिसमें कुल 44 जांबाज जवान ‘शहीद’ हुए थे। हमारी वायुसेना के रणबांकुरों ने 26 फरवरी को ही बदला ले लिया और पाकिस्तान की सीमा के भीतर घुसकर मिराज-2000 के 12 लड़ाकू विमानों ने बालाकोट पर हवाई मौत बरसाई। उस ऑपरेशन में करीब 300 आतंकी ढेर कर दिए गए। आतंकी अड्डों को ‘मलबा’ बना दिया गया। इसे पाकिस्तान की संसद में मंत्री फवाद चौधरी और अन्य सांसदों ने भी कबूल किया, लेकिन दुर्भाग्य और विडंबना है कि हमारे देश में कांग्रेस पार्टी के नेता आज भी इन घटनाओं पर सवाल उठा रहे हैं। यह कोई राष्ट्रीय विशेषाधिकार नहीं है।
कांग्रेसियों और विरोधियों को शहीद जवानों की अपेक्षा आतंकियों की संख्या और हवाई हमले के सबूतों में दिलचस्पी है। इसके अलावा, कुछ दिन पहले 9-10 माह के घोर तनाव के बाद भारत-चीन में समझौता हुआ और एलएसी पर सेनाओं की वापसी, बख्तरबंद वाहनों, टैंकों का लौटना शुरू हुआ, लेकिन कांग्रेस ने कैलाश रेंज, देपसांग, गलवान और गोगरा आदि रणनीतिक इलाकों में भारतीय सैनिकों के पीछे हटने पर सवाल किए कि एलएसी पर इतना क्षेत्र भारत ने चीन को क्यों सौंप दिया? सवाल ठीक भी हो सकते हैं, लेकिन यह विमर्श सार्वजनिक नहीं किया जा सकता और न ही भारत को दोफाड़ दिखाया जा सकता है। दरअसल बयान उन नेताओं के जरिए सार्वजनिक हुए हैं, जिन्होंने कभी सीमाई क्षेत्र और युद्ध की बेहद तनावग्रस्त मोर्चेबंदी नहीं देखी है। वे किसी भी सैन्य बल की बात तो छोडि़ए, एनसीसी के कैडेट भी नहीं रहे हैं। सरहदों और लद्दाख में बर्फीली चोटियों की युद्धक रणनीति का हिस्सा भी नहीं रहे हैं। लिहाजा पूर्व सेना जनरलों और रक्षा विशेषज्ञों ने फटकार लगाते हुए ऐसी जमात की बकवास को खारिज किया है। वे सेना-वापसी को रणनीतिक फैसला करार देते हैं। अपने लंबे सैन्य अनुभवों से उनका दावा है कि हमारे सैनिक बेहद सतर्क हैं। यदि दुश्मन की कोई संदेहास्पद चाल देखी, तो वे दूर नहीं हैं, तुरंत पलटवार करने की स्थिति में हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बहुत ज्यादा समय तक सेनाएं आमने-सामने रहेंगी, तो युद्ध अपरिहार्य है। युद्ध कभी भी, किसी भी देश के हित में नहीं होता। चीन भी हमारे बर्फीले और पहाड़ी इलाके में युद्ध नहीं चाहता, अब यह भी स्पष्ट हो रहा है। सवाल यह है कि हमें इतना भी विश्लेषण क्यों करना पड़े? संविधान ने सरकार बनाई है, तो उसके अधिकार और दायित्व भी तय किए हैं।
सैन्य रणनीति बनाने में सेना प्रमुख, कमांडर, विदेश नीति से जुड़े राजनयिक, खुफिया एजेंसियों के चीफ और राजनीतिक नेतृत्व के तौर पर प्रधानमंत्री तथा रक्षा मंत्री आदि सम्मिलित होते हैं। देश और समूची सेना उनके निर्णय का स्वागत और अनुसरण करते हैं। तो फिर राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे बेहद नाजुक मसले पर भी सियासत क्यों होनी चाहिए? उसके हासिल क्या होंगे? सिर्फ दुश्मन हमारी रणनीति पर अट्टहास कर सकता है अथवा रणनीति के छिद्रों के सुराग हासिल कर सकता है! सुरक्षा को लेकर नुक्ताचीनी के मद्देनजर ही आतंकी अपनी साजि़शें रचते हैं। पुलवामा की दूसरी बरसी पर ही जम्मू क्षेत्र दहलने से बाल-बाल बच गया। पाकपरस्त आतंकी संगठन अल बद्र ने करीब 6.5 किलोग्राम विस्फोटक जम्मू बस अड्डे तक पहुंचा दिया था। बेशक बड़ी अनहोनी हो सकती थी। चार आतंकी गिरफ्तार किए गए हैं। बीते वर्ष 2020 में करीब 250 आतंकी हमले भारत ने झेले हैं। उनमें 62 जवान ‘शहीद’ हुए और 37 नागरिक भी मारे गए। इन आंकड़ों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। यदि विपक्ष का धर्म सिर्फ सियासत और नफरती विरोध करना ही है, तो हमें कुछ नहीं कहना। वक्त और देश ही तय करेगा, लेकिन सुरक्षा समग्र देश का साझा विषय होना चाहिए।
3.तेल के भाव
