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इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है
1.गृहमंत्री का ‘मिशन कश्मीर’
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के 26 माह बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह घाटी में हैं। उनका प्रवास तीन दिन का है, लेकिन बेहद महत्त्वपूर्ण है। अनुच्छेद 370 के बाद के कश्मीर में जिन हालात के दावे किए गए थे, कमाबेश आतंकवाद का खात्मा अग्नि-परीक्षा सरीखा है। गृहमंत्री ने सुरक्षा बलों के अधिकारियों के साथ करीब 5 घंटे तक विमर्श किया और जानना चाहा कि आतंकी अल्पसंख्यकों और गैर-कश्मीरियों को आसान निशाना बनाने में कामयाब क्यों और कैसे हो रहे हैं? जाहिर है कि मंत्रणा के उन घंटों में कोई रणनीति जरूर तय हुई होगी! आतंकवाद के घुटने कैसे तोड़े जा सकते हैं, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा, लेकिन गृहमंत्री ने आम कश्मीरियों और खासकर युवाओं को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के आह्वान किए हैं।
गृहमंत्री कश्मीर के हवाई अड्डे पर उतरे और सीधे नौगाम में शहीद इंस्पेक्टर परवेज़ अहमद डार के घर पहुंच कर परिजनों को सांत्वना दी। उन्हें भरोसा दिलाया कि समूचा देश उनके साथ खड़ा है। शहीद की विधवा पत्नी को उन्होंने सरकारी नौकरी का नियुक्ति-पत्र भी सौंपा। गृहमंत्री ने ऐसे कई शोक-संतप्त परिवारों के आंसू पोंछे। गृहमंत्री का फोकस युवाओं पर है। उन्होंने कहा कि वह युवाओं से दोस्ती करने आए हैं। जम्मू-कश्मीर में युवा क्लब बन रहे हैं। ऐसे ज्यादातर क्लब ग्रामीण अंचलों में हैं। सरकार उन्हें 25,000 रुपए की आर्थिक मदद भी देती है, ताकि युवा शिक्षा, विकास, सामाजिक-राष्ट्रीय योजनाओं और खेल के क्षेत्रों में अपनी सक्रियता बढ़ाएं। बेशक यह एक सकारात्मक प्रयास है। एक औसत नौजवान के हाथ भरे होंगे, तो पत्थरबाजी अतीत बनकर रह जाएगी।
आतंकी गुट उन्हें बरगला कर आतंकी नहीं बना सकेंगे। गृहमंत्री का दावा है कि 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद 12,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश जम्मू-कश्मीर में हो चुका है। लक्ष्य 50,000 करोड़ रुपए का है। जाहिर है कि निवेश आ रहा है, तो आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ेंगी और युवाओं को रोज़गार मिलेगा। गृहमंत्री ने क्लबों के युवाओं से संवाद भी किया। दावा यह भी है कि आतंकवाद में युवाओं की शिरकत 40 फीसदी घटी है। आतंकवाद का विस्तार और घटनाएं भी 60 फीसदी कम हुई हैं। युवा खेलों से जुड़ रहे हैं। खेलों से सकारात्मक भावनाएं पैदा होती हैं। जिन 20,000 गांवों मे ंबिजली का खंभा तक नहीं था, उन इलाकों में उजाले बिखरने लगे हैं। 2022 तक घर-घर बिजली पहुंचाने का लक्ष्य है। नए कश्मीर की शुरुआत हो रही है, हम 70 फीसदी युवाओं को विकास से जोड़ेंगे, लेकिन कोई भी परिवर्तन युवाओं के बिना संभव नहीं है। उन परिवारों और नेताओं की सुनना अब बंद कर दें, जो कश्मीर पर शासन करते रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान और तालिबान की भाषा बोलते हैं। गृहमंत्री ने परिसीमन पूरा होने के बाद चुनाव और पूर्ण राज्यत्व का वायदा भी किया है। बहरहाल गृहमंत्री के ‘मिशन कश्मीर’ की लगातार समीक्षा की जाए, लेकिन ध्यान रहे कि आतंकवाद को समूल कुचलना प्रथम प्राथमिकता साबित होनी चाहिए।
