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इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है
1.कोरोना का स्रोत चीन!
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन के नए कोरोना टीके ‘सिनोवैक’ को आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी है। उसे ‘कोवैक्स’ कार्यक्रम में भी शामिल किया गया है। संगठन ने चीन के पहले टीके को भी मान्यता दी थी, जबकि उसकी प्रभावशीलता 50 फीसदी ही पाई गई थी। जिन देशों में ‘सिनोफार्म’ के परीक्षण किए गए थे, उनके निष्कर्ष संदिग्ध थे। आज तक यह सवाल भी अनुत्तरित है कि क्या चीन की वुहान प्रयोगशाला में कोरोना वायरस बनाया गया और फिर उसे दुनिया में फैला दिया गया? अमरीकी राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन ने खुफिया एजेंसियों से व्यापक जांच करने के आदेश दिए हैं कि क्या कोरोना वायरस का स्रोत चीन ही है? क्या यह वायरस मानव-निर्मित है? इस संदर्भ में गौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप के कार्यकाल में यह जांच जारी थी, जिसे बाइडेन ने गैर-जरूरी और आर्थिक अपव्यय करार देते हुए खारिज करा दिया था। यह खुलासा सीएनएन टीवी नेटवर्क ने किया था।
अब राष्ट्रपति बाइडेन 90 दिन में ही जांच-रपट चाहते हैं। अमरीकी खुफिया सूत्रों ने ही यह ख़बर दी थी कि चीन के वैज्ञानिक वुहान प्रयोगशाला में जैविक बम और अस्त्र बनाने के प्रयोग कर रहे हैं। चीन उन अस्त्रों का, वायरस के तौर पर, दुनिया भर में प्रयोग करेगा। यदि युद्ध के आसार बने, तो इस बार जैविक, रासायनिक हथियारों वाला विश्व-युद्ध होगा! दरअसल जांच बिठाकर अमरीका चीन की एक बार फिर घेराबंदी करना चाहता है, जबकि ‘सिनोवैक’ को मान्यता देकर विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन को ‘स्वास्थ्य नायकों’ की पंक्ति में स्थापित करने की इच्छा रखता है। आखिर पृष्ठभूमि में क्या समीकरण काम कर रहे हैं? चीन वायरस के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका सवालिया रही है, क्योंकि जो अंतरराष्ट्रीय जांच-दल वुहान गया था, उसमें आधे वैज्ञानिक चीनी थे अथवा चीन मूल के थे। शायद यही कारण है कि आज तक जांच-दल की कोई ठोस और वैज्ञानिक रपट दुनिया के फलक पर पेश नहीं की जा सकी है। चीन के कारण ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लंबे वक्त तक कोरोना को ‘वैश्विक महामारी’ घोषित नहीं किया था। चीन से कोरोना वायरस का फैलाव हुआ, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आज तक बुनियादी और सैद्धांतिक तौर पर इस यथार्थ को स्वीकार नहीं किया है। लिहाजा विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के आपसी समीकरण संदिग्ध हैं। अमरीका खुफिया जांच के जरिए इन सवालिया संबंधों को बेनकाब करना चाहता है।
अब 16 जून को अमरीका और रूस के राष्ट्रपति जिनेवा में अति महत्वपूर्ण मुलाकात कर रहे हैं। यह भी चौंकाता है। कभी एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन रहे और वैचारिक स्तर पर भी विपरीत रहे ये दोनों देश मौजूदा कालखंड में नए संबंधों को परिभाषित करने जा रहे हैं। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन चीन का साझा विरोध साझा मुद्दा बनकर जरूर उभरा है। कोरोना के संदर्भ में चीन पर फोकस जरूर रहेगा। रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी ने ही 2016 में दुष्प्रचार किया था कि अमरीका ने दुनिया में एड्स को फैलाया है। यह सच साबित नहीं हो सका, लेकिन महाशक्तियां अक्सर ऐसा करती रही हैं, ताकि फोकस बदलते रहें और देश ‘खलनायक’ स्थापित होते रहें। हालांकि अमरीका आज जिन जैविक, रासायनिक हथियारों की बात कर रहा है, उसने ही इराक युद्ध में इन हथियारों का अघोषित इस्तेमाल किया था। बल्कि तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन पर ऐसे अस्त्र बनाने के आरोप भी अमरीका ने ही लगाए थे, लेकिन खोदा पहाड़, निकली खाली सुरंग…! अब अमरीका और चीन के दरमियान प्रतिद्वंद्विता जारी है।
हालांकि चीन में भी कोरोना संक्रमण फैलने की ख़बरें आती रही हैं, लेकिन कितने संक्रमित हुए और कितनी मौतें हुईं, इसका पुष्ट आंकड़ा आज तक दुनिया में नहीं दिया गया। शायद विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी जानकारी नहीं है! अमरीका में कोरोना के स्रोत को लेकर भिन्न मत रहे हैं। राष्ट्रपति बाइडेन के प्रमुख सलाहकार एंथनी फाउची भी लैब थ्योरी का खंडन करते थे। अब उन्होंने पलटी मार ली है और वह समर्थन कर रहे हैं कि कोरोना वायरस वुहान की प्रयोगशाला में मानव-निर्मित वायरस हो सकता है। बहरहाल अमरीकी जांच का निष्कर्ष और मकसद क्या है, इसका खुलासा बाद में ही संभव है, लेकिन अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए चीन विश्व स्वास्थ्य संगठन, गावी और यूनिसेफ के मंचों का इस्तेमाल कर सकता है।
2.नौकरशाही के ऊंचे दरवाजे
बेशक यह बड़ी घटना नहीं, लेकिन कोरोना काल में प्रशासनिक दरगाह ढूंढने की कोशिश तो है ही। शिमला सचिवालय की रौनक में मशरूफ नौकरशाही को कहीं ऊंचे दरवाजों से गुजारने की पहल हुई है। सत्ता के भरोसेमंद अधिकारियों या अधिकारों के भरोसे में राम सुभग सिंह,आर डी धीमान और ओंकार शर्मा को अतिरिक्त दायित्व की कसौटी पर कुछ फासले चलने होंगे, तो नई जिम्मेदारियों में निशा सिंह, कमलेश पंत, डा. अजय कुमार, डा. एसएस गुलेरिया तथा हंस राज शर्मा जैसे आईएएस अधिकारी अपना फलक विस्तृत कर रहे हैं। यह नए अमन की बिसात है, जो कोरोना काल के अकाट्य सत्य को सुशासन के पैमानों में भरेंगे। यानी हम आने वाले हर प्रशासनिक फेरबदल में सत्ता की इच्छा शक्ति तथा सुशासन की तंदरुस्ती का हिसाब लगाएंगे। हालांकि कोरोना काल के बीच बनती बिगड़ती छवियों का कोई मध्यांतर नहीं हुआ और संकट में राज्य के संकटों को जनता ने अपने अनुभवों में तसदीक किया।
विभागीय परिवर्तनों में मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार परिलक्षित है, जबकि मंत्रियों का यह दौर एक आधी नियुक्ति की दिलचस्पी हो सकती है। जैसे हम मान सकते हैं कि ओंकार शर्मा के पास बागबानी के प्रधान सचिव पद का अतिरिक्त कार्यभार दरअसल सरकार के पावर पुल मंत्री महिंद्र सिंह का पसंदीदा निर्णय रहा होगा। मुख्यमंत्री के आसपास रहे विभागीय जौहर में पुनः आरडी धीमान और राम सुभग सिंह का बढ़ता दायरा देखा जा सकता है। सरकार को अपने कार्यकाल के अंतिम पड़ाव में नई ऊर्जा का संचार इसलिए भी करना है, क्योंकि मंजिल से पहले दो उपचुनाव, कोरोना काल में रुके हुए विकास का अंजाम, घोषणाओं और वादों का इंतजाम और सुशासन की पटरियों पर बहुत कुछ लिखना होगा। यह सरकार इन्वेस्टर मीट के बहाने आशाओं के कई सेतु बनाती रही है, तो अब इनसे गुजरने का वक्त नजदीक आ रहा है। विकास के नए मॉडल में इतिहास रचने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जो खाका खींचा था