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रीमियम पेट्रोल की कीमत का तीन अंकों में पहुंच जाना न केवल दुखद, बल्कि चिंताजनक भी है। आधुनिक जीवन में पेट्रोल अनिवार्यता है, यदि पेट्रोल के भाव में वृद्धि होगी, तो जाहिर है, आम आदमी का जीवन प्रभावित होगा। भोपाल में जहां पेट्रोल की कीमत 100 रुपये से ज्यादा है, वहीं मुंबई में यह 97, दिल्ली में 89, लखनऊ में 88, पटना में 91 और रांची में 87 रुपये के आस-पास है। दिलचस्प यह है कि भोपाल के कुछ पेट्रोल पंप मशीनों पर तीन अंकों की कीमत पर तेल बेचने की क्षमता भी नहीं थी। हालांकि, एमपी पेट्रोल पंप ऑनर्स एसोसिएशन ने भोपाल में प्रीमियम पेट्रोल की दर 100.04 रुपये प्रति लीटर की पुष्टि करते हुए कहा है कि सिर्फ 3-4 प्रतिशत ईंधन स्टेशन ही पुरानी मशीनों का उपयोग करते हैं और बिक्री पर असर नहीं पड़ा है। यह एक कारण है कि बढ़ती कीमतों के बावजूद बिक्री पर असर नहीं पड़ रहा है, इसलिए न तो तेल कंपनियां सोच रही हैं और न सरकार। अर्थव्यवस्था की गाड़ी तेजी से पटरी पर लौट रही है, तो जाहिर है, यातायात गतिविधियां भी निरंतर बढ़ेंगी। पेट्रोल की मांग और खपत का बढ़ना तय है, घटने का प्रश्न ही नहीं उठता। यातायात पर कोरोना का अभी बहुत असर है, लेकिन जिस दिन कोरोना का आतंक खत्म होगा, उस दिन पेट्रोल की कीमत किस ऊंचाई पर होगी, सोच लेना चाहिए। भले ही प्रीमियम पेट्रोल की बिक्री बहुत कम होती है, लेकिन इस वृद्धि से सामान्य पेट्रोल की कीमतों को निश्चित ही बल मिलेगा। तेल की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए केंद्र सरकार को तो पहल करनी चाहिए, साथ ही, राज्य सरकारों को भी कदम उठाना पड़ेगा। ध्यान रहे, 1 फरवरी को बजट के बाद से छठी बार कीमतों में बढ़ोतरी देखी गई है और 1 जनवरी से 17वीं बार। यह भी गौरतलब है कि मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा तेल कर वसूलता है और इसीलिए यहां तेल कीमतें ज्यादा हैं। मध्य प्रदेश सरकार पेट्रोल पर 39 प्रतिशत और डीजल पर 28 प्रतिशत कर वसूलती है। इसके अलावा, प्रति लीटर पेट्रोल पर 31 रुपये और प्रति लीटर डीजल पर 23 रुपये केंद्रीय कर के रूप में वसूले जाते हैं। केंद्र सरकार अगर चाहे, तो कीमतें कम हो सकती हैं, पर राज्य सरकारों के हाथों में भी बहुत कुछ है। फिर भी अभी कोई भी सरकार जनता को राहत देने के पक्ष में नहीं है। जीएसटी के मद में राज्यों में कमाई घटी है, तो केंद्र सरकार पर भी बजट को लेकर दबाव है। अनेक केंद्रीय योजनाओं के लिए धन जुटाने का सबसे आसान माध्यम पेट्रोल और डीजल ही है, जहां आदमी खर्च करने से पहले ज्यादा नहीं सोचता, लेकिन केंद्र सरकार को विशेष रूप से सोचना चाहिए। पेट्रोल-डीजल का गणित जटिल है और हमारी सरकारों को समझना चाहिए कि जटिलता दूर करने के आर्थिक लाभ हैं। आखिर मुंबई और रांची में पेट्रोल की कीमतों में 10 रुपये का अंतर क्यों रहे? क्या पूरे भारत में एक ही कीमत नहीं हो सकती? दूसरा सबसे अहम सवाल यह कि सरकार पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाकर महंगाई को कितना बढ़ाना चाहती है? इसका संदेश गलत जा रहा है। जिस दौर में लाखों लोगों की नौकरी गई है, वेतन-भत्ते घटे हैं, उस दौर में पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ाते समय कई बार सोच लेना चाहिए। आए दिन कीमतें बढ़ना किसी के लिए ठीक नहीं।
4.नापाक मंसूबे विफल
नये सिरे से सुरक्षा तैयारियों की जरूरत
