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इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.हर दिवस को हिमाचली बनाएं
नए हिमाचल के निर्माण की वार्षिक सौगंध आज फिर खाई जाएगी और हमारी आंखें यह ढूंढेंगी कि शायद सरकार के बटुए से कुछ राहत निकल आए। इस दौरान हिमाचली समाज गली कूचों से निकल राजनीतिक दुकान हो गया। हिमाचल दिवस के कारण को भूलकर हम अवलोकन यह करते हैं कि प्रदेश में नागरिक होना कितने फायदे की दुकान है। ताजा उदाहरण चार नगर निगमों के चुनाव रहे और परिणामों की फेहरिस्त में हम न तो समाज और न ही प्रदेश की प्रगति का अवलोकन कर सकते हैं। अलबत्ता यह पहलू जरूर सामने आता है कि हिमाचल भले ही साक्षरता में आगे हो, पूर्णतः शिक्षित नहीं। यह दीगर है कि राजनीतिक साक्षरता की बढ़ती दर के बावजूद हमारा निर्णायक पक्ष ऐसे हाथों में है, जहां प्रजा और शासक के बीच, राज्य की छवि का किसी को मलाल नहीं। क्या राज्य की छवि और राज्य के प्रतिनिधि एक जैसे हैं। हिमाचल दिवस का अवलोकन बेशक एक निरंतर गाथा में संभव हो या इसके सियासी आयाम समझे जाएं, लेकिन राज्य गठन की पर्वतीय जरूरतें अब राजनीतिक उपलब्धियों के अहंकार में देखी व सुनी जाती हैं।
कोरोना काल के बीच दो हिमाचल दिवसों की दूरी में अगर सुशासन की पड़ताल हो, तो मालूम हो जाएगा कि पक्ष और प्रतिपक्ष आखिर किस तरह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यही पहलू नगर निगम चुनावों के जरिए सारे हिमाचल को ऐसे खींचते हैं कि जनादेश भी पराया सा लगता है। सोलन नगर निगम की चुनावी प्रक्रिया के अवरोध में सत्ता का गुरूर न केवल हिमाचली समाज की खिल्ली उड़ा रहा है, बल्कि आम मतदाता का नशा भी उतर रहा है। हम हिमाचल की बेहतरी के लिए एक दिवस को देखें या यह देखें कि हिमाचल के हर दिवस को अभिशप्त कौन कर रहा है। बेशक हम आंकड़ों की दुहाई में साक्षरता दर के अव्वल खिलाड़ी बन जाएं, लेकिन हमारी साक्षरता दर से राजनीति कितनी शिक्षित हुई। हमारा समाज पढ़- लिख कर भी सियासी शक्तियों के आगे लूला-लंगड़ा है और इसे शहरी आबादी में चुने गए पार्षद अपनी शिक्षा के जरिए साबित कर रहे हैं कि प्रजातंत्र के हाथों की अंगुलियां कितनी कमजोर हैं। क्या हिमाचल में समाज के भीतर बुद्धिमता की लाचारी है या बुद्धिमान समाज आज भी अल्पसंख्यक है। स्वर्गीय वाईएस परमार ने हिमाचल निर्माण की भौगोलिक रेखाएं खींची और उन्हें मुकम्मल किया, लेकिन हिमाचल का सामाजिक-सांस्कृतिक निर्माण आज भी अपने-अपने राजनीतिक क्षेत्रफल में फंसा है। राजनीतिक सफलता का क्षेत्रवाद क्यों लौट आता है और यही दस्तूर सोलन नगर निगम में कांग्रेस के बहुमत के खिलाफ कोरम को लूट सकता है, क्योंकि प्र्रजा अपाहिज है। एक ओर हम पूर्ण राज्यत्व की सवर्ण जयंती मना रहे हैं, लेकिन जश्न के टोटकों में सामाजिक-सांस्कृतिक श्लाघा कहां है। हिमाचल के प्रतिनिधित्व की सारी शक्तियां सिर्फ राजनीतिक ही क्यों मानी जा रहीं, जबकि प्रदेश को यहां तक पहुंचाने के लिए अनेक हाथ लगे हैं।
