News & Events
इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.नए पर्यटन का विकास
विकास के खत कोरोना काल में भी लिखे जाएंगे, लेकिन इनका खूबसूरत पहलू कब नजर आएगा, कौन जानता है। हिमाचल में कुछ क्षेत्र अपने साथ विकास की पटरी पर खड़ा होने की असमंजस से किनारा करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं, फिर भी कई परियोजनाएं अपने लक्ष्यों के दलदल में फंसी हैं। खास तौर पर केंद्रीय परियोजनाओं की गति या प्रगति इस काबिल नहीं कि शोर किया जाए, फिर भी राज्य सरकार अपनी कोशिशों का प्रकटीकरण करती रहती है। पर्यटन और नागरिक उड्डयन विभाग इस दृष्टि से अपने वित्तीय पोषण की खबर लेते हुए, विकास का मूल्यांकन करने में कहीं सबसे आगे दिखाई देता है। एक बार फिर समीक्षा बैठक में सरकार ने जंजैहली सांस्कृतिक केंद्र, क्यारीघाट कान्वेंशन सेंटर, मंडी शिवधाम, बैंटनी कैसल तथा हेलिपोर्ट परियोजनाओं को तय सीमा में पूरा करने की वचनबद्धता दोहराई है। भले ही कोरोना काल में पर्यटन के सिलसिले विराम पर खड़े हैं, लेकिन सरकार भविष्य की जरूरतों में अपना फर्ज निभा रही है। यह दीगर है कि पिछले चौदह महीनों में निजी होटलों के साथ-साथ पर्यटन विकास निगम भी पूरी तरह कंगाल हुआ है।
पर्यटन उद्योग की असमर्थता को दूर करने के लिए भी अगर विभागीय चौकड़ी बैठती, तो हर पर्यटक स्थल का कोहराम सुनाई देता। निजी क्षेत्र के होटलों के लीज रद्द हुए हैं और पर्यटन की बहारें लौट चुकी हैं, जबकि होटल इकाइयों के साथ-साथ पर्यटक बाजारों पर भी मायूसी की ऐसी परत चढ़ी जिसे हटाने में न जाने कितने वर्ष लगेंगे। बहरहाल आपदा में अवसर ढूंढता पर्यटन क्षेत्र कल विकास के चार चांद हासिल करे, इसके लिए ये तमाम परियोजनाएं नए पर्यटन का विकास अवश्य ही कर रही हैं। प्रदेश में जंजैहली की प्राकृतिक खूबसूरती अगर पर्यटकों के लिए खुलती है, तो हिमाचल पड़ोसी कश्मीर व उत्तराखंड के मुकाबले और बेहतर होगा। सोलन के पास कान्वेंशन सेंटर दरअसल नए पर्यटन के बाजू मजबूत करेगा और इसी तरह कल भुंतर और गगल हवाई अड्डों के समीप ऐसी इकाइयों के निर्माण से कान्वेंशन टूरिज्म की दृष्टि से हिमाचल खुद को पेश कर पाएगा। मंडी के समीप शिवधाम भी नए पर्यटन की जिज्ञासा को शांत करते हुए भावी परियोजनाओं का खाका पेश कर सकता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि मंडी शहर के पारंपरिक स्वरूप को ग्रहण लगा दिया जाए।
काफी वर्ष पहले पंडित सुखराम की निजी रुचि के कारण इंदिरा मार्किट विकसित न होती, तो शहर में पर्यटन का चांद न निकलता, लेकिन सरकारों ने इस मॉडल को अन्य शहरों में नहीं सजाया। इसी तरह पर्यटन का सामाजिक अर्थ हिमाचल के धार्मिक स्थलों, प्रमुख शहरों, पारंपरिक हिल स्टेशनों तथा उभरती डेस्टीनेशन में देखते हुए वहां नए पर्यटन को भी समाहित करना होगा। विडंबना यह है कि कभी प्रदेश के पहले ट्यूलिप गार्डन का विकास धर्मशाला में शुरू हुआ, लेकिन वर्तमान सरकार के प्रतिनिधियों ने न केवल इस परियोजना की आलोचना की, बल्कि आज तक एक फूल भी नहीं उगा पाए। ऐसी कई अन्य परियोजनाएं पूर्ण होने से पहले उपेक्षा की शिकार हो गईं, लेकिन न समीक्षा बैठकों में इनका जिक्र होता है और न ही इनके मुकम्मल होने की कोई सूचना मिलती है। ऐसे में पर्यटन विभाग को सर्वप्रथम पर्यटन उद्योग के खस्ता हाल, अतीत की बाधित परियोजनाओं और अंत में नई परियोजनाओं का हवाला देना चाहिए ताकि विकास के नक्शे में फिर से जिंदा होने की जद्दोजहद हो, वरना विकास की कड़छियां यूं तो बरसों से ही बंटती रही हैं, लेकिन कहीं समग्र रूप से बड़ा खाका बनता हुआ दिखाई नहीं दिया। सरकार अगर पांच शहरों को नगर निगम के दायरे में लेकर समन्वित विकास का उदाहरण पेश करना चाहती है, तो यह एक अवसर होगा कि मंडी सांस्कृतिक राजधानी, पालमपुर चाय नगरी, सोलन प्रगतिशील शहर, धर्मशाला खेल व तिब्बती नगरी तथा शिमला धरोहर शहर के रूप में पर्यटन के विकास को लिख सकें।
