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इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.कर्फ्यू या बंदी का विरोध
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में नाइट कर्फ्यू, आंशिक या पूर्ण तालाबंदी, की प्रस्तावना साबित हो सकता है। रात में 10 बजे से सुबह 5 बजे तक सड़कों, बाज़ारों और आवासीय इलाकों में सन्नाटा रहेगा। कुछ शर्तों और आईडी के साथ बाहर निकला जा सकता है। इस तरह करीब एक दर्जन राज्यों में नाइट कर्फ्यू या आंशिक लॉकडाउन लगाना पड़ा है। यह सिलसिला अभी जारी रहेगा। कोरोना वायरस की मौजूदा लहर ज्यादा तीव्र और घातक साबित हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अभी संक्रमण और फैलेगा और मृत्यु-दर भी बढ़ेगी। नीति आयोग के सदस्य एवं कोरोना टास्क फोर्स के प्रमुख डा. विनोद पॉल ने चेताया है कि आगामी चार सप्ताह बेहद नाजुक हैं। दरअसल यह स्थिति हमने और देश के लापरवाह, अनपढ़ और जाहिल तबके ने ही पैदा की है कि करीब 9 करोड़ लोगों को कोरोना टीके की खुराक देने के बावजूद वायरस इतना फैल रहा है कि देश में एक ही दिन में 1.20 लाख से ज्यादा संक्रमित मरीज दर्ज किए गए हैं। मौतें भी 630 हो गई हैं, जो 6 नवंबर के बाद सर्वाधिक हैं। एक ही दिन में 54,000 से अधिक सक्रिय मरीज सामने आए हैं। कुल सक्रिय मरीजों का आंकड़ा 8 लाख को पार कर चुका है।
मात्र दो ही दिन में 7 लाख से 8 लाख के पार जाने वाली संख्या सामने आई है। कोरोना की राष्ट्रीय संक्रमण दर 7 फीसदी से अधिक हो गई है। यह औसत राजधानी दिल्ली में भी 5.5 फीसदी के पार जा चुका है। यदि यह दर 5 फीसदी को लांघती है, तो उसके स्पष्ट मायने हैं कि संक्रमण और महामारी बेकाबू हो चुके हैं। चारों ओर से संक्रमण की बुरी ख़बरें आ रही हैं। फिल्मी सितारे भी हररोज़ संक्रमित हो रहे हैं। उनकी दुनिया तो अपेक्षाकृत बंद और सुरक्षित मानी जाती है। फिर भी कोरोना उन तक पहुंच रहा है। क्रिकेट के शिविरों में भी संक्रमण की दहशत है। नाइट कर्फ्यू या लॉकडाउन की तालाबंदी की दहशत और चिंता इतनी है कि कोचिंग सेंटर और अन्य शिक्षण संस्थानों के लोगों ने विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया है। वे जेल जाने तक को तैयार हैं। खुदरा चेन, होटल, रेस्तरां, ढाबा चलाने और इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर के कारोबार से जुड़े व्यापारियों ने सरकारों को चेतावनी देना शुरू कर दिया है कि या कर्फ्यू और तालाबंदी को आसान करें या वापस लें अथवा व्यापारी सड़कों पर उतरने को विवश होंगे। फैक्टरियों, मिलों और पॉवरलूम पर ताले लटकने शुरू हो गए हैं। हालांकि कुछ उद्योगों ने अपने मजदूरों को फिलहाल बांध कर रखने का फैसला किया है। मजदूरों को वेतन, खाना और आवास की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। आखिर यह कब तक संभव होगा? मजदूरों के एक तबके ने अपने गांव लौटना भी शुरू कर दिया है।
कोरोना वायरस अनिश्चित है, लिहाजा आदमी कब तक घर में कैद रहेगा या कारोबार की तालाबंदी करता रहेगा? आम नागरिक में निराशा, कुंठा के साथ-साथ उकताहट भी पैदा होने लगी है, लिहाजा वह तल्ख प्रतिक्रिया देने लगा है। लेकिन एक जमात ऐसी भी है, जिसके सामने कोरोना वायरस भी पस्त हो चुका है। बुधवार को बंगाल के सिंगूर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का रोड शो टीवी चैनलों पर देखा। भीड़ आपस में इस कदर चिपकी थी मानो मधुमक्खियों का लंबा-चौड़ा छत्ता हो! मास्क न तो गृहमंत्री के चेहरे पर था और मास्क के साथ-साथ दो गज की दूरी आम जनता के लिए तो बेमानी है। कुंभ के मेले में भी हररोज़ हजारों श्रद्धालु आ-जा रहे हैं। क्या यह जमात चुपचाप संक्रमण फैला रही है अथवा इसकी भयावह सच्चाई अभी उजागर होनी है। नाइट कर्फ्यू या तालाबंदी से क्या हासिल किया जा सकता है? बेशक उनसे संक्रमण की चेन कुछ हद तक टूट सकती है, लेकिन यह अधूरा समाधान है। रात के बाद सामान्य दिन शुरू होना है और फिर आम आदमी को बाहर काम पर जाना ही होगा, सामाजिक और सार्वजनिक मेल-मिलाप भी होगा, जब तक हम कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं करेंगे, तब तक संक्रमण को समाप्त कैसे किया जा सकता है? सरकारें और अदालतें भी विवेक याद रखें और उसके मुताबिक अपने दायित्व निभाएं। फिर भी यह लड़ाई अनिश्चित और अंतहीन रहेगी, विशेषज्ञों का ऐसा मानना है।
- हिमाचली कर उगाही में शराब
हिमाचल की कमाई में शराब गंगा है और सरकारी खजाने की इज्जत के लिए यह जुर्म भी कबूल है। ऐसे में आबकारी एवं कराधान विभाग को कमाई के सेतु पर चलना है, तो नीचे बहती शराब की मिकदार की किसे खबर होगी। यही एक लक्ष्य है जिसे पूरा करने में सुशासन नजर आता है। न उद्देश्य को गलत मानने की कोई परिभाषा और न ही जनता को ऐसी कर अदायगी की कोई शिकायत। हर गांव, हर शहर और पर्यटक बस्ती पूर्ण तल्लीनता से शराब इसलिए गटक रहा है ताकि बहती गंगा में हिमाचल का खजाना हाथ धो ले। आबकारी एवं कराधान विभाग को मिली जनता की शाबाशियों की बदौलत पिछले साल तक आय का हिसाब 1600 करोड़ बैठा और अगर इस बार के प्रस्तावित लक्ष्य जुड़ गए, तो यह राज्य शराब के पियाऊ में लगभग चार सौ करोड़ और जोड़ने की हिम्मत रखता है। जाहिर है आबकारी एवं कराधान विभाग की जिम्मेदारियों में शराब के अलावा भी धन अर्जित करने के स्रोत हैं, लेकिन इसकी अंजुलि में सबसे अधिक यही अरमान छलक आता है। ऐसे में हिमाचल की गिनती अगर देश के सबसे अधिक शराब परोसने वाले राज्यों में होती है, तो आंकड़े झूठ नहीं बोलते।
हिमाचल अपने इस रुतबे को आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, सिक्किम और हरियाणा के साथ जोड़ते हुए देश के सबसे अधिक पियक्कड़ों का खानदान बनाने में माहिर हो चुका है, क्योंकि सरकारों के धन उपार्जन में यही इनाम असरदार है। चाहे 2019 की शराब नीति रही हो या आगामी लक्ष्यों की बुनियाद सज रही हो, हिमाचल की सरकारें सदैव प्रयासरत रही हैं कि लोग ज्यादा पीएं और होटल-रेस्तरां में भी जी भर के पिलाएं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट बताती है कि सारे संसार में बिकती शराब में प्रति व्यक्ति खपत 6.2 लीटर है, जबकि भारत में यह दर 5.7 लीटर आंकी गई है। हिमाचल की कर उगाही में शराब का दखल सर्वश्रेष्ठ है और इसलिए इसे राज्य की आय बढ़ाने का जरिया मान कर सरकारों ने आंखें मूंद ली हैं। प्रति व्यक्ति शराब की खपत को अगर हम पंजाब से कहीं आगे ले जा