दो साल पहले हुए भयावह पुलवामा हमले वाले दिन फिर बड़ी आतंकी वारदात दोहराने की साजिश का पर्दाफाश होने से देश ने राहत की सांस ली है। यदि सुरक्षा बल सतर्कता न बरतते तो एक बार फिर देश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती थी। दरअसल, सुरक्षा बलों को इस बात की भनक तो थी कि पाक पोषित आतंकवादी एक बार फिर पुलवामा की बरसी पर देश को आतंक से दहलाना चाहते हैं। लेकिन इसे सुरक्षा चूक ही माना जायेगा कि कैसे आतंकी विस्फोटक सामग्री जम्मू बस अड्डे के करीब तक ले जाने में कामयाब रहे। दरअसल, जम्मू पुलिस ने रविवार की सुबह बस स्टैंड से करीब सात किलो आईईडी समेत एक कश्मीरी युवक को गिरफ्तार किया था। यह भी चिंता की बात है कि चंडीगढ़ में पढ़ने वाले एक नर्सिंग के छात्र को कैसे मोहरा बनाया गया। उसे पाक में बैठे आकाओं ने संदेश भेजकर बताया था कि उसे कहां-कहां आईईडी प्लांट करने हैं। सात किलो आईईडी और अन्य हथियारों की बरामदगी आतंकियों के खतरनाक मंसूबों को ही उजागर करती है जो सुरक्षा बलों को अधिक चौकस होने की जरूरत बताता है। जिस सोहेल नामक छात्र को आईईडी के साथ गिरफ्तार किया गया, उसे पाक स्थित अल बदर तंजीम द्वारा आईईडी प्लांट करने के निर्देश मिल रहे थे। उसे चार भीड़भाड़ वाले इलाकों को लक्ष्य बनाने को कहा गया था और उसके बाद फ्लाइट से श्रीनगर भाग जाना था। यह भी तय था कि श्रीनगर में उसे किस संगठन से संरक्षण मिलेगा। इस साजिश में शामिल चार लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है। उम्मीद है कि इस साजिश के कुछ और राज सुरक्षा बलों को मिलेंगे। इसके साथ ही सांबा सेक्टर से 15 छोटे आईईडी और छह पिस्तौलें भी बरामद की गई हैं। दो साल पहले पाक की साजिश के चलते जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा कांड को अंजाम दिया था। विस्फोटों से लदे वाहन की सीआरपीएफ के जवानों की बस से टक्कर मार दी गई थी, जिसमें चालीस जवान शहीद हुए थे। जिसके बाद भारत ने बालाकोट में आतंकियों के ठिकाने नेस्तनाबूद करके पाक को सबक सिखाया था।
हाल के दिनों में पाक ने भारतीय सुरक्षा बलों की सतर्कता के चलते अपनी आतंकी रणनीति में बदलाव किया है। वह पंजाब में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों को मोहरा बनाकर अपने नापाक मंसूबों को अंजाम दे रहा है। वह दिल्ली समेत कई अन्य स्थलों को निशाने पर ले रहा है। पिछले दिनों खबर आई थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के कार्यालय की रेकी करके वीडियो बनाया गया, जिससे आतंकियों के खतरनाक इरादों का पता चलता है। जैश-ए-मोहम्मद के गुर्गे दिल्ली को दहलाने की फिराक में हैं। नयी जानकारी के अनुसार आतंकी संगठन बिहार से हथियार खरीद रहे हैं और पंजाब में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों को इसमें इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे इन हथियारों को कश्मीर घाटी तक पहुंचाया जा सके। कुछ आतंकी संगठनों के सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद ये तथ्य सामने आये हैं। सांबा क्षेत्र में तेरह फरवरी को गिरफ्तार कुछ आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि वे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के अनुषांगिक संगठन से जुड़े हैं। इनके कुछ सदस्य बड़ी बैंक लूट में भी शामिल रहे हैं ताकि आतंकी गतिविधियों के संचालन के लिये धन जुटाया जा सके। इसके कुछ सदस्यों ने पाक में प्रशिक्षण लेने के बाद स्थानीय स्तर पर संगठन खड़े किये हैं। इस नेटवर्क में सेंध लगाकर पुलिस ने आठ आतंकियों की पहचान करके कार्रवाई शुरू की है। कश्मीर में सख्ती के चलते ये आतंकी संगठन जम्मू को अपना गढ़ बनाने की फिराक में हैं ताकि अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे सकें। दरअसल, पाक ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए जहां ड्रोन व सुरंगों के जरिये आतंकी व हथियार भारत भेजने की रणनीति बनायी है, वहीं स्थानीय आतंकी तैयार करने की कोशिश की जा रही है। पिछले कुछ समय में जम्मू क्षेत्र में छह भूमिगत सुरंगों का पता चला है, जिनके जरिये हथियार-आतंकी भारत पहुंचते हैं।