2.मीडिया समझ के नेता
पचुनावों की खैरियत पूछ रहे नेताओं की मीडिया समझ का विश्लेषण अकसर होता है, लेकिन इस सवाल का बहरूपियापन आज तक हिमाचल की सियासत को समझ नहीं आया। तुलनात्मक दृष्टि से देखंे तो युवा नेताओं में मीडिया की समझ निरंतर बढ़ रही है और ये पारंपरिक माध्यमों के अलावा सोशल मीडिया पर भी स्पष्टता से अपनी बात रख रहे हैं। मीडिया जगत से पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के रिश्तों का सबसे बड़ा चेहरा मुकेश अग्निहोत्री बने, तो राजनीति से पत्रकारों की मैत्री का सवाल भी सामने आया और इसके बाद यह प्रथा आगे बढ़ रही है। नेताओं की मीडिया समझ उनकी सरलता और स्वभाव में सादगी की द्योतक भी है। वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर इस लिहाज से अब तक के सबसे नरम नेता बनते हुए दिखाई देते हैं, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने अपनी पहुंच व पड़ताल से मीडिया की हर रग को टटोला, कुरेदा और उन्हें हिमाचल की राजनीतिक शब्दावली दी। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह मीडिया ज्ञान में इजाफा करते रहे। उनकी कार्रवाइयां मुखर होकर मीडिया जगत से कसरत कराती रहीं, तो पत्रकारिता की प्रश्नोत्तरी में वह सबसे हाजिरजवाब रहे। वह सत्ता या विपक्ष की भूमिका में एक समान ‘हैडलाइन’ बनते रहे, तो उनके व्यक्तित्व के भाव से मीडिया विश्लेषण हुआ। इन सबसे हटकर शांता कुमार मीडिया संबंधों में आदर्श भरते-भरते, स्वयं लेखक तो बने, लेकिन उनके दौर का विरोध बताता है कि कहीं दूरियां रहीं। प्रेम कुमार धूमल ने मीडिया संतुलन को निचली पायदान तक और राजधानी शिमला से निकल कर प्रदेश की कंदराओं तक पहुंचाया, तो इस तरह निजी तौर पर कुछ पत्रकार आज भी उनके लिए सुर्खियां खोज कर लाते हैं।
हिमाचल में मीडिया की महफिल को सजाते नेताओं में कांग्रेस का पलड़ा भारी है। वीरभद्र सिंह के अलावा जीएस बाली, मुकेश अग्निहोत्री व राजिंद्र राणा जैसे नेता अपनी प्रेस वार्ताओं में माहौल की उपमाओं को मुद्दों की चांदनी में सजाते रहे हैं। इस दृष्टि से भाजपा बतौर पार्टी भले ही मीडिया को बेहतर समझती हो या उनका अपना मीडिया प्रबंधन कुशाग्र और ताकतवर है, लेकिन मीडिया से सहजता का अभाव देखा जा सकता है। भले ही सत्ता में जयराम ठाकुर अब तक के तमाम मुख्यमंत्रियों से कहीं आगे मीडिया के प्रति सहज, सरल व सादगी भरे हैं, लेकिन पार्टी संगठन के ओहदेदार अपने मीडिया मंतव्य व गंतव्य में दूरी बनाने के कारण अपने वैचारिक मंचों पर ऊंचे दिखाई देते हैं। भाजपा के भीतर इसका अपवाद रहे कुछ युवा नेता आज भी मीडिया के लिए खबर हैं, तो यह गोपनीयता में कतई अनुशासनहीनता नहीं हो सकती। त्रिलोक कपूर, घनश्याम शर्मा व प्रवीण शर्मा जैसे नेता मीडिया के यथार्थ में राजनीति की व्यावहारिकता और सत्ता के संपर्कों में मीडिया को बेहतर होने का अवसर व सौहार्द सौंपते हैं। मीडिया समझ के राजनीतिक खाके हिमाचल में थोड़े संकीर्ण जरूर हैं, लेकिन आज के दौर में विपक्ष और सत्ता के बीच फासलों या इरादों का चिन्हित ब्यौरा हर नेता को मीडिया आलोक में देखता है। इस लिहाज से विपक्ष के पास करने को बहुत कुछ हो सकता है, लेकिन सत्ता कल फिसल कर विपक्ष न हो जाए, यह संदेश नहीं राजनीतिक कर्मठता में, मीडिया तक पहुंचने का सतत प्रयास भी तो हो सकता है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर, दीपक शर्मा, मुकेश अग्निहोत्री, कौल सिंह ठाकुर, ठाकुर रामलाल, सुधीर शर्मा, जीएस बाली जैसे नेता अगर मीडिया में अग्रसर हैं, तो भाजपा के सतपाल सत्ती या किशन कपूर जैसे नेताओं का कद, उनसे राज्यस्तरीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की उम्मीद रखता है। मीडिया समझ में सांसद या केंद्रीय दायित्व में अग्रणी नेताओं की भूमिका भी अपनी परीक्षा दे रही है।