उसमें इसलिए भी रंग भरने जरूरी हैं, क्योंकि जनता ने डबल इंजन सरकार के मुहावरे का अब अर्थ ढूंढना है। बेशक सचिवालय की बैठकों में तमाम कार्यों की समीक्षाएं अनवरत जारी होंगी, लेकिन इस दौर की सबसे बड़ा विश्लेषण कोरोना काल कर रहा है। इस समय हिमाचल का सबसे अहम विभाग हर दिन पूरी जनता के स्वास्थ्य का हाल पूछ रहा है, अतः सचिव अमिताभ अवस्थी का दायित्व पूरी सरकार की छवि का उत्तर होगा। सरकार ने एक साथ तीन नए नगर निगम बना कर शहरी विकास मंत्रालय का प्रसार किया है, तो समूची व्यवस्था में आयुक्त स्तर के अधिकारियों के दम पर परिवर्तन सामने लाना पड़ेगा। इसी तरह बिना परीक्षा और स्कूल से दूर ऑनलाइन शिक्षा में नए लक्ष्य और उम्मीदें पिरोने के लिए संबंधित विभाग के सचिव की भूमिका में कई प्रयोग व नवाचार की ऊर्जा अभिलषित है।
ट्रांसफर की सुगबुगाहट जिला और उपमंडल स्तर तक अगर पहुंच रही है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार एक नई पिच पर खुद को आजमाने जा रही है। कोरोना काल के दौरान कई उपायुक्तों ने अपने दायित्व के ऐसे उदाहरण पेश किए हैं कि जनता भी सोशल मीडिया में उनके प्रति अपना मोह व कृतज्ञता पेश करती दिखाई देती है। हमारा मानना है कि चिकित्सा संकट के इस दौर में प्रशासन ने न केवल तत्परता दिखाई, बल्कि नेक कार्य भी किए। इसलिए आगामी स्थानांतरणों में जिलाधीश बदले जाते हैं, तो पहले से स्थापित रिवायतों का अनुसरण करना पड़ेगा। कांगड़ा, मंडी या शिमला जैसे बड़े जिलों के कोरोना आंकड़ों का विश्लेषण सीधे-सीधे प्रशासनिक नेतृत्व से जुड़ा रहा, तो बार्डर जिलों की चौकसी में प्रशासनिक व पुलिस व्यवस्था ने खुद को पारंगत किया है। कोरोना काल के मध्य हर स्थानांतरण का मतलब केवल स्थानांतरण नहीं, बल्कि एक खास परिपाटी का अनुसरण है। उम्मीद है सरकार आगे चलकर जनता की बेहतरी के लिए प्रशासनिक क्षमता व ऊर्जा को एक नए आयाम तक पहुंचा पाएगी।
3.मोदी मैजिक का परीक्षा वर्ष
कृपया याद करें। दो साल पहले आज के दिन पूरा देश मानो ‘मोदी मैजिक’में डूब-उतरा रहा था। शाम को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में शपथ लेते समय उनका आत्मविश्वास देखने लायक था। वजह? 2014 के मुकाबले अधिक सीटें हासिल कर भाजपा राजग सहयोगियों के बिना भी हुकूमत चलाने में सक्षम थी। यह पहला भाजपा मंत्रिमंडल था, जिसमें ‘स्वास्थ्य कारणों’से सुषमा स्वराज नहीं थीं। कल तक गृह मंत्री रहे राजनाथ सिंह रक्षा मंत्रालय संभालने जा रहे थे। उनकी जगह अमित शाह ने ले ली थी। तय था, आने वाले दिन आतिशी होने वाले हैं।
अगले कुछ महीनों तक ऐसा लगा, जैसे कोई रन-पिपासु बल्लेबाज मैदान के कोने-कोने पर छक्कों और चौकों की बारिश कर रहा है। अनुच्छेद 370 को निरस्त करते हुए जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया। देश के नक्शे में लद्दाख नाम का एक नया केंद्र शासित प्रांत उदित हो चुका था और जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा भी अतीत बन गया था। इससे पहले तीन तलाक को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया था। अयोध्या में मंदिर-निर्माण का शिलान्यास सहित ये कुछ ऐसे फैसले थे, जिन पर भारतीय जनता पार्टी बरसों से बस घोषणाएं करती आई थी। नरेंद्र मोदी ने उन्हें अमलीजामा पहना दिया था। इसके साथ, उन्होंने आर्थिक मोर्चे पर भी 2024 तक भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा। सरकारी बैंकों