2.क्या यही संघीय शिष्टाचार है?
आज तक भारतीय गणराज्य में ऐसा अपमानित व्यवहार निर्वाचित प्रधानमंत्री के साथ चुने हुए मुख्यमंत्री ने नहीं किया होगा। ऐसे उदाहरण तो हैं कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक बुलाई हो और उसमें कोई मुख्यमंत्री अनुपस्थित रहा हो। ऐसी बैठकों में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रशासित क्षेत्रों के उपराज्यपाल आदि अमूमन मौजूद रहते हैं, लेकिन किसी प्राकृतिक आपदा, चक्रवाती तूफान का आकलन करने प्रधानमंत्री किसी राज्य-विशेष के प्रवास पर हों और वहां का मुख्यमंत्री ही गैरहाजि़र हो, तो इसे किस संघीय ढांचे का व्यवहार कहेंगे? बेशक कारण कुछ भी हो, प्रधानमंत्री के प्रवास का एक निश्चित प्रोटोकॉल होता है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री आदि हवाई पट्टी या एयरबेस पर उनकी अगवानी करते हैं। यह एक तरह का संघीय शिष्टाचार तय किया हुआ है। देश के संघीय ढांचे का अर्थ किसी मुख्यमंत्री या राज्य का मनमाना व्यवहार नहीं है। संविधान सभा की बैठकों में हमारे पूर्वज राजनेताओं ने इस पक्ष पर व्यापक विमर्श किया था। केंद्र निरंकुश न हो सके, लिहाजा राज्यों को कई विशेषाधिकार दिए गए। उनकी अपनी स्वायत्तता तय की गई, लेकिन केंद्र सरकार को ढांचे की धुरी माना गया था, ताकि सभी राज्यों का संचालन तटस्थता, ईमानदारी और उनके हिस्से के मुताबिक किया जा सके।
यदि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी संविधान के संघीय प्रावधानों को भी स्वीकार नहीं करतीं, तो उनका पद अस्वीकार्य होनी चाहिए। संविधान की व्यवस्था किसी भी चुनावी जनादेश से महत्त्वपूर्ण होती है। बंगाल में चुनाव संपन्न हो चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी की भाजपा पराजित होकर दूसरे स्थान पर रही है। एक बार फिर जनादेश ममता बनर्जी की पार्टी को हासिल हुआ है। राजनीतिक विद्वेष और टकराव यहीं समाप्त हो जाने चाहिएं। मुख्यमंत्री ममता बंगाल की प्रथम कार्यकारी अधिकारी हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी भी पूरे भारत के प्रथम कार्यकारी अधिकारी हैं। प्रधानमंत्री चक्रवाती तूफान ‘यास’ के जानलेवा और विध्वंसकारी थपेड़ों का हवाई सर्वेक्षण करने बंगाल आए थे। उससे पहले वह ओडिशा गए थे। वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तो पूरे वक्त प्रधानमंत्री के साथ रहे। हालांकि वह भी भाजपा-विरोधी दल के नेता हैं। करीब 10 दिनों के अंतराल पर भारत के तटीय क्षेत्रों को दो चक्रवाती तूफान झेलने पड़े थे। तूफान के आधार पर ही अंतरिम राहत तय होती है, लिहाजा प्रधानमंत्री संकटग्रस्त राज्यों को राहत-राशि मुहैया कराते हैं। मुख्यमंत्री राशि को कम-ज्यादा आंक सकते हैं, लेकिन उस असहमति के साथ-साथ ममता की आपत्ति थी कि प्रतिपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को बैठक में क्यों बुलाया गया?
