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EDITORIAL TODAY (HINDI)
- September 17, 2021
- Posted by: Maya
- Category: Bank PO/Clerk Editorial Hindi

इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है।
1.राहत की कॉल
टेलीकॉम को प्राणवायु से आर्थिकी को गति
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले से दूरसंचार क्षेत्र में सुरक्षा उपायों के साथ सौ फीसदी विदेशी निवेश की अनुमति और राहत पैकेज से इस संकटग्रस्त उद्योग को बड़ी राहत मिलेगी। केंद्र सरकार ने वित्तीय संकट से जूझ रही टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम से जुड़े भुगतान को चार साल तक टालने को भी मंजूरी दी है। ऐसा माना जा रहा है कि इन संरचनात्मक सुधारों से दूरसंचार सेक्टर के स्वरूप में धनात्मक बदलाव आयेगा। विश्वास जताया जा रहा है कि उद्योग जगत अब निवेश बढ़ाकर डिजिटल मुहिम को गति दे सकेगा। साथ ही गुणात्मक मोबाइल सेवा के साथ कॉल ड्राप की समस्या से भी निजात मिलेगी। निस्संदेह संकटग्रस्त कंपनियों को विदेशी निवेश की छूट मिलने से दूरसंचार सेवा प्रदाता कपंनियों के लिये नकदी का प्रवाह बढ़ेगा, जो निवेश करने वाले बैंकों के भी हित में रहेगा। दरअसल, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिये गये फैसले में समायोजित सकल राजस्व यानी एजीआर का भुगतान को चार साल के लिये टाला गया है ताकि एक अक्तूबर से लागू होने वाली छूट के चलते कंपनियां संरचनात्मक विकास पर ध्यान दे सकें। लेकिन इस बकाया राशि पर ब्याज का भुगतान करना होगा। चार साल बाद कंपनियों को शेष राशि चुकानी होगी। ऐसा न होने पर सरकार भुगतान को इक्विटी में बदल सकती है। वहीं सरकार ने दूरसंचार के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 49 फीसदी से बढ़ाकर सौ फीसदी तो किया है, लेकिन इसमें सुरक्षा उपायों का पालन होगा। मसलन यह निवेश उन्हीं देशों से हो सकेगा, जिनसे निवेश की अनुमति भारत सरकार ने दी है। दरअसल, पिछले दिनों आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि यदि सरकार मदद को आगे नहीं आती तो वोडाफोन आइडिया दिवालिया हो सकती है। सरकार ने इस पत्र में उठाई गई समस्या को गंभीरता से लिया। फिर सरकार की पहल के बाद टेलीकॉम सेक्टर की तसवीर ही बदल गई।दरअसल, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर बकाया के तौर पर 1,19 292 करोड़ रुपये के भुगतान करने को कहा था, जिसमें एक बड़ा हिस्सा भारती एयरटेल व वोडाफोन का था। इसके एक हिस्से का भुगतान इन कंपनियों ने किया भी था। अब सरकार की पहल के बाद टेलीकॉम कंपनियों को बैंकों से ऋण लेने और इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं को तर्कसंगत बनाने की पहल भी की गई है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ड्रोन व वाहन उद्योग की विनिर्माण क्षमता में वृद्धि के लिये 26,058 करोड़ रुपये का उत्पादन आधारित प्रोत्साहन यानी पीएलआई योजना को भी हरी झंडी दी है। इसमें वैकल्पिक ऊर्जा वाले वाहन मसलन इलेक्ट्रिकल व हाइड्रोजन फ्यूल सेल वाहन भी शामिल होंगे। इस पैकेज का बड़ा हिस्सा जहां वाहन उद्योग को मिलेगा, वहीं एक सौ बीस करोड़ रुपये ड्रोन उद्योग के लिये आवंटित होंगे। सरकार की मंशा है कि देश में कलपुर्जा उद्योग का विकास किया जाये। इससे जहां उत्पादन व निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, वहीं देश में रोजगार का भी विस्तार किया जा सकेगा। सरकार का सोचना है कि इस कदम से वैश्विक आपूर्ति श्रृखंला में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा, जिससे वैश्विक वाहन कारोबार में भारत की भागेदारी बढ़ेगी। दूसरी ओर सरकार चाहती है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में ऑटो क्षेत्र की हिस्सेदारी में वृद्धि हो। वह चाहती है कि इसे सात फीसदी से बढ़ाकर बारह फीसदी के करीब लाया जाये। उम्मीद है कि सरकार के इस फैसले से अर्थव्यवस्था को तेजी मिलेगी। दूरसंचार कंपनियों के लिये घोषित राहत पैकेज के बाद टेलीकॉम कंपनियों के शेयरों में तेजी देखी गई। शेयर बाजार रिकॉर्ड स्तर पर बंद हुआ। निस्संदेह कर्ज में डूबा दूरसंचार क्षेत्र लंबे समय से इस राहत की प्रतीक्षा कर रहा था। साथ ही दूरसंचार क्षेत्र में निवेश की छूट मिलने से कंपनियां नए विदेशी निवेशक तलाश सकेंगी। इस नये निवेश से देश में 5-जी तकनीक के क्षेत्र में भी प्रगति हो सकेगी। साथ ही देश में इन्फ्रास्ट्राक्चर में सुधार का लाभ देश के करोड़ों मोबाइल उपभोक्ताओं को भी मिलेगा।
2.निजी हाथों में एयरपोर्ट
हवाई अड्डों पर सवार हिमाचल की राजनीति के लिए इमरजेंसी लैंडिंग जैसी स्थिति इसलिए पैदा हो रही है, क्योंकि प्रदेश के सबसे सक्षम और कार्यशील कांगड़ा एयरपोर्ट की बोली लगने जा रही है। देश के तेरह छोटे-बड़े हवाई अड्डों के निजीकरण की फांस में कांगड़ा एयरपोर्ट अब अपने पंख केवल निवेशक की इच्छा से ही खोल पाएगा यानी अब तक सर्वेक्षणों की खुराक पर इसके विस्तार की जो भी मुनादी हुई, उसे नए सिरे से पीपीपी मोड के तहत खरीददार की जरूरत रहेगी। ऐसा नहीं कि निजीकरण की परिपाटी में एयरपोर्ट की संभावनाएं कम हो जाएंगी, बल्कि आज के हालात में ऐसी सूचनाएं ही राष्ट्रीय योजना है यानी भविष्य की मिलकीयत में निजी क्षेत्र ही सफलता का परिचायक है। कुछ बड़े एयरपोर्ट के साथ कलस्टर में छोटे हवाई अड्डे जोड़कर इन्हें निजी हाथों के सुपुर्द करने की योजना पुरानी है। पहले कोच्चि एयरपोर्ट का निजीकरण 1999 में शुरू हुआ और इसके साथ मेक इन इंडिया के डिजाइन में दिल्ली-मुंबई हवाई अड्डों ने अपनी संभावनाओं और क्षमता का विस्तार किया। अडानी गु्रप ने अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, तिरुवनंतपुरम, मंगलुरु और गुवाहटी जैसे हवाई अड्डों को हासिल करके नई व्यवस्था में काम करना शुरू किया है। यह दीगर है कि केरल सरकार ने तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे को लीज पर देने का विरोध किया है।
अब भुवनेश्वर, वाराणसी, अमृतसर, रायपुर, इंदौर व त्रिची जैसे बड़े हवाई अड्डों के साथ सात छोटे हवाई अड्डे जोड़ कर कुल 13 एयरपोर्ट लीज पर जा रहे हैं। इनमें से हिमाचल का कांगड़ा एयरपोर्ट अब अमृतसर के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के साथ जुड़कर निजी निवेश की राहें ताक रहा है। इस फैसले के कई मायने व आधार हैं, जबकि दूसरी ओर राष्ट्रीय हवाई सेवाओं के नए मानचित्र पर अंकित होने का यह एक अवसर भी है। देश में हर तरह की हवाई पट्टियों की संख्या 449 आंकी गई है, जिनमें से एयरपोर्ट अथारिटी ऑफ इंडिया के अधीन 126 हवाई अड्डे आते हैं। देश में 13 अंतरराष्ट्रीय, 85 घरेलू और सैन्य पट्टियों मेें से 28 नागरिक उड्डयन सुविधाओं को भी पूरा करते हैं। इसी मानचित्र को सुदृढ़, सक्षम और विस्तृत आकार देने की रूपरेखा वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पेश कर चुकी हंै और केंद्र सरकार 2024 तक 3700 करोड़ एयरपोर्ट पर निवेश करना चाहती है। ऐसे में जबकि प्रदेश का सबसे कामयाब व कार्यशील एयरपोर्ट लीज पर जा रहा है, तो अन्य हवाई अड्डों समेत प्रस्तावित मंडी एयरपोर्ट का भविष्य क्या होगा। मार्च 2020 के दस्तावेज बताते हैं कि अमृतसर एयरपोर्ट मात्र 92 लाख के लाभ में था, जबकि कांगड़ा हवाई अड्डे का घाटा 9.72 करोड़ तक था।
बावजूद इसके राष्ट्रीय मूल्यांकन में कांगड़ा हवाई अड्डे की बोली इसे भविष्य के क्षेत्रीय या ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट की संभावना से जोड़ती है। देश अब तक दो दर्जन एयरपोर्ट को लीज पर देकर हवाई यात्राओं की परिपाटी, कुशल संचालन की पद्धति और पर्यटन की हैसियत में हवाई अड्डों का विस्तार देख रही है। निजी क्षेत्र में जाने से क्षमता विकास, अतिरिक्त रन वे, टर्मिनल और सर्किट, डेस्टिनेशन व कांवेंशन टूरिज्म को नई दिशा मिलेगी। उदाहरण के लिए वाराणसी-कुशीनगर-गया की हवाई पट्टियों का निजीकरण बौद्धसर्किट की कामयाबी का नया अध्याय लिख सकता है। इसी तरह कांगड़ा-अमृतसर-जयपुर हवाई अड्डों की निजी भूमिका में पर्यटन के कई सर्किट विकसित होने की संभावना को नई ऊर्जा मिल सकती है। निजीकरण की ओर बढ़ते कांगड़ा एयरपोर्ट का नजरिया अब वैश्विक प्रतिस्पर्धा के आंगन में कैसे महकता है, लेकिन इस फैसले से हिमाचल की तमाम हवाई पट्टियों के अरमान बदलेंगे। यानी जिस निवेश की खोज में मंडी हवाई पट्टी की प्रस्तावना हुई है, उसके ऊपर कोई निवेशक मोहित होगा या जो अमृतसर के अंतरराष्ट्रीय महत्त्व के साथ-साथ धर्मशाला की अंतरराष्ट्रीय संभावना को जोड़ेगा, वह अधिक मेहरबान होगा। मसला हवाई अड्डे के विस्तार को नया आयाम देने का है, तो राष्ट्रीय हवाई अड्डों की अब निजी फेहरिस्त ही कारगर होगी और इस तरह कांगड़ा एयरपोर्ट के दिन बहुरेंगे।
3.आतंक का बदलता चरित्र
दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने आतंकवाद के जिन 6 साजि़शकारों को गिरफ्तार किया है, उससे एक और पाकपरस्त साजि़श बेनकाब हुई है। संतोष है कि देश के कुछ बड़े और प्रमुख शहर दहलने से बच गए। अभी तो साजि़श का अर्द्धसत्य ही सामने आया है। अभी 16 और आतंकियों की धरपकड़ शेष है। उन्हें बांग्लाभाषी बताया जा रहा है और वे भी साजि़श का हिस्सा रहे हैं। उन्हें दबोचने के बाद निष्कर्ष तक पहुंचना आसान होगा कि आतंक का चक्रव्यूह रचने वाले किरदार कौन-कौन हैं और उनकी भूमिका क्या रही है? अलबत्ता इतना खुलासा जरूर हुआ है कि राजधानी दिल्ली समेत अयोध्या, वाराणसी, प्रयागराज और मुंबई आदि प्रमुख शहर आतंकियों के निशाने पर थे। कुछ स्थलों की रेकी भी की जा चुकी थी। रामलीला मंचन, नवरात्र और दुर्गा-पूजा पंडालों में उमड़ी भीड़ पर विस्फोटक हमले कर, नरसंहार को अंजाम देना, आतंकियों के मंसूबे थे। वे इस बार हमारी दीवाली भी काली करने की फिराक में थे। फिलहाल इन शहरों में सुरक्षा-व्यवस्था अति अलर्ट कर दी गई है। शर्मनाक तथ्य यह है कि ‘जयचंद’ की तरह कुछ काली भेड़ें भी साजि़श की किरदार थीं। बहरहाल मंसूबे और साजि़श नाकाम रहे हैं।
नापाक इरादे भी बेनकाब हुए हैं, लेकिन साजि़श के कुछ कोने अब भी अनचिह्ने हैं। विस्फोटकों की सप्लाई कई जगह हुई होगी। आईईडी की जानकारी भी उपलब्ध कराई जा चुकी होगी। जो 16 चेहरे अभी तक गिरफ्त से बाहर हैं, वे अनचाही वारदात को अंजाम भी दे सकते हैं। दरअसल इस साजि़श से यह तथ्य भी उभरा है कि आतंकवाद का चेहरा, चरित्र और उसकी चाल भी बदल चुके हैं। अब आतंकी सीमा-पार से घुसपैठ की खतरनाक कोशिश ही नहीं करते, बल्कि मस्कट के जरिए पाकिस्तान तक की यात्रा भी कर लेते हैं और आतंकवाद की टे्रनिंग लेकर उप्र में लौट भी आते हैं। उनकी सामान्य पहचान कैसे संभव है? मौजूदा आतंकी साजि़श में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का भी जि़क्र हुआ है। उसके भाई अनीस को हथियारों की सप्लाई और फंडिंग का दायित्व सौंपा गया था। पकड़े गए आतंकियों में कुछ चेहरे ऐसे भी हैं, जो कई सालों से डॉन के संपर्क में थे और साजि़शें रच रहे थे। हमारे देश मंे हवाला कारोबार के जरिए अवैध धन आता रहा है। कुछ बाज़ारों में तो यह खुलेआम है, जाहिर है कि सरकार की जानकारी में भी होगा! हवाला पैसे की आपूर्ति और उसके पीछे की साजि़श को रोकना कैसे संभव होगा?
नई तकनीक और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के दौर में आतंकी हमले भी उन्हीं के जरिए किए जा रहे हैं। आईईडी बनाने की नई तकनीकें आ गई हैं। ड्रोन के जरिए हमले भी नई प्रौद्योगिकी के कारण संभव हो रहे हैं। फिर भारत उनसे अछूता कैसे रह सकता है। उसके पलटवार के तरीके भी इस्तेमाल करने होंगे। हमारी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां चौकस हैं, लिहाजा कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं किया जा सका है, लेकिन खौफनाक साजि़शें मंडरा तो रही हैं। संभव है कि पाकिस्तान में जिन चेहरों को 15 दिन की टे्रनिंग फौजी अफसरों ने दी थी, उनमें नई तकनीक के तरीके भी बताए गए हों! परंपरागत बंदूक, राइफल, रॉकेट, ग्रेनेड आदि के अलावा भी हमलों की प्रविधियां सिखाई गई हों! बहरहाल अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत के बाद आतंकी हरकतें और साजि़शें बढ़ने के आकलन दुनिया की बड़ी ताकतों ने किए थे। आत्मघाती फिदायीन के दस्ते बनाने की ख़बर सामने आई है। फिलहाल वह आतंकवाद भारत तक नहीं पहुंचा है और न पकड़े गए चेहरों में से किसी के संबंध तालिबान से स्पष्ट हुए हैं, लेकिन हमारी एजेंसियों को चौकस तो होना पड़ेगा। यह साजि़श भी खुफिया लीड के आधार पर ही बेनकाब हो सकी है। बीते कुछ दिनों से कश्मीर घाटी के बजाय जम्मू संभाग में आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं, लिहाजा मुठभेड़ की भी ज्यादा घटनाएं सामने आ रही हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के पुराने अस्तित्व को कुचला जा चुका है, लेकिन तालिबान की कामयाबी के बाद पाकिस्तान हम पर आतंकी हमलों की गति तेज कर सकता है। भारत ने पाकिस्तान से संबंधित जो आतंकी पकड़े हैं, उनके कबूलनामों के आधार पर और अन्य सबूतों को लेकर डोजि़यर तैयार करने चाहिए और फाट््फ में दर्ज कराने चाहिए, ताकि उस पर कार्रवाई हो।
4.आतंक का बदलता चरित्र
दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने आतंकवाद के जिन 6 साजि़शकारों को गिरफ्तार किया है, उससे एक और पाकपरस्त साजि़श बेनकाब हुई है। संतोष है कि देश के कुछ बड़े और प्रमुख शहर दहलने से बच गए। अभी तो साजि़श का अर्द्धसत्य ही सामने आया है। अभी 16 और आतंकियों की धरपकड़ शेष है। उन्हें बांग्लाभाषी बताया जा रहा है और वे भी साजि़श का हिस्सा रहे हैं। उन्हें दबोचने के बाद निष्कर्ष तक पहुंचना आसान होगा कि आतंक का चक्रव्यूह रचने वाले किरदार कौन-कौन हैं और उनकी भूमिका क्या रही है? अलबत्ता इतना खुलासा जरूर हुआ है कि राजधानी दिल्ली समेत अयोध्या, वाराणसी, प्रयागराज और मुंबई आदि प्रमुख शहर आतंकियों के निशाने पर थे। कुछ स्थलों की रेकी भी की जा चुकी थी। रामलीला मंचन, नवरात्र और दुर्गा-पूजा पंडालों में उमड़ी भीड़ पर विस्फोटक हमले कर, नरसंहार को अंजाम देना, आतंकियों के मंसूबे थे। वे इस बार हमारी दीवाली भी काली करने की फिराक में थे। फिलहाल इन शहरों में सुरक्षा-व्यवस्था अति अलर्ट कर दी गई है। शर्मनाक तथ्य यह है कि ‘जयचंद’ की तरह कुछ काली भेड़ें भी साजि़श की किरदार थीं। बहरहाल मंसूबे और साजि़श नाकाम रहे हैं।