का डूबता कर्ज इसमें बड़ी बाधा था, लिहाजा 19 बैंकों का विलय कर चार बडे़ बैंक बनाने का एलान किया गया। किसानों के कड़े प्रतिरोध के बावजूद कृषि उत्पाद खरीदी के कानून बदल दिए गए। पिछली पहली फरवरी को पेश सालाना बजट में सरकारी उपक्रमों के निजीकरण का रास्ता भी हमवार कर दिया गया। साफ था, मोदी मन मुआफिक आर्थिक सुधारों के लिए हर हाल में प्रतिबद्ध हैं। सब कुछ योजनानुसार चल रहा था, पर किसने सोचा था कि चीन में कहर मचा रहा कोरोना क्रूर दृष्टि से भारत को घूर रहा है? इसी महामारी के कारण आज जब प्रधानमंत्री अपने दूसरे कार्यकाल के तीसरे वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, तब उनके चारों ओर चुनौतियों की विशाल चट्टानें खड़ी हैं।
अगर हम तीसरे साल की तीन सबसे बड़ी चुनौतियों का आकलन करें, तो कोरोना अपनी निर्मम भयावहता के साथ सबसे आगे खड़ा नजर आता है। अब तक इस महारोग से भारत में आधिकारिक तौर पर 3,22,512 लोग मर चुके हैं। विपक्ष और कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि मरने वालों की तादाद इससे कहीं ज्यादा है। इन भयावह आंकड़ों के बीच विशेषज्ञ चेतावनी देते नजर आते हैं कि अभी तीसरी लहर आनी शेष है। वे यह भी कहते हैं कि अगर देश की 70 से 80 फीसदी आबादी को तत्काल प्रतिरोधी टीके नहीं लगे, तो ऐसी लहरें आगे भी आती रहेंगी। सरकार का दावा है कि दिसंबर तक सभी लोगों को टीका लगा दिया जाएगा, पर अभी तक सभी इंतजाम नाकाफी साबित हुए हैं। 18 या उससे अधिक वर्ष के समस्त नागरिकों के टीकाकरण की घोषणा तो कर दी गई, परंतु सैकड़ों की संख्या में टीकाकरण केंद्र बंद पड़े हैं। उन्हें कब इन प्राणरक्षक बूंदों की आपूर्ति होगी, इसका सटीक जवाब किसी के पास नहीं है। तमाम सूबाई सरकारें इसके विरोध में मुखर हैं। उनका आरोप है, सरकार ने सियासी लाभ के लिए महामारी के खतरे की अनदेखी की। महामारियां देर-सबेर बीत जाती हैं, पर उनके दिए जख्म गहरे होते हैं। भारत की माली हालत पर इसने अभी से गहरा असर डालना शुरू कर दिया है। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के मुताबिक, पिछली 23 मई को खत्म हुए सप्ताह में ग्रामीण बेरोजगारी दर 13.5 फीसदी पहुंच गई। यह कितनी तेजी से बढ़ रही है, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि 9 मई को यह आंकड़ा 7.29 फीसदी था। शहरों में बेरोजगारी दर 17.4 फीसदी पाई गई और राष्ट्रीय बेरोजगारी दर भी नए सोपान चढ़ती हुई 14.7 फीसदी पर पहुंच गई। अगर लॉकडाउन जल्दी नहीं खत्म हुए, तो स्थिति और भयावह हो सकती है। आंशिक लॉकडाउन और स्वास्थ्य खर्चों के चलते भारत के ‘महान मध्यवर्ग’से 23 करोड़ लोग फिर से गरीबी रेखा के नीचे जाने को अभिशप्त हुए हैं।
4.अर्थव्यवस्था की फिक्र
संकट से उबरने को मिले आर्थिक प्रोत्साहन
यूं तो कोविड संकट से पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट का रुझान देखा जा रहा था, लेकिन अप्रत्याशित कोरोना संक्रमण ने उसे बड़ी चोट दी है। वित्तीय वर्ष 2020 में विकास दर माइनस 7.3 रही है। यह अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर में माइनस तेईस प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी, जो बाकी की तीन तिमाहियों में संभली है। चौथी तिमाही में विकास दर का धनात्मक होना अच्छा संकेत कहा जा सकता है। दरअसल, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही थी, दूसरी लहर की भयावहता ने देश की