शुभेंदु ने ही चुनाव में ममता को पराजित किया था। इसके अलावा, मुख्यमंत्री की प्राथमिकता थी कि वह अपने तय कार्यक्रमों के मुताबिक व्यस्त रहें और इलाकों के दौरे करें। सवाल है कि क्या देश के प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री ने ‘क्लर्क’ समझा था? वह आधा घंटा देर से बैठक में पहुंचीं और प्रधानमंत्री को कुछ दस्तावेजी कागजात सौंप कर चली गईं। यदि एटीसी और एसपीजी के रोकने पर मुख्यमंत्री को देरी हो गई थी, तो उन्हें बैठक में पहुंच कर वहीं मौजूद रहना चाहिए था। क्या ममता ने विनम्रता और सहजता नहीं सीखी है? हर समय ठसक्के के मायने क्या हैं? क्या देश में वह ही सर्वोच्च और स्वीकार्य नेता हैं? प्रधानमंत्री ने तूफान के बाद समीक्षा बैठक बुलाई थी। प्रेस ब्रीफ के जरिए प्रधानमंत्री से 20,000 करोड़ रुपए की राहत-राशि की मांग की गई, लेकिन प्रधानमंत्री के साथ हवाई सर्वे में विध्वंस की निशानदेही ममता ने नहीं की। बाद में यह व्यंग्य करने से भी वह नहीं चूकीं कि बंगाल के लिए वह प्रधानमंत्री के पैर भी छू सकती हैं। तूफान से बंगाल में एक करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। करीब तीन लाख घर क्षतिग्रस्त हुए हैं। कई तटबंधों को नुकसान हुआ है अथवा वे टूटने के कगार पर हैं। कमोबेश ये तमाम ब्यौरे मुख्यमंत्री खुद ही प्रधानमंत्री को ब्रीफ कर सकती थीं। क्या प्रधानमंत्री कागजात ग्रहण करने वाला पदासीन व्यक्ति है? ममता ने प्रधानमंत्री के रवैये को भाजपा की चुनावी हार से भी जोड़ दिया। यह एक मुख्यमंत्री की अपरिपक्वता है। महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि संघीय ढांचे की समीक्षा कराई जाए और उसे पुनः परिभाषित किया जाए। क्या ऐसे विभाजित तरीके से और राजनीतिक या निजी खुन्नस के आधार पर संघीय ढांचा कारगर साबित हो सकता है?
3.शोध पर जोर
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति है और सबसे बड़ी सामरिक शक्ति भी। कई सारे क्षेत्र हैं, जिनमें अमेरिका दूसरे बडे़ देशों से काफी पिछड़ा हुआ है, खासकर औद्योगिक उत्पादन में, पर एक क्षेत्र है, जो उसे लगातार सबसे आगे बनाए हुए है, और वह है- शोध। अमेरिका लंबे वक्त से वैज्ञानिक और तकनीकी शोध का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। नतीजतन, जो सबसे आधुनिक और नए क्षेत्र हैं, उनमें उसका बोलबाला है। मसलन, आईटी क्षेत्र और नई अर्थव्यवस्था में वह सबसे आगे है। चाहे माइक्रोसॉफ्ट हो, गूगल हो, फेसबुक-ट्विटर हों, एपल हो या अमेजन, ये सारी अमेरिकी कंपनियां हैं। अमेरिका की इस शक्ति को और बढ़ाने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडन ने अब शोध के मद में सरकारी बजट में जबर्दस्त बढ़ोतरी का प्रस्ताव किया है। बाइडन के आर्थिक कार्यक्रम का मुख्य मुद्दा बुनियादी ढांचे के लिए छह लाख करोड़ डॉलर खर्च करना है। इसमें शोध एवं विकास (आरऐंडडी) का बजट नौ प्रतिशत बढ़ाने का प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव के तहत शुद्ध विज्ञान और उसके व्यावहारिक पक्ष, दोनों पर खर्च बढ़ाने की बात कही गई है, सिर्फ रक्षा संबंधी आरऐंडडी के मद में कटौती की जाएगी। अमेरिकी इतिहास में यह शोध संबंधी खर्च में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी है।
सबसे ज्यादा पैसा स्वास्थ्य संबंधी शोध पर बढ़ाने का प्रस्ताव है और रोगों के नियंत्रण व रोकथाम संबंधी शोध के लिए 22 प्रतिशत खर्च बढ़ाने का प्रस्ताव है। जाहिर है, कोरोना के कहर से नई अमेरिकी सरकार सबक सीखना चाहती है और आइंदा ऐसे संकटों से अपनी जनता को बचाने के लिए पूरी तैयारी करना चाहती है। इसमें अमेरिका के स्वास्थ्य क्षेत्र को और ज्यादा मजबूत करने के लिए भी प्रावधान है और दुनिया के दूसरे देशों को इस क्षेत्र में मदद करने के लिए भी। स्वास्थ्य में शोध सिर्फ प्रयोगशालाओं में माइक्रोस्कोप से संबंधित शोध नहीं है, स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता में गैर-बराबरी, संस्थागत नस्लवाद मिटाने और पर्यावरण में बदलाव से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं पर शोध भी शामिल हैं। डोनाल्ड ट्रंप जलवायु परिवर्तन को नकारने और पर्यावरण के मुद्दों की उपेक्षा करने में आम अनुदार राजनेताओं से भी बहुत आगे थे। उनके दौर में अमेरिका ने पर्यावरण संबंधी कोई भी जिम्मेदारी स्वीकार करने से मना कर दिया था, बल्कि वह पेरिस जलवायु समझौते से भी हट गया था। पर बाइडन ने अपने चुनाव प्रचार में ही साफ कर दिया था कि पर्यावरण उनकी सरकार की प्राथमिकताओं में होगा। पर्यावरण से जुड़े शोध के लिए भी बजट में बड़ी वृद्धि का प्रस्ताव है। बहुत बड़ी योजना ऐसी टेक्नोलॉजी पर शोध की है, जो पर्यावरण के नजरिये से निरापद हो। अमेरिकी सरकार ने जिस तरह की पहल की है, उससे भारत जैसे देशों को भी सीखना चाहिए। आने वाला वक्त नई चुनौतियां लेकर आएगा और उनसे वही पार पा सकेगा, जिसके पास ज्ञान की शक्ति होगी। वही दूसरों की मदद भी कर पाएगा। अमेरिकी कामयाबी का रहस्य सिर्फ पैसा नहीं है, वह माहौल भी है, जो नए विचारों व शोध को प्रोत्साहित करता है, और जो सिर्फ विज्ञान नहीं, कला, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, ज्ञान के हरेक क्षेत्र में दुनिया भर की प्रतिभाओं को अपनी ओर खींचता है। शोध के फलने-फूलने के वास्ते उर्वर जमीन तैयार करना देश और दुनिया के भविष्य की बेहतरी के लिए अनिवार्य है।
- अनाथों के नाथ
मानवीय पहल की तरफ बढ़े केंद्र-हरियाणा
दिल्ली की केजरीवाल सरकार व मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने सबसे पहले कोरोना संकट में अनाथ बच्चों को संरक्षण देने की सार्थक पहल की शुरुआत की। उसके बाद शीर्ष अदालत ने बीते शुक्रवार को ऐसे बच्चों के संरक्षण के लिये केंद्र व राज्य सरकारों को पहल करने को कहा था। निस्संदेह, यह कोरोना त्रासदी का दुखद पहलू है कि बड़ी संख्या में बच्चों को मां-बाप को खोना पड़ा है। उनके जीवन का संघर्ष बहुत बड़ा हो गया है। जहां उनका असामाजिक तत्वों से संरक्षण जरूरी है, वहीं भविष्य को निरापद बनाना भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे बच्चों के हित में सार्थक पहल की, जो वक्त की दरकार भी है। प्रधानमंत्री ने उसी पीएम केयर फंड से यह पहल की, जो विपक्ष खासकर कांग्रेस के निशाने पर रहा है। पीएम केयर फॉर चिल्ड्रन योजना के तहत अनाथ हुए बच्चों के लिये दस लाख की एफडी होगी और पांच लाख का बीमा आयुष्मान भारत योजना के तहत किया जायेगा। ऐसे बच्चे जो दस वर्ष से कम आयु के हैं, उनका दाखिला नजदीकी केंद्रीय विद्यालय व निजी स्कूलों में कराया जायेगा। उनकी फीस, ड्रेस व किताबों आदि का खर्चा इसी फंड से वहन किया जायेगा। वहीं ग्यारह से 18 वर्ष के बीच के बच्चों का दाखिला आवासीय सुविधा वाले नवोदय विद्यालय तथा सैनिक स्कूलों में कराया जायेगा। इन बच्चों को 18 साल के बाद पांच सालों तक मासिक सहयोग मिलेगा तथा 23 साल की उम्र में एफडी की राशि दी जायेगी।
वहीं दूसरी ओर, हरियाणा सरकार ने इस मानवीय पहल को विस्तार दिया है। राज्य सरकार माता-पिता को खोने वाले बच्चों को ढाई हजार मासिक की पेंशन भी देगी। यह उन बच्चों को मिलेगा, जिनके परिवार का कमाने वाला पिता या मां भी कोरोना संक्रमण से मरे हों। बच्चे के 18 साल का होने तक यह मदद जारी रहेगी। इसके अलावा बारह हजार रुपये इन बच्चों को अन्य खर्चों के लिए मिलेंगे। जिन बच्चों की देखभाल करने वाला परिवार का कोई सदस्य नहीं है, उनका जिम्मा चाइल्ड केयर इंस्टिट्यूट का होगा। जहां 18 साल तक बच्चों की पढ़ाई, कपड़े तथा अन्य खर्चों को सरकार वहन करेगी। वहीं अनाथ हुई किशोरियों को कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय में दाखिला दिलाया जायेगा। राज्य में पहले से जारी मुख्यमंत्री विवाह शगुन योजना का 51 हजार अभी से इनके खातों में जमा कर दिया जायेगा, ताकि विवाह योग्य होने पर बढ़ी हुई राशि ब्याज समेत मिल सके। इतना ही नहीं, आठवीं से बारहवीं तक के बच्चों को मुफ्त टैबलेट उपलब्ध कराये जाएंगे, ताकि उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई में दिक्कत का सामना न करना पड़े। बड़े बच्चों को प्रधानमंत्री केयर फॉर चिल्ड्रन योजना के तहत हायर एजुकेशन लोन भी उपलब्ध कराया जायेगा, जिसका ब्याज पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन योजना से मिलेगा। बहरहाल, इन योजनाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इनका क्रियान्वयन कितनी पारदर्शिता के साथ किया जाता है।