रहे हैं, तो इसका जुर्माना हमें सेहत के हिसाब से देना होगा। हिमाचल प्रति व्यक्ति के हिसाब से 12.80 बोतलें गटक रहा है, जबकि पंजाब 11.45 बोतलों पर हमसे पीछे है। आश्चर्य यह कि गुजरात में 1960 से शराब बंदी है, जबकि बिहार ने 2016 से अपनी दुकान बंद कर दी। दो पर्वतीय राज्यों नागालैंड ने 1989 और मिजोरम ने भी 2019 से शराब बंदी कर दी है। इससे विपरीत हिमाचल की आबकारी नीति बिक्री के निर्धारण में यह शर्त जोड़ती कि हर हालत में तयशुदा कोटा बेचना होगा, वरना विक्रेता से जुर्माना वसूला जाएगा।
प्रदेश में शराब नीति को स्वास्थ्य सुरक्षा के लिहाज से देखा जाए, तो आंकड़ों में दर्ज बीमारियां भयभीत करती हैं। एक ओर हम ड्रग माफिया के खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं। नशा मुक्ति केंद्रों में ऊर्जा लगा रहे हैं, जबकि दूसरी ओर फलते-फूलते शराब के धंधे को राज्य की कमाई में बरकत मान रहे हैं। शराब शौक की बजाय ऐसी लत है जिसके लिए कानून-व्यवस्था के पहरे बढ़ाने पड़ते हैं। पुलिस अपने आंकड़ों और आपराधिक मामलों की फेहरिस्त में शराब की करतूतों का चिट्ठा खोल सकती है, फिर भी सरकारों का झुकाव इसी के जरिए धन इकट्ठा करता है। पंकज उद्धास के शब्दों में अब तो हिमाचली कुछ यूं भी कहते हैं,‘ सबको मालूम है मैं शराब नहीं पीता, फिर भी कोई (सरकार) पिलाए तो मैं क्या करूं।’ ऐसे में शराब आर्थिकी का भले ही एक किस्सा सुनहरा लगे, लेकिन कर्नाटक के राष्ट्रीय मानसिक सेहत संस्थान का हवाला लें, तो यह साबित हो जाता है कि शराब में राज्यों द्वारा कमाया गया एक रुपया उत्पादन की हानि तथा चिकित्सा क्षेत्र में व्यय के रूप में दो रुपए का सीधा नुकसान पैदा करता है। ऐसे में नैतिकता का पाठ पढ़ातीं सरकारों को यह सोचना होगा कि भारतीय आदर्शों में आबकारी नीति का वर्तमान खाका कितना कष्टप्रद है। कल हिमाचल अपनी आय दो हजार करोड़ बढ़ा भी ले, लेकिन शराब से निकलती जहर की बूंदों का जिक्र अपराध से कम नहीं हो सकता।
3.दोस्ती के द्वीप
कम ही मौके ऐसे आते हैं, जब पाकिस्तान से दोस्ती का कोई मुकम्मल पैगाम आता है। पाकिस्तान में एक कानून लागू हुआ है, जिसके तहत अभिनेता दिलीप कुमार और राज कपूर के पेशावर में मौजूद पुश्तैनी घर संग्रहालय में तब्दील किए जाएंगे। यह फैसला पाकिस्तान की संघीय सरकार का भले न हो, लेकिन खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की सरकार के इस फैसले से पेशावर में दोस्ती के दो जरूरी द्वीप तो बन जाएंगे। दशकों से चर्चा चल रही थी, पर अब जाकर इस प्रांतीय सरकार ने अभिनेताओं के पैतृक घर को खरीदने के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू की है। इसमें कोई शक नहीं कि यह काम पाकिस्तान की संघीय सरकार को अपने स्तर पर पहले ही कर लेना चाहिए था, पर देर से ही सही इस ऐतिहासिक काम को अंजाम देना न केवल पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया में फैले राज कपूर व दिलीप कुमार के प्रशंसकों के लिए उपहार सरीखा होगा। ये दोनों कलाकार ऐसे थे, जिनका दिल अपनी जन्मभूमि पेशावर के लिए भी धड़कता था। ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, राज कपूर जब अंतिम सांसें ले रहे थे, तब दिलीप कुमार उनसे मिलने आए। भावुकता से भरे उन पलों में दिलीप कुमार ने राज कपूर की हथेलियों को थामकर कहा था, ‘उठ जा राज, मैं अभी पेशावर से आया हूं, मैंने सुस्वाद चपली कबाब का आनंद लिया है, जो हम दोनों खाया करते थे, जब हम बच्चे थे। अब उठ जा, हम दोनों साथ जाएंगे और चपली कबाब खाएंगे।’ राज कपूर नहीं उठ पाए और वयोवृद्ध दिलीप कुमार के ख्यालों में अभी भी पेशावर का वह मकान जरूर उमड़ता होगा। बेशक, बस पांच मिनट की दूरी पर खड़े वे दोनों मकान अपने आप में मुकाम हैं, जिन्हें सहेजकर रखना पाकिस्तान के लिए गर्व की बात होनी चाहिए। विरासत केवल विरासत है, हिंदू या मुस्लिम नहीं। पाकिस्तान अपनी विरासत सहेजकर दुनिया को बता सकता है कि उसके यहां हिंदुओं और मुस्लिमों में कैसा भाईचारा था। उस भाईचारे के बीच से ही भारतीय सिनेमा के दो कद्दावर सितारे उभरे और अपनी चमक से सबको चकाचौंध कर दिया। ये दो ऐसे सितारे हैं, जो दुनिया के एक सबसे विशाल फिल्म उद्योग की बुनियाद हैं। इनकी जन्मस्थलियों को सहेजकर पाकिस्तान अपने आकर्षण में चार चांद ही लगाएगा। धन्य है खैबर पख्तूनख्वा की सरकार, जिसने अपने प्रांत के भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 को लागू किया है, जो उसे इन दोनों हवेलियों पर कब्जे का हक देता है। आगे की प्रक्रिया संकीर्णताओं में न उलझे, अदालतों में जाकर न अटके, यह प्रांत की सरकार को सुनिश्चित करना होगा। पाकिस्तान की जमीन पग-पग पर प्राचीन इतिहास संजोए हुए है, वहां भगत सिंह स्मारक और चौक के लिए लगातार संघर्ष जारी है। महाराजा रंजीत सिंह और न जाने कितनी विरासतों को संवारने के लिए संघर्ष चल रहे हैं। अगर वहां राज कपूर और दिलीप कुमार की हवेलियों को संग्रहालय बनाने में कामयाबी मिलती है, तो इससे उन लोगों का मनोबल बढ़ेगा, जो भारत-पाकिस्तान की साझा विरासत को बचाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। बॉलीवुड को भी यह सोचना चाहिए कि पेशावर की विरासतों को सहेजने के लिए वह कैसे मदद कर सकता है। खून-खराबे के शौकीन चाहे जो साजिशें रचें, सामाजिक स्तर पर दोस्ती व विरासत संजोने की ऐसी कोशिशें जारी रहनी चाहिए।
4.टेस्टिंग, ट्रैकिंग, ट्रीटमेंट और टीके का जिक्र
देश में कोरोना की दूसरी लहर में एक लाख के करीब संक्रमितों का सामने आना बताता है कि स्थिति गंभीर है। नये रोगियों की यह संख्या दुनिया के नंबर वन व दो पर संक्रमित देशों के नये मरीजों से ज्यादा है जो स्थिति के विस्फोटक होने का संकेत है। यह ठीक है कि टेस्टिंग ज्यादा हो रही है, इसलिये संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। वैसे बात यह भी है कि जांच की सुविधा बड़े महानगरों व शहरी इलाकों में ही है। तमाम लोग जांच को भी आगे नहीं आते, ऐसे में वास्तविक संख्या मौजूदा आंकड़ों से कहीं ज्यादा हो सकती है। स्थिति बताती है कि हम महामारी की चपेट में हैं। जिन चार राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में चुनाव हुए हैं वहां भी स्थिति विस्फोटक हो सकती है। एक मार्च से एक अप्रैल के बीच पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में संक्रमितों की संख्या में सैकड़ों गुना वृद्धि हुई है। पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के फोरम ने मुख्य सचिव व चुनाव आयोग को पत्र लिखकर गंभीर स्थिति से बचाव के लिये कदम उठाने का आग्रह किया है। इन्हीं चिंताओं के बीच दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात व केंद्रशासित चंडीगढ़ समेत कई राज्यों में नाइट कर्फ्यू लगाने की घोषणा हुई है। बहस का विषय है कि नाइट कर्फ्यू संक्रमण रोकने में कितना कारगर होता है। दरअसल, रात में लोग मौज-मस्ती के लिये क्लबों-होटलों आदि ऐसी जगह निकलते हैं, जहां भीड़भाड़ ज्यादा होती है। सरकारों की मंशा फालतू बाहर निकलने की प्रवृत्ति को रोकना ही होता है। वैसे इन घोषणाओं का मकसद लोगों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना होता है कि स्थिति गंभीर हो रही है, सतर्क रहें। निश्चित रूप से संक्रमण रोकने की दिशा में यह महत्वपूर्ण संदेश है। कुछ लोग लॉकडाउन लगाने की भी बात कर रहे हैं। लेकिन यह कदम पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था के लिये घातक हो सकता है। ऐसे में जान के साथ जहान बचाने की भी जरूरत है।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब देश में टीकाकरण अभियान में तेजी आ गई है और आठ करोड़ से अधिक लोगों को टीका लग भी चुका है तो संक्रमण इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है। स्पष्ट है कि हमने कोरोना से डरना छोड़कर फरवरी माह में सामाजिक सक्रियता बढ़ा दी थी। कुछ त्योहारों ने भी इसमें भूमिका निभायी। महानगरों और जहां शासन-प्रशासन सख्त था वहां तो लोग कमोबेश मास्क व शारीरिक दूरी का पालन किसी हद तक कर भी रहे थे, लेकिन छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में लोग भूल गये थे कि कोरोना किस चिड़िया का नाम है। फिर फरवरी में जब लगातार संक्रमण के मामलों में कमी आई तो साल भर की घुटन के बाद लोग खुली हवा में सांस लेने निकल पड़े। सामाजिक सक्रियता में अप्रत्याशित तेजी देखी गई। दरअसल, इस संक्रमण में मौसम परिवर्तन की बड़ी भूमिका रही है। दो मौसमों के संधिकाल में हमेशा ही खांसी, जुकाम और बुखार की शिकायत रही है। वैसे भी देश में कई तरह के फ्लू सक्रिय रहे हैं। इन्हीं कारकों ने कोरोना संक्रमण की तेजी को उर्वरा भूमि दी है। निस्संदेह इस समय एक व्यक्ति से संक्रमित होने वाले लोगों की बढ़ती संख्या चिंता बढ़ाने वाली है। जब तक यह संख्या कम नहीं होगी, कोरोना का खात्मा नहीं माना जायेगा। ऐसे में जिन लोगों को टीका लग चुका है, उन्हें भी मास्क, सुरक्षित शारीरिक दूरी और हाथ धोने को जीवनशैली में शामिल कर लेना चाहिए। महामारी ने बताया है कि सेहत ही सबसे बड़ा धन है। हमें अपने खानपान-जीवनशैली में बदलाव का संदेश भी मिला है। बहरहाल, तेज संक्रमण और टीकाकरण अभियान में तेजी के बाद भी विश्व की तमाम वित्तीय संस्थाओं द्वारा भारत की विकास दर में अप्रत्याशित वृद्धि के जो आंकड़े दिये हैं, वे उत्साह बढ़ाने वाले हैं। साथ ही हमारी कोरोना के खिलाफ जंग को भी मान्यता देते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री के पांच सूत्री फार्मूले जांच, संक्रमण संपर्कों का पता लगाने, बचाव, इलाज और टीकाकरण को अपनाकर ही कोरोना को हराया जा सकता है।