आर्थिकी को बड़ी चोट दी है। इस बार की लहर का खासा असर ग्रामीण इलाकों में देखा गया। जब मांग घटी तो अर्थव्यवस्था का प्रभावित होना लाजिमी था। यही वजह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्ष 2022 तक तेजी से उभरने के जो आकलन किये जा रहे थे, दूसरी लहर ने उन पर पानी फेर दिया है। जाहिरा सी बात थी कि कोरोना संकट के चलते अनिश्चय के बीच लोगों ने अपने खर्चों में कटौती की है। यही वजह है कि उपभोक्ता उत्पादों की खरीद में गिरावट आई है। घरेलू उपयोग के उत्पादों मसलन कारों, मोबाइल आदि की खरीद में गिरावट आई है और पेट्रोल की खपत भी घटी है, जिसका प्रभाव यह हुआ कि देश में रोजगार के अवसरों में संकुचन हुआ। यही वजह है कि आकलन लगाया गया है कि देश में दूसरी लहर के दौरान एक करोड़ रोजगार खत्म हुए हैं और बेरोजगारी की दर में तेजी से वृद्धि हुई है। बताया जा रहा है कि इस दौरान 97 फीसदी लोगों की आय में गिरावट आई है। निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था को महामारी से पूर्व की अवस्था में लौटने में कुछ वक्त लगेगा। बहरहाल, यह नहीं भुलाया जा सकता कि देश की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2016-17 से ही गिरावट का ट्रेंड दिखने लगा था, जो देश में मंदी की आहट का संकेत भी था।
बहरहाल, महामारी के संकट में देश के करोड़ों लोग फिर से गरीबी की दलदल में धंस गये हैं। कोरोना संकट के पहले दौर में सरकार ने कुछ बड़े राहत पैकेज दिये थे। महामारी के दौरान सरकार के आय के स्रोतों का भी संकुचन हुआ है। लिहाजा सरकारी खजाने की स्थिति भी खास उत्साहजनक नहीं है। सरकार को कुछ मौद्रिक उपाय तो करने ही होंगे, जो लोगों के हाथ में नकदी बढ़ाएं, ताकि खर्च बढ़ने से उपभोग को बढ़ावा मिल सके। इससे उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और जीडीपी की स्थिति में भी सुधार होगा। बहरहाल, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हालिया आर्थिक आंकड़े उस संकट काल के हैं, जिसमें पूरी दुनिया कराह रही है। फिर भी सरकार को राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत है। वह भी ऐसे वक्त में जब दूसरी लहर में संक्रमण दर में तो गिरावट दर्ज की जा रही है, लेकिन अभी तीसरी लहर की आशंका भी बलवती हो रही है। हमारे लिये यह राहत की बात होनी चाहिए कि खेती के प्राणवायु मानसून ने देश में दस्तक दे दी है और उसके सामान्य होने की बात कही जा रही है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना महामारी के दौरान केवल कृषि क्षेत्र ही वह सेक्टर था, जिसने चारों तिमाही के दौरान साढ़े तीन से साढ़े चार फीसदी की विकास दर बनाये रखी। बाकी सेवा क्षेत्र, पर्यटन, विनिर्माण व उद्योगों में तेजी से गिरावट दर्ज की गई थी। कह सकते हैं कि कृषि सेक्टर ने देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को संबल दिया। इसके बूते ही देश के करोड़ों गरीबों को मुफ्त अनाज संकट के इस दौर में उपलब्ध कराया जा सका। ऐसे में सरकार की कोशिश होनी चाहिए कि आय के नये स्रोत तलाशे और आम आदमी के हाथ में ज्यादा नकदी पहुंचाने की व्यवस्था करे ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद मिल सके। यहां यह भी जरूरी है कि देश में जल्द से जल्द टीकाकरण कार्यक्रम को पूरा किया जाये ताकि स्थिति सामान्य होने से अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों को गति मिल सके।