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EDITORIAL TODAY (HINDI)

इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है

1.काबुल की चिंता

अमेरिका कभी अफगानिस्तान में धमाकों के साथ घुसा था और आज लौटते हुए भी धमाके जारी हैं। आतंकवाद की असली जड़ों में मट्ठा न डालने का नतीजा सामने है। हालात काबुल में सबसे बदतर हैं। एयरपोर्ट पर हुए हमले में शहीद अपने सैनिकों का बदला लेने के लिए अमेरिका एक हद तक दृढ़ नजर आ रहा है, लेकिन पूरी अमेरिकी सैन्य कवायद अपनी रक्षा के लिए भी हो सकती है। अपनी रक्षा के लिए आक्रामक होना एक रणनीति ही है, जो हम पहले भी देख चुके हैं। खैर, तालिबान दहशतगर्दी का दामन छोड़ने को तैयार नहीं है, वह शायद जाते हुए अमेरिका को डराकर भेजना चाहता है, ताकि वह फिर कभी अफगानिस्तान में वापसी की न सोचे। इस बीच काबुल में युद्ध का आलम है। कहां बम बरस जाए, कहां फिदाईन हमला हो जाए, कोई नहीं जानता। लोग न घरों में सुरक्षित हैं और न ही सड़कों पर। ज्यादा आशंका यही है कि आने वाले कुछ दिनों तक स्थितियां ऐसी ही रहेंगी और दोनों पक्ष ऐसी स्थितियों के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहेंगे। सबसे ज्यादा खतरा तो आईएस की तरफ से है, जिसके आतंकी दहशत को बढ़ाने में दिन-रात लगे हुए हैं। दुनिया की भलाई इसी में है कि वह दहशत के हर बहते दरिया में हाथ धोने के शौकीनों को पहचान ले। 
वैसे अमेरिका ने ड्रोन की मदद से शनिवार को भी हमले किए थे और रविवार को भी। उसने पहले ही साफ कर दिया था कि वह चुन-चुनकर बदले लेगा। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने काबुल में रविवार को हुए अमेरिकी हवाई हमले की निंदा करते हुए कहा है कि दूसरे देशों में मनमाने ढंग से हमले करना गैर-कानूनी है। शनिवार को आईएस के दो आतंकी मारे  गए थे, जबकि रविवार के हमले में सात लोग मारे गए हैं। जाहिर है, अमेरिकी कार्रवाई से तालिबान नाखुश हैं और धमकी की जुबान पर उतर आया है। अमेरिका यह साबित करने में कामयाब रहा है कि उसने हमला करने आ रहे आतंकवादियों को निशाना बनाया, जबकि तालिबान का कहना है कि कोई खतरा था, तो उसकी सूचना मिलनी चाहिए थी। क्या अफगानिस्तान में अमेरिका को सूचना देकर आतंकवादियों पर हमला करना चाहिए? क्या तालिबान आतंकवादियों को पकड़ने में मदद करेंगे? क्या खुद तालिबान की हरकतें आतंकियों जैसी नहीं हैं? निर्दोष लोगों की हत्या करना, एक गायक को घर से निकालकर गोली मार देना कहां की सभ्यता है? अमेरिका को यह बात बार-बार पुरजोर तरीके से रखनी चाहिए कि तालिबान ने कब्जा किया है, ये कोई वैध शासक नहीं हैं। सत्ता के ऐसे हस्तांतरण के लिए समझौता नहीं हुआ था। अफसोस, चीन और पाकिस्तान खुलकर तालिबान के पक्ष में नजर आ रहे हैं। चीन ने तो यहां तक कहा है कि दुनिया तालिबान को रास्ता दिखाए। कहीं अमेरिका या भारत से दुश्मनी निभाने के फेर में चीन परोक्ष रूप से तालिबान का दुस्साहस न बढ़ा दे। अगर चीन सांप्रदायिकता को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहेगा, तो अपने नैतिक आधार को उत्तरोतर और कमजोर ही करेगा। सत्ता के भूखे तालिबान न मजहब की सेवा करेंगे और न इंसानियत की। चीन उन्हें अपनी रीति-नीति के रास्ते पर ले जाएगा या सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करेगा? यह तालिबान से भी ज्यादा पाकिस्तान को सोचना चाहिए।

2. 31 अगस्त के बाद अफगान

खुफिया लीड के आधार पर अमरीका ने रविवार को काबुल में एक और हवाई हमला किया। निशाना अचूक रहा और फिदायीन समेत विस्फोटकों से भरे वाहन के भी परखच्चे उड़ा दिए गए। काबुल हवाई अड्डे पर एक और फिदायीन हमले की साजि़श और मंसूबे भी धुआं-धुआं हो गए। सोमवार सुबह एक कार से 5 रॉकेट दाग कर हवाई अड्डे को निशाना बनाया गया, लेकिन अमरीका के एयर डिफेंस सिस्टम ने बचा लिया। न जाने यह सुबह कैसी साबित होती! आतंकवाद पर अमरीका फिलहाल सफल रहा है, लेकिन यह कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं है। तालिबान को अमरीकी हमलों पर आपत्ति है और उसने चेतावनी दी है कि अमरीका तालिबान को बताए बिना कोई भी हमला न करे।

यह उसका अधिकार नहीं है। बेशक आतंकवाद और उसके दरिंदे फिलहाल हांफने लगे होंगे, लेकिन तीन दिन में दो हवाई हमलों से ही आतंकवाद थम जाएगा या उसके समापन की शुरुआत हो जाएगी, ऐसा कोई भी दावा मुग़ालता होगा। अमरीका के दूसरे ड्रोन हमले में 7 या 13 आतंकी ढेर कर दिए गए अथवा विस्फोटक से भरी एक ही कार चकनाचूर हुई अथवा रॉकेट से एक और हमला किया गया, जिसमें एक घर ध्वस्त हो गया। आग की लपटों में भी बहुत कुछ स्वाहा हुआ होगा! एक बच्चे सहित दो लोगों की मौत हुई और 3 घायल हुए। दरअसल घटनाओं के ब्योरे विरोधाभासी हैं। अमरीकी सेना या तालिबान ही खुलासा कर सकते हैं कि हवाई हमला कितना कारगर रहा और कुल कितने आतंकी मार दिए गए? अमरीका इतना तैयार हो गया था कि काबुल हवाई अड्डे पर 5 लड़ाकू विमानों की मौजूदगी दिखी थी और अमरीकी कमांडोज ने हवाई अड्डे के बाहर आकर आक्रामक सर्च ऑपरेशन भी किया था। कल्पना कीजिए कि यदि विस्फोटक से भरा वाहन और आत्मघाती बॉम्बर हवाई अड्डे के भीतर फूटते, तो कितने लोग ‘लाश हो जाते और कितनी बर्बादी होती? उस लिहाज से अमरीकी रणनीति और तुरंत हमले को शाबाशी दी जानी चाहिए। अफगानिस्तान में अमरीकी सेना और अधिकारियों की मौजