News & Events
इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है
1.ताकि हालात की आंखें सदा खुलें
अब सवाल चौदह महीनों से सीखने का है और यह अकेले सरकार के लिए ही हिदायतों का पुलिंदा नहीं, बल्कि विपक्ष, समाज और देश के राजनीतिक माहौल के लिए भी है। बाजार का खुलना या बंद रहना अब अनियमित घटना नहीं और न ही स्कूल की घंटियों का खामोश रहना कोई अपरिचित घटना है। दर्द का संवेग केवल प्रतिक्रिया नहीं, पूरी मानव जाति के अस्तित्व का खौफनाक मंजर भी है। इसलिए हिमाचल में कर्फ्यू की रियायतें जितना आगे बढ़ना चाहेंगी, उतना ही इन्हें पीछे मुड़कर देखना होगा। दरअसल यह आंकड़ों की दुरुस्ती और सिसकियों का हिसाब है। कभी घर रोएगा, तो कभी बाजार उदास। व्यापार में घाटा तो पिछले साल तक होता रहा होगा, इस बार तो चौपट होते मंजर के बीच निशान गुम हैं। गैर सरकारी क्षेत्र की आहें हैं जो हिमाचल के दामन में सुराख करके बाहर आ रही हैं। बेशक सीमित अवधि के लिए बाजार खुल गया, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि व्यापार भी पूरी तरह खुलेगा।
जनता बाजार आए या खरीद करे, यह शर्त नहीं, बल्कि कब और कितनी देर आए, यह हिदायत है। इस खुलने के बीच हमें बंद रहने की हिदायत है। ऐसे में जो क्षमता सरकारी क्षेत्र और इसके लाभार्थियों की है, उसके पैमाने यह तय करेंगे कि हिमाचल कितने संयम और विवेक से रह सकता है। दूसरी ओर निजी क्षेत्र को अपने ऊपर लगे तमाम बंधनों और अपनी टूटती हैसियत के बावजूद यह तय करना है कि खुद को कितना समेट सकता है। हिमाचल के सामने पहली बार यह प्रश्न खड़ा हुआ है कि प्रदेश ही अब निजी क्षेत्र को बचाए। निजी क्षेत्र बचेगा तो हिमाचल का रोजगार बचेगा। प्रदेश में सभी प्रकार की सार्वजनिक सेवाओं या सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे लोगों की संख्या पांच लाख मान लें, तो दूसरे पलड़े यानी निजी क्षेत्र, पारंपरिक दस्तकारी, स्वरोजगार, खेती व बागबानी में शरीक लोगों की संख्या इससे दस गुना अधिक है।
यही ऐसा वर्ग है जो सीधे या परोक्ष में राज्य की आर्थिकी में अपना योगदान करता है। उदाहरण के लिए हिमाचल के करीब दस हजार वकील अगर पिछले चौदह महीनों से बेरोजगारी के आलम में जी रहे हैं, तो इस सन्नाटे का गणित हमारी आर्थिक व कानूनी शक्ति को सड़क पर ले आया है। इसी तरह पर्यटन उद्योग की जिन सीढि़यों पर चढ़ते हुए प्रदेश ने एक मुकाम हासिल किया था, उसमें अगर पचास हजार लोग भी बेरोजगार हुए होंगे तो यह हिमाचल का सदमा है, जबकि इसकी व्यापकता में निजी निवेश का सबसे बड़ा स्तंभ हारता हुआ नजर आ रहा है। इसी तरह बाजार व दफ्तरों की नजाकत में कर्फ्यू का असर सामने आ रहा है, तो बसों के संचालन का दर्द केवल मालिकों का नहीं उस बेरोजगारी का भी है, जो सारी ऑटो इंडस्ट्री को सदमा दे रही है। हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक व परंपरागत जीवन में आए विराम की ध्वनि हम अकेले नहीं सुन सकते, बल्कि इस शोर के गवाह हजारों बैंड बाजे वाले, शहनाई वादक, पुजारी-ज्योतिषी, रसोइए-बोटी और पूजा का सामान बेचने वाले भी हैं। इसलिए जो लोग सरकारी क्षेत्र के सुरक्षा कवच के तहत नियमित पगार पा रहे हैं, वे उजड़ते बाजार-व्यापार, निजी रोजगार-पगार और दफ्तर व सार्वजनिक संस्थाओं के हालात का एहसास करें। इस दौरान न नारे और न ही अधिकारों के जोशीले ब्यौरे चाहिए और अगर हो सके तो कोरोना से उजड़े चमन में अपने सहयोग के कुछ पौधे लगा दें। अब न तो सरकार के पक्ष में हवा बनाने की राजनीति चाहिए और न ही विपक्षी विरोध का हर विषय उचित होगा। अब कर्फ्यू कभी पलकें बंद करेंगे, तो कभी खोलेंगे, लेकिन हालात की आंखें खुली रहें, यह प्रयास हम सभी को करना होगा।
2.सीरो सर्वे कराए सरकार
कोरोना वायरस की दूसरी लहर का कहर शांत होने लगा है। कुछ राज्यों में अनलॉक के रोशनदान खुलने लगे हैं, हालांकि लॉकडाउन अब भी जारी है। देश में औसत संक्रमण दर करीब 8 फीसदी तक लुढ़क आई है। बीते 20 दिनों में सक्रिय मरीज 43 फीसदी तक घटे हैं। सक्रिय मरीज 37 लाख से कम होकर 21 लाख के करीब पहुंच गए हैं। यदि यही गति बनी रही, तो आगामी 10 दिन में आंकड़ा 10 लाख से कम हो सकता है। अलबत्ता औसत बढ़ोतरी दर -3.6 फीसदी रह गई है। राजधानी दिल्ली में तो 946 संक्रमित मामलों के साथ यह दर 1 फीसदी से भी कम हो गई है। दिल्ली, हरियाणा, उप्र, राजस्थान, मप्र आदि राज्यों में लॉकडाउन कुछ शर्तों के साथ और सीमित आधार पर खोलने की प्रक्रिया शुरू की गई है। यह बेहद जरूरी है, क्योंकि कोरोना वायरस हमारी जिंदगी और अस्मिता के साथ अभी चिपका रहेगा। यह वायरस विश्वव्यापी है। जब तक उसका वैश्विक विनाश नहीं होगा, तब तक कोरोना समाप्त होने के मुग़ालते पालना फिज़ूल है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अनलॉक करना जल्दबाजी है। चीन, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली आदि देशों में वायरस नए सिरे से फैला है, लिहाजा वहां दोबारा लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है। विशेषज्ञ फिलहाल संक्रमण के मौजूदा आंकड़े 1.65 लाख से ज्यादा को भी कमतर नहीं आंक रहे हैं। हालांकि मौतों की संख्या करीब 3000 आ गई है, फिर भी काफी है। विशेषज्ञों के आकलन हैं कि मध्य जून तक संक्रमण के औसत आंकड़े 50,000 रोजाना से भी कम हो सकते हैं और मौतें भी कम होंगी, लिहाजा अनलॉक की योजनाएं उसके मद्देनजर बनाई जा सकती हैं। विशेषज्ञों का एक तबका ऐसा है, जो आर्थिक स्थितियों को बेहद गंभीर मानता रहा है और लगातार लॉकडाउन के पक्ष में नहीं है। वह लॉकडाउन को कोरोना का उपचार मानता ही नहीं। सिर्फ व्यापक टीकाकरण ही कोविड का इलाज है। उस तबके का सवाल है कि कोरोना की मौजूदगी के मद्देनजर कब तक तालाबंदी जारी रखी जा सकती है? जीवन के साथ-साथ जीविका भी बेहद महत्त्वपूर्ण है।
लॉकडाउन के बजाय कंटेनमेंट इलाकों पर फोकस होना चाहिए, ताकि वायरस का प्रसार सीमित रखा जा सके। इसी संदर्भ में कुछ वरिष्ठ चिकित्सकों ने सीरो सर्वे को बेहद जरूरी माना है। उनका आग्रह है कि बीते 4 माह से एक भी सीरो सर्वे नहीं कराया गया है। दूसरी लहर में कोरोना वायरस का फैलाव कितना हुआ है, संक्रमण किस स्तर तक पहुंच चुका है, कितनी आबादी संक्रमित हो चुकी है और तीसरी लहर की संभावनाएं कितनी हैं, इन सवालों के वैज्ञानिक जवाब सीरो सर्वे से ही संभव हैं। यह टीकाकरण विशेषज्ञ समूह के प्रमुख एवं नीति आयोग के सदस्य डा. वी.के.पॉल का भी मानना है। यह सर्वे भारत सरकार कराए अथवा राज्य सरकारें और मेडिकल संस्थान भी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के दिशा-निर्देशों के मुताबिक करा सकते हैं, लेकिन कमोबेश 50,000 लोगों पर यह सर्वे कराया जाए। सीरो सर्वे ही वह वैज्ञानिक मानदंड था, जिसके आधार पर दूसरी लहर का मूल्यांकन सामने आया था कि यह लहर घातक और जानलेवा साबित हो सकती है। यथार्थ ऐसा ही रहा। यह दीगर है कि तब केंद्र सरकार ने ऐसी रपटों को दबा दिया था अथवा कूड़ेदान में पटक दिया था, क्योंकि 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने थे और कुंभ के रूप में आस्था का महामेला भी जुटना था। यही कारण है कि मार्च माह तक देश को कोरोना की भयावह दूसरी लहर का आभास तक नहीं हो सका।
जब संक्रमण के मामले धड़ाधड़ सामने आने लगे, अस्पतालों में भीड़ घुसने लगी, बिस्तर कम पड़ने लगे या दुकानदारी की गई, ऑक्सीजन और दवाओं की किल्लत ऐसी होने लगी कि कई मौतें हो गईं। अंततः सरकार को कबूल करना पड़ा कि दूसरी लहर इतनी अप्रत्याशित होगी, किसी ने भी अनुमान नहीं लगाया था। दरअसल सीरो सर्वे से पता लगाया जा सकता है कि कितने लोग संक्रमित हो चुके हैं और कितनों के भीतर एंटीबॉडी की स्थिति क्या है। जब संक्रमण का मूल्यांकन वैज्ञानिक तरीके से किया जाएगा, तो अनलॉक के निर्णय भी तर्कसंगत होंगे। संक्रमण का अंदाज़ा होगा, लिहाजा व्यापक स्तर पर तालाबंदी की दोबारा नौबत नहीं आएगी। अभी तो फैसले राजनीतिक आधार पर सरकारें ले रही हैं। उनकी अपनी प्राथमिकताएं हैं। यदि संक्रमण एक बार फिर भड़कता है, तो फिर तालाबंदी चस्पा कर दी जाएगी। कोरोना वायरस से युद्ध का यह तरीका कारगर साबित नहीं हो सकता।
3.निर्माण को हरी झंडी
दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के काम पर फिलहाल रोक लगाने के लिए दायर एक जनहित याचिका ठुकरा दी है। इस याचिका में यह कहा गया था कि चूंकि फिलहाल कोरोना की दूसरी लहर के चलते इस परियोजना पर काम का चलते रहना, उसमें काम करने वाले मजदूरों और आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है और इससे कोरोना फैल सकता है। सरकार का दावा था कि वहां काम करने वाले मजदूरों को टीके लगाए जा चुके हैं और उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखा जा रहा है। सरकार का यह भी कहना था कि यह याचिका सिर्फ सेंट्रल विस्टा परियोजना के काम में अड़ंगा डालने के नजरिए से लाई गई है। बहरहाल, इस याचिका पर फैसला होना सांकेतिक जीत-हार जैसा ही है, क्योंकि अब दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन के नियमों में ढील दे दी है और दिल्ली में निर्माण गतिविधियों पर से रोक हट गई है।