क्या हिमाचल को फल राज्य बनाने वाले बागबान कम मेहनती रहे या पर्यटन राज्य बनाने में निजी क्षेत्र के प्रयास कमतर देख जाएं। हिमाचल के सांस्कृतिक संरक्षण में जुटे कलाकारों की अमानत में लोक गीत-संगीत की विविधता पूरे प्रदेश को तरोताजा रखती है या अपने शब्दों के जरिए संवेदना परोसते लेखकों-साहित्यकारों के योगदान को गिनता हर दिवस हिमाचली क्यों नहीं बन पाता। हिमाचल की हर बोली हिमाचली क्यों नहीं या खानपान की रिवायतें हिमाचल की एक रसोई क्यों नहीं बन पाइर्ं। अंततः तमाम बोलियों के संगम पर हिमाचली भाषा की का उद्गम अगर देखा जाए, तो प्रदेश का हर सांस्कृतिक-सामाजिक पहलू उन्नत होगा। इसी तरह हिमाचली इतिहास के हर क्षण से प्रदेश को गौरवान्वित होने के दिन मनाने चाहिएं। हिमाचल दिवस पर हिमाचल के नायकत्व को याद करना होगा। ये नायक स्वतंत्रता सेनानी, पूर्व सैनिक, सैन्य अधिकारी, योद्धा, लोक कलाकार, समाजसेवी तथा प्रदेश की सेवा में तत्पर रहे कर्मचारी-अधिकारी रहे हैं। समारोह के मचान पर हिमाचल दिवस एक भाषण या आंकड़ों की जुगत बनकर अपना संदेश देता आया है और यह क्रम यूं ही जारी रहेगा, लेकिन जो मेहनती लोग अपने हर दिन को हिमाचल के लिए अर्पित कर रहे हैं, उनकी पहचान को अगर सम्मान दे पाएं, तो वास्तव में यह हमारे अस्तित्व की जीत सरीखा होगा।
2.विदेश टीकों के बावजूद!
भारत में कोरोना वायरस के विदेशी टीकों को स्वीकृति देना और आयात का बाज़ार खोलना यकीनन एक स्वागतयोग्य निर्णय है। फाइज़र, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन सरीखी विदेशी कंपनियों ने भारत में मानवीय परीक्षण किए अथवा नहीं, अब यह सवाल गौण है, क्योंकि बढ़ते संक्रमण पर लगाम कसना सरकार और जनता की साझा प्राथमिकता है, लेकिन ये टीके कई देशों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और विज्ञान पत्रिका ‘द लैंसेट’ ने इन टीकों का सकारात्मक विश्लेषण किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अलावा अमरीका, ब्रिटेन, यूरोप और जापान ने इन्हें आपात मंजूरी दी हुई है। हमारे कोविड-19 के राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह ने फाइज़र और मॉडर्ना से अतिरिक्त डाटा की मांग की थी, लेकिन वे अमरीका की फूड एंड ड्रग्स अथॉरिटी की स्वीकृति के आधार पर ही भारत के बाज़ार में प्रवेश चाहती थीं। ऐसा नहीं हो सका, तो कमोबेश फाइज़र ने बीती फरवरी में अपना आवेदन वापस ले लिया था। तब कोरोना का संक्रमण भारत में इतना नहीं फैला था कि उसे ‘नई लहर’ का नाम दिया जा सके। अब अप्रत्याशित रूप से कोविड का घोर आपातकाल मंडरा रहा है, लिहाजा उसी संदर्भ में टीकों की स्वीकृति देखनी चाहिए। अभी भारत की ही कुछ कंपनियों के टीके पाइपलाइन में हैं। आने वाले कुछ महीनों में उन टीकों को भी मंजूरी मिल सकेगी, लिहाजा टीकाकरण का संकट दूर हो सकेगा।
इस दौरान रूस के स्पूतनिक-वी टीके को हरी झंडी देना भी बहुत बड़ा फैसला था, क्योंकि रूसी कंपनी ने भारत में डा. प्रताप रेड्डी लैब के साथ मिलकर टीके के इनसानी परीक्षण किए थे। उसका डाटा भी ‘लैंसेट’ में प्रकाशित हुआ है। विश्व की करीब 40 फीसदी आबादी, यानी 300 करोड़ से ज्यादा लोगों ने इस इंजेक्शन को मंजूरी दे रखी है। स्पूतनिक-वी की उपलब्धता भी देश में आसान होगी, क्योंकि कुछ और कंपनियों के सहयोग से टीके की 85 करोड़ खुराक सालाना के उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया है। स्पष्ट है कि ऐसे बंदोबस्त से हमारे टीकाकरण अभियान की गति अवरुद्ध नहीं होगी। हम यह भी स्पष्ट कर दें कि प्रख्यात चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने टीके को ही कोरोना