इस दृष्टि से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के लिए पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की विरासत में सुरक्षित मीडिया संबंधों को आगे ले जाने का मौका है, तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का मीडिया आलोक प्रदेश के मीडिया के लिए एक अवसर सरीखा रहेगा। बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री उन्होंने अपनी योजनाओं को हिमाचल के मीडिया के सामने पुष्ट किया, लेकिन भाजपा अध्यक्ष के रूप में मीडिया से उनकी पारी का आगाज उस तरह नहीं देखा गया। मीडिया समझ के खाके में डिजिटल राजनीति को आगे बढ़ाते सोशल मीडिया के भीतर जयराम ठाकुर, अनुराग ठाकुर व विक्रमादित्य सिंह फिलहाल आगे दिखाई देते हैं। तमाम युवा नेता डिजिटल मीडिया के रास्ते पर प्रचार तंत्र खड़ा कर सकते हैं, लेकिन पारंपरिक मीडिया की नजर में आना आज भी मेहनत, जज्बात और सरोकारों पर निर्भर करेगा। वर्तमान चुनावों में पार्टियांे की स्थिति का संकेत तो मिल सकता है, लेकिन धरातल पर खड़े मतदाता को पढ़ पाना वर्तमान दौर की सबसे बड़ी चुनौती है। जीत-हार के मायने आसान हो सकते हैं, लेकिन हार में जीत और जीत को हार तक पहुंचाने की सियासी तिकड़मों को निष्पक्षता से देखना और समझना मीडिया की सबसे बड़ी चुनौती है। पिछले नगर निगम चुनावों में धर्मशाला में भाजपा का जीतना और सोलन में कांग्रेस का जीतना ऐसा यथार्थ था, जिससे राजनीतिक अर्थ और मीडिया का व्यर्थ कुछ हासिल करता है, कुछ खारिज हो जाता है।
3.कठिन सफर का सुखद पड़ाव
यह उन दिनों की बात है, जब दुनिया दो वैश्विक आफतों से एक साथ जूझ रही थी- स्पेनिश फ्लू और प्रथम विश्व युद्ध। हम हिन्दुस्तानियों की बिना मरजी के हमारे नौजवान यूरोप और अफ्रीका के तमाम मोर्चों पर अग्रिम पंक्तियों में धकेल दिए गए थे। कई मोर्चे ऐसे थे, जहां हुकूमत-ए-बरतानिया सिर्फ हिन्दुस्तानियों की हिम्मत की वजह से जीत रही थी। देश में हम बाहर से आए स्पेनिश फ्लू से मर रहे थे और परदेश में हमारे नौजवान विदेशी हुक्मरानों के लिए जान की बाजी लगा रहे थे। उन्हीं दिनों न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा था- ‘भारत जो कुछ चाहता है, दुनिया को उसे पूरा करना चाहिए, क्योंकि भारतीयों के बिना युद्ध जीतना मुश्किल है।’
विनाशकारी जंगखत्म होने के बाद क्या भारत को वह मिला, जो करोड़ों भारतीय चाहते थे, आजादी? ऐसा नहीं हुआ, उल्टे अंग्रेजों ने अपना दमन-चक्र बढ़ा दिया। क्यों? शायद इसलिए कि हम हिन्दुस्तानी गर्व के क्षणों में भी अपने लिए आशंकाओं की कब्रगाहें खोद लेते हैं। तब से अब तक समूची शताब्दी बीत गई, पर हमारी यह आत्मघाती आदत खत्म होने का नाम नहीं ले रही। पिछले हफ्ते भारत ने 100 करोड़ टीकों का सुरक्षा कवच हासिल किया, पर क्या हम इस उपलब्धि से और बेहतरी की प्रेरणा ग्रहण कर रहे हैं? हम क्यों भूल गए हैं कि यह सफर कितना दुरूह था!
आठ महीने पहले तक खुद सरकारी मशीनरी संशय के दिन-रात जी रही थी कि हम टीकाकरण के इस महाभियान को निर्णायक मुकाम तक कैसे ले जाएंगे? पहला सवाल तो यही था कि भारत 130 करोड़ आबादी का विशाल देश है, इतने लोगों के लिए टीके आएंगे कहां से? धनी-मानी देशों ने अपने एकाधिकार का उपयोग करके सबसे पहले अपने देशवासियों के लिए टीके आरक्षित कर लिए थे। ये वे लोग हैं, जो कल तक ‘ग्लोबल-विलेज’ का नारा लगाया करते थे। विकासशील देशों में मौजूद सस्ते श्रम और कच्चे माल पर कब्जा करने के लिए लगाए जाने वाले इस नारे की कलई खुल चुकी थी। ऐसा लगता था, जैसे इंसानियत एक अनाम मोड़ पर आकर ठिठक गई है। आगे की राह अबूझ थी। ऐसे में, जब प्रधानमंत्री हैदराबाद और पुणे की फार्मा कंपनियों में पहुंचकर टीका-निर्माण की गति की समीक्षा करते दिखाई पड़े, तब महामारी की मार से त्रस्त देश में सियासी कीचड़ की नई वर्षा शुरू हो गई। आरोप लगाने वाले बिसरा बैठे थे कि शुरुआत में असंभव लगने वाली यात्राओं के लिए भी पहला कदम तो उठाना ही पड़ता है।
4.मुख्यधारा से जुड़ें कश्मीरी युवा
हिंसा से कुछ नहीं होगा हासिल
विकास के पहिए को रफ्तार देने में युवा शक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि युवावस्था ही उम्र का वह दौर होता है जब कल्पनाओं को पंख लगते हैं, नये सपने संजोये जाते हैं। उम्र का यही पड़ाव विषम परिस्थितियों से भी जूझ जाने का होता है क्योंकि युवा हिम्मती होते हैं, मेहनती होते हैं। लेकिन युवावस्था में ही दिग्भ्रमित होने की आशंका भी बनी रहती है। जरूरत होती है सही राह पकड़ने की। कश्मीर में अनेक युवाओं को भ्रमित किया गया और उन्हें झोंक दिया गया ऐसे ‘नापाक’ काम में, जिसकी परिणति है सिर्फ मौत। इस तरह के भटकाव में न आने की अपील करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने सभी युवाओं से अपील की है कि वे सरकार से हाथ मिलाएं और कश्मीर को आगे ले जाने की यात्रा में भागीदार बनें। उन्होंने कहा है कि घाटी के युवाओं को अपनी प्रगति के लिए विभिन्न प्रशासनिक अवसरों का लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर युवा जम्मू-कश्मीर के विकास में शामिल होंगे, तो आतंकवादी अपने नापाक मंसूबों में विफल हो जाएंगे। असल में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने और इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद पहली बार देश के गृह मंत्री यहां पहुंचे हैं। उनकी यात्रा ऐसे वक्त हुई है जब घाटी में सिलसिलेवार ढंग से आम नागरिकों को निशाना बनाया गया और उनकी हत्या की गयी। इसी संदर्भ में गृह मंत्री जहां मारे गए लोगों के परिजनों से मिले, वहीं उन्होंने सुरक्षा मामले पर हाईलेवल मीटिंग भी की। अपने दौरे के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये गृह मंत्री ने यह भी बताया कि जम्मू-कश्मीर में अब तक 12 हजार करोड़ रुपये का निवेश आ चुका है। लक्ष्य 51 हजार करोड़ रुपये तक करने का है। युवाओं से राजनीतिक गतिविधियों में भी भागीदार बनने की ओर इशारा करते हुए अमित शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन होगा, चुनाव भी होगा और राज्य का दर्जा भी वापस मिलेगा।
ऐसा नहीं है कि जम्मू-कश्मीर का हर युवा दिग्भ्रमित है। घाटी से अनेक युवाओं ने खेलों में नाम रोशन किया है और प्रतियोगी परीक्षाओं में अव्वल आकर प्रशासनिक सेवाओं में अपने हुनर की रोशनी बिखेरी है। कोई पुलिस में भर्ती होकर जिम्मेदारी निभा रहा है तो कोई पर्यटन को बढ़ाने में नये आइडिया के साथ काम कर रहा है। इन सबके मिले-जुले प्रयास से जम्मू-कश्मीर के विकास को रफ्तार मिली है। यही रफ्तार अमन के दुश्मनों को खटकने लगती है और वे अपने ‘नापाक’ मंसूबों के साथ युवाओं को बरगलाने के अभियान में लग जाते हैं। युवाओं को समझना होगा कि अपराध का रास्ता बहुत छोटा होता है। उस रास्ते पर चलकर न तो सुकून मिलता है और न ही चैन। इसलिए घाटी के युवाओं को बात समझनी चाहिए और राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़कर अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाते हुए विकास के पथ पर चलना चाहिए ताकि उनका और उनकी अगली पीढ़ी का भविष्य बेहतरीन हो।