नापाक इरादे भी बेनकाब हुए हैं, लेकिन साजि़श के कुछ कोने अब भी अनचिह्ने हैं। विस्फोटकों की सप्लाई कई जगह हुई होगी। आईईडी की जानकारी भी उपलब्ध कराई जा चुकी होगी। जो 16 चेहरे अभी तक गिरफ्त से बाहर हैं, वे अनचाही वारदात को अंजाम भी दे सकते हैं। दरअसल इस साजि़श से यह तथ्य भी उभरा है कि आतंकवाद का चेहरा, चरित्र और उसकी चाल भी बदल चुके हैं। अब आतंकी सीमा-पार से घुसपैठ की खतरनाक कोशिश ही नहीं करते, बल्कि मस्कट के जरिए पाकिस्तान तक की यात्रा भी कर लेते हैं और आतंकवाद की टे्रनिंग लेकर उप्र में लौट भी आते हैं। उनकी सामान्य पहचान कैसे संभव है? मौजूदा आतंकी साजि़श में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का भी जि़क्र हुआ है। उसके भाई अनीस को हथियारों की सप्लाई और फंडिंग का दायित्व सौंपा गया था। पकड़े गए आतंकियों में कुछ चेहरे ऐसे भी हैं, जो कई सालों से डॉन के संपर्क में थे और साजि़शें रच रहे थे। हमारे देश मंे हवाला कारोबार के जरिए अवैध धन आता रहा है। कुछ बाज़ारों में तो यह खुलेआम है, जाहिर है कि सरकार की जानकारी में भी होगा! हवाला पैसे की आपूर्ति और उसके पीछे की साजि़श को रोकना कैसे संभव होगा?
नई तकनीक और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के दौर में आतंकी हमले भी उन्हीं के जरिए किए जा रहे हैं। आईईडी बनाने की नई तकनीकें आ गई हैं। ड्रोन के जरिए हमले भी नई प्रौद्योगिकी के कारण संभव हो रहे हैं। फिर भारत उनसे अछूता कैसे रह सकता है। उसके पलटवार के तरीके भी इस्तेमाल करने होंगे। हमारी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां चौकस हैं, लिहाजा कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं किया जा सका है, लेकिन खौफनाक साजि़शें मंडरा तो रही हैं। संभव है कि पाकिस्तान में जिन चेहरों को 15 दिन की टे्रनिंग फौजी अफसरों ने दी थी, उनमें नई तकनीक के तरीके भी बताए गए हों! परंपरागत बंदूक, राइफल, रॉकेट, ग्रेनेड आदि के अलावा भी हमलों की प्रविधियां सिखाई गई हों! बहरहाल अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत के बाद आतंकी हरकतें और साजि़शें बढ़ने के आकलन दुनिया की बड़ी ताकतों ने किए थे। आत्मघाती फिदायीन के दस्ते बनाने की ख़बर सामने आई है। फिलहाल वह आतंकवाद भारत तक नहीं पहुंचा है और न पकड़े गए चेहरों में से किसी के संबंध तालिबान से स्पष्ट हुए हैं, लेकिन हमारी एजेंसियों को चौकस तो होना पड़ेगा। यह साजि़श भी खुफिया लीड के आधार पर ही बेनकाब हो सकी है। बीते कुछ दिनों से कश्मीर घाटी के बजाय जम्मू संभाग में आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं, लिहाजा मुठभेड़ की भी ज्यादा घटनाएं सामने आ रही हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के पुराने अस्तित्व को कुचला जा चुका है, लेकिन तालिबान की कामयाबी के बाद पाकिस्तान हम पर आतंकी हमलों की गति तेज कर सकता है। भारत ने पाकिस्तान से संबंधित जो आतंकी पकड़े हैं, उनके कबूलनामों के आधार पर और अन्य सबूतों को लेकर डोजि़यर तैयार करने चाहिए और फाट््फ में दर्ज कराने चाहिए, ताकि उस पर कार्रवाई हो।