का ‘सुरक्षा-कवच’ नहीं माना है, लेकिन उनके शोधात्मक अध्ययनों के निष्कर्ष हैं कि टीका संक्रमण की तीव्रता और जानलेवा प्रभावों को निरस्त करने का काम करता है। संक्रमित मरीज को अस्पताल जाने की नौबत भी बेहद सीमित हो जाती है। दोनों खुराकें मिलने के बाद टीका मानवीय देह में रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने लगता है। विदेशी टीकों के प्रभाव अलग-अलग हो सकते हैं। फिलहाल स्पूतनिक को छोड़ कर शेष अन्य टीके 100 लोगों को ही लगाए जाएंगे और फिर 7 दिन तक उनका प्रभाव आंका जाएगा। यह निर्णय भारत के विशेषज्ञों और औषधि महानियंत्रक ने किया है।
बहरहाल विदेशी टीकों को आपात मंजूरी मिल चुकी है और देर-सबेर उनकी आपूर्ति भी शुरू हो जाएगी, लेकिन कई विरोधाभास, आस्था से जुड़े उल्लंघन, कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ना आदि हमारे देश और व्यवस्था से चिपके हैं, जिनके कारण हररोज़ संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 1.85 लाख तक पहुंच चुका है। मौतें भी 1000 का आंकड़ा लांघ चुकी हैं। संक्रमण का यह आंकड़ा 2 लाख रोज़ाना की घोषित चेतावनी को भी पार कर सकता है। यह शोधात्मक चेतावनी कुछ दिन पहले वैज्ञानिकों ने दी थी, जिसका संपादकीय विश्लेषण हमने किया था। विडंबना यह है कि बुधवार को भी हरिद्वार कुंभ में शाही स्नान था। साधु-संतों समेत लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी। सोमवार के स्नान में भी 31 लाख से ज्यादा लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई थी। संक्रमण के आंकड़े धीरे-धीरे सार्वजनिक हो रहे हैं। इस पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की घोर आस्था सामने आई है कि गंगा के आशीर्वाद से कोरोना नहीं होगा। कितनी अंधी आस्था है…! इन दिनों नवरात्र भी मनाए जा रहे हैं। जो मंदिर खुले रखे गए हैं, उनके बाहर जन-सैलाब देखे जा सकते हैं। बंगाल चुनाव की तो बात करना ही छोड़ दें। नेतागण और अनपढ़, गंवार जनता नहीं समझती कि वायरस किसी मॉल, मदिरालय, मंदिर, मस्जिद को नहीं देखता और जानता। वह फैलता रहता है और इनसान लाश बनकर जलता रहता है। यदि जिंदगी होगी, तो आस्था भी संभव है। गंगा के सभी घाटों पर जाकर पुण्य कमाए जा सकते हैं। यदि जिंदगी ही मौत में परिणत हो गई, तो सब कुछ निष्प्राण, पत्थर है। अब विकल्प हम सभी के सामने है। टीके हमें इन विरोधाभासों से नहीं बचा सकते।
3.परीक्षाओं का सम्मान
कोरोना ने अपना प्रहार बढ़ा दिया है और उसके नतीजे आए दिन सामने आने लगे हैं। अंतत: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को स्थगित और 10वीं की परीक्षाओं को रद्द करने पर मजबूर हो गया। संक्रमण के बढ़ने के बाद प्रधानमंत्री के नेतृत्व में जो बैठक प्रस्तावित थी, उसके पहले ही यह अंदाजा लगने लगा था कि सरकार बड़ा फैसला करने वाली है। जब देश में प्रतिदिन संक्रमण के मामले दो लाख के करीब पहुंच गए हैं, तब सामूहिक रूप से एक साथ बैठाकर बच्चों की परीक्षा लेना कतई सही नहीं होता। दसवीं की परीक्षा को पहले ही बहुत टाल दिया गया था, लेकिन अब उसे टालना नामुमकिन था, इसलिए उसे रद्द करने में ही सरकार ने सबकी भलाई समझी। 