सेंट्रल विस्टा परियोजना पर कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी काम जारी रखने के लिए सरकार ने उसे आवश्यक सेवाओं में शामिल कर दिया था। इस बात के लिए सरकार की भारी आलोचना भी हुई थी। आलोचना का आधार यह था कि जब कोरोना ने देश को हिलाकर रख दिया है, तब इस परियोजना पर संसाधन नहीं खर्च किए जाने चाहिए। आलोचना करने वालों का कहना यह भी था कि आखिर इस परियोजना में इतना महत्वपूर्ण क्या है, जो इसे आवश्यक सेवा घोषित किया गया? सरकार का कहना यह है कि सेंट्रल विस्टा के सिर्फ उन हिस्सों पर काम चल रहा है, जिन्हें पहले ही मंजूरी दी जा चुकी थी और जिनके मद में पैसा आवंटित किया जा चुका था। यह काम और यह राशि पूरी सेंट्रल विस्टा परियोजना का एक छोटा हिस्सा है, इसलिए इससे कोई बड़ा आर्थिक भार सरकारी खजाने पर नहीं पड़ने वाला। सरकार का के इस तर्क को भी अदालत ने मान लिया कि यह परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है, क्योंकि इन इमारतों में हमारे गणतंत्र से जुडे़ विधायी काम होने हैं। इस नजरिए से भी यह जरूरी है कि ठेकेदार शापूरजी पालनजी ग्रुप ठेके में दर्ज तारीखों तक अपना काम पूरा कर सके। राजपथ पर निर्माण कार्य का नवंबर तक पूरा होना इसलिए भी जरूरी है कि जनवरी में गणतंत्र दिवस की परेड यहां आयोजित की जा सके। अदालत में इस याचिका पर बहस के दौरान काफी तीखे आरोप-प्रत्यारोप हुए। याचिकाकर्ताओं ने परियोजना पर काम करने वाले मजदूरों की स्थिति की तुलना नाजी जर्मनी के ऑशविट्ज यातना शिविरों से की, तो सरकार ने यह आरोप लगाया कि यह जनहित याचिका की आड़ में परियोजना रोकने की कोशिश है और इसलिए याचिकाकर्ताओं को ऐसा दंड मिलना चाहिए, जो सबक सिखा सके। अदालत ने सरकार के पक्ष को सही ठहराते हुए याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह याचिका और इससे जुड़ा विवाद सेंट्रल विस्टा परियोजना को लेकर चल रहे विवाद का एक अध्याय है। इस विवाद के एक पक्ष में सरकार और उसके समर्थक हैं, तो दूसरी ओर जो लोग हैं, उनमें विपक्षी दल हैं, कई पर्यावरणविद, इतिहासकार और लेखक हैं। यह विवाद अभी आगे चलता रहेगा और आखिरकार देखने की असली बात यही होगी कि जनमानस में इस भव्य और महत्वाकांक्षी परियोजना की क्या छवि बनती है।
4.कोरोना की उत्पत्ति
वुहान लैब पर सवालों का सैलाब
पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को चौपट करके व्यापक मानवीय क्षति पहंुचानेे वाले कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर पूरी दुनिया में मंथन होता रहा है। दुनिया में शक की सूई पहले से चीन की तरफ रही है क्योंकि वह जितनी तेजी से इस संकट से उबरा और अप्रत्याशित आर्थिक तरक्की इस दौर में की, उसने कई सवालों को जन्म दिया। उसने इस संकट से बचाव के उपकरणों, दवा व वैक्सीन की जैसी तैयारी कर रखी थी, उसने भी संदेह पैदा किया। यहां तक कि कूटनीतिक साम्राज्यवाद के साथ अभूतपूर्व जीडीपी में उछाल तथा अंतरिक्ष में जैसे कामयाबी के झंडे उसने उस दौर में गाड़े, जब पूरी दुनिया में मानवता संकट से कराह रही थी। हालांकि, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शुरू से इसे चीनी वायरस बता कर वुहान लैब की देन बताते रहे, लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। अब नये अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को 90 दिन में कोरोना वायरस की वुहान थ्योरी से पर्दा उठाने का आदेश दिया है। हालांकि, इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों की टीम ने वुहान का दौरा करके वायरस की लैब थ्योरी को जितनी जल्दी खारिज किया, उसने भी कई सवालों को जन्म दिया। पिछले दिनों आस्ट्रेलिया के मीडिया में इस आशय की खबर प्रकाशित हुई थी कि चीन जैविक युद्ध के रूप मे कोरोना वायरस को विकसित करने का कार्यक्रम 2015 से चला रहा था, जिसकी सोच थी कि आने वाले समय में जैविक युद्ध कारगर होंगे। यह वायरस किसी भी देश के स्वास्थ्य ढांचे को धवस्त करने में कारगर होगा। बहरहाल, अब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने के लिये गंभीर जांच की मांग उठ रही है। एक नये सनसनीखेज दावे में कहा गया है कि इस वायरस को चीन के वैज्ञानिकों ने वुहान लैब में तैयार किया था। इसके बाद वायरस को रिवर्स इंजीनियरिंग वर्जन से छिपाने की कोशिश हुई थी, ताकि दुनिया को लगे कि यह कोरोना वायरस चमगादड़ से प्राकृतिक रूप से विकसित हुआ है।
दरअसल, ब्रिटेन के प्रोफेसर एंगस डल्गालिश और नार्वे के विज्ञानी डॉ. बिर्गर सोरेनसेन ने एक अध्ययन में दावा किया कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि कोरोना वायरस सार्स-कोव-2 प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है। इसे एक विशेष प्रोजेक्ट पर काम करने वाले चीनी विज्ञानियों ने तैयार किया है, जिसमें प्राकृतिक वायरस में फेरबदल करके उसको अधिक संक्रामक बनाने का काम लैब में किया गया है। अध्ययन में दावा किया गया कि गुफाओं में रहने वाले चमगादड़ों से प्राकृतिक कोरोना वायरस निकाला गया और उसे स्पाइक से चिपकाकर घातक व तेजी से फैलने वाला बनाया गया है। शोधकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने कोविड-19 के सैंपल में एक ‘यूनिक फिंगरप्रिंट’ पाया है, जिसके बाबत कहा गया कि यह लैब में वायरस के साथ छेड़छाड़ से ही संभव था। उनका कहना है कि उनके पास वायरस पर रेट्रो-इंजीनियरिंग के सुबूत थे, लेकिन उनकी रिपोर्ट को प्रमुख जर्नलों ने अनदेखा किया। आरोप है कि चीन ने इससे जुड़ा डाटा नष्ट किया है। वहीं अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो का भी कहना है कि चीन की वुहान लैब में शोध के साथ सैन्य गतिविधियां भी होती थीं, जिससे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लोग भी जुड़े रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा खुफिया एजेंसियों को तीन माह में जांच के आदेश के साथ ही स्वास्थ्य मंत्री ने वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में चीन का नाम लिये बगैर डब्ल्यूएचओ से कहा कि कोरोना वायरस कहां से फैला, इस बाबत जांच का अगला चरण पारदर्शी होना चाहिए। दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन भी चीन के सुर में कहता रहा है कि वायरस वुहान के सी-फूड मार्केट में पाया गया था। यानी वायरस जानवरों से इंसान में फैला है। वहीं वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के हवाले से छापा है कि वर्ष 2019 नवंबर में वुहान लैब के तीन सदस्यों को कोविड जैसे लक्षणों वाली बीमारी की वजह से अस्पताल जाना पड़ा था।