12वीं की परीक्षा चूंकि आगे की पेशेवर पढ़ाई के लिए जरूरी होती है, इसलिए उसके लिए सरकार उचित ही इंतजार करना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक व केंद्रीय शिक्षा सचिव और अन्य शीर्ष अधिकारियों की बैठक में लिए गए फैसलों का स्वागत करना चाहिए। सुरक्षा के तमाम इंतजामों के बावूजद 4 मई से 14 जून के बीच परीक्षा लेना खतरे से खाली नहीं होता। अब राज्यों को भी अपने यहां बोर्ड परीक्षाओं के बारे में फैसला लेने में आसानी होगी। महत्वपूर्ण फैसले के अनुसार, आंतरिक मूल्यांकन से ही छात्रों को दसवीं में पास कर दिया जाएगा। जाहिर है, उन बच्चों के साथ यह नाइंसाइफी है, जो वर्षों से इस परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे थे। निकट इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दसवीं की परीक्षा रद्द कर दी गई है, वरना दसवीं की परीक्षा का पारिवारिक-शैक्षणिक तनाव पांचवीं-छठी कक्षा से ही शुरू हो जाता है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि अभी दसवीं की परीक्षा से वंचित बच्चों को दोबारा मौका नहीं मिलेगा। जब कोरोना का असर कम होगा, तब सरकार दसवीं की परीक्षा कराएगी और उसमें वे तमाम बच्चे शामिल हो सकेंगे, जो आंतरिक मूल्यांकन से संतुष्ट नहीं होंगे। जहां तक 12वीं की परीक्षा का सवाल है, तो सरकार 1 जून को देश में कोरोना का हाल देखने के बाद फैसला लेगी।
समय आ गया है, अब शिक्षा अधिकारियों को पारंपरिक परीक्षा के बेहतर विकल्प पर सोचना पड़ेगा। परीक्षाओं को रद्द करते चलना देश की शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए ठीक नहीं है। जिन नेताओं ने विद्यार्थियों के हित में परीक्षाओं को रद्द करने की मांग की है, उन्हें भी परीक्षा के ऐसे ढांचे पर विचार करना चाहिए, जिससे कोरोना जैसी आपदाओं के समय भी छात्रों की सही परीक्षा ली जा सके और उनका यथोचित मूल्यांकन किया जा सके। दसवीं पास करने जा रहे विद्यार्थियों के मूल्यांकन की पद्धति भी पारदर्शी होनी चाहिए, ताकि विद्यार्थियों को संतुष्ट किया जा सके। सरकार और बोर्ड को आंतरिक मूल्यांकन के पैमाने भी तय करने होंगे, जिस पर सभी स्कूलों को चलने के लिए पाबंद करना होगा। सरकार के इस फैसले से छात्रों के बीच यह भी संदेश गया है कि पढ़ाई के दौरान हर परीक्षा को गंभीरता से लेना चाहिए। हो सकता है, भविष्य हमें फाइनल परीक्षा का मौका ही न दे और पहले के प्रदर्शन के आधार पर ही स्कूल या बोर्ड चालू मूल्यांकन करने लगें। अत: विपरीत हालात में लिया गया सरकार का यह फैसला विद्यार्थियों के लिए सबक है, जिसकी रोशनी आगे हमेशा काम आएगी।
4.वक्त का फैसला
परीक्षा से ज्यादा जीवन रक्षा जरूरी
प्रधानमंत्री और शिक्षामंत्री व शिक्षा अधिकारियों की महत्वपूर्ण बैठक के बाद केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद की चार मई से होने वाली दसवीं की परीक्षा रद्द करने और बारहवीं की परीक्षा स्थगित करने का फैसला निस्संदेह वक्त की मांग थी। ऐसे में जब देश में आधिकारिक रूप से कोरोना संक्रमण के मामले प्रतिदिन 1.8 लाख तक पहुंचने लगे हैं तो स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। देश में छात्र-छात्राएं कुछ समय से परीक्षाएं स्थगित करने की मुहिम सोशल मीडिया के माध्यम से चला रहे थे। पूरे देश में लाखों छात्रों ने हस्ताक्षर अभियान चलाया और अदालत जाने की बात भी कर रहे थे। इसी बीच कुछ राजनेताओं ने भी मुद्दे को लपक कर बयानबाजी शुरू कर दी थी। कहा जा रहा था कि देश में लाखों विद्यार्थियों व शिक्षकों तथा शिक्षणोत्तर कर्मियों के एक साथ आने से देश कोरोना का हॉट स्पॉट बन जायेगा। निस्संदेह, परीक्षा रद्द होना या स्थगित होना सही मायनों में छात्रों में शैक्षिक गुणवत्ता विकास के हिसाब से उचित नहीं है, लेकिन वक्त की जरूरत के हिसाब से यही फैसला बनता था। परीक्षाएं किसी भी छात्र के जीवन में उसकी साल भर की मेहनत और ज्ञान का मूल्यांकन तो करती हैं, कई मानवीय गुणों का विकास भी करती हैं। यह भी तय है कि निकट भविष्य में बिना परीक्षा उत्तीर्ण किये गये छात्र-छात्राओं को जीवनपर्यंत कहा जा सकता है कि बिना परीक्षा के ऊपरी कक्षा में पहुंचे। फिर उन विद्यार्थियों को भी निराशा हुई होगी जो सौ में सौ अंक लाने के लिये जीतोड़ मेहनत कर रहे होंगे। बहरहाल, शिक्षा मंत्रालय ने ऐसे छात्रों को विकल्प देने का निर्णय किया है जो छात्र उत्तीर्ण होने के इन मानकों से संतुष्ट नहीं होंगे उन्हें स्थिति सामान्य होने पर परीक्षा देने का अवसर दिया जायेगा ताकि वे अपनी मेहनत को अंकों में बदल सकें। निस्संदेह, केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद देश के लाखों छात्रों व उनके अभिभावकों तथा शिक्षकों ने संकट की इस घड़ी में राहत की सांस ली होगी। इन खबरों के बीच कि कोरोना का नया वैरिएंट छोटी उम्र के बच्चों को भी तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रहा है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्री की उपस्थिति में हुई बैठक में निर्णय लिया गया कि दसवीं की परीक्षा रद्द होने के बाद सीबीएसई के मानकों के आधार पर तय मापदंड के अनुरूप आंतरिक मूल्यांकन करके छात्रों के परीक्षा परिणाम घोषित कर दिये जायेंगे। साथ ही बारहवीं की परीक्षा का अगला कार्यक्रम तब की स्थिति के अनुरूप एक जून को बताया जायेगा। साथ ही परीक्षा कार्यक्रम की जानकारी परीक्षा से पंद्रह दिन पहले तब के हालात के अनुरूप दी दी जायेगी। दरअसल, इससे पहले महाराष्ट्र, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ आदि राज्यों ने दसवीं व बारहवीं की परीक्षाएं कोरोना संकट के चलते आगे के लिये टाल दी थीं। बहरहाल, यह पहला मौका है कि केंद्रीय माध्यमिक परिषद की दसवीं की बोर्ड परीक्षा को पूरी तरह रद्द किया गया है। बुधवार की बैठक में इससे पहले ऑनलाइन परीक्षा व अन्य विकल्पों पर भी विचार किया गया था। साथ ही विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम तैयार करने के प्रारूप पर भी विचार किया गया; जिसके मानक सीबीएसई तैयार करेगी, जिसके आधार पर परीक्षा परिणाम तैयार होगा। बहरहाल, इस निर्णय के बाद जहां छात्र अगली कक्षा में जाने के साथ ही भविष्य की तैयारी में जुट सकेंगे, वहीं स्कूलों में भी ग्यारहवीं कक्षा की शुरुआत करने को लेकर उत्पन्न दुविधा को दूर किया जा सकेगा। कम से कम ऑनलाइन पढ़ाई के माध्यम से उन्हें ग्यारहवीं की पढ़ाई जारी रखने का अवसर समय पर मिल सकेगा। निस्संदेह किसी छात्र-छात्रा के जीवन में दसवीं व बारहवीं की परीक्षा एक मानक पड़ाव जैसे होते हैं, लेकिन मौजूदा संकट में इससे बेहतर विकल्प शायद ही संभव हो पाता। अब शिक्षकों और अभिभावकों का भी दायित्व बनता है कि मौजूदा संकट खत्म होने के बाद आगे की पढ़ाई की बुनियाद मजबूत करने की दिशा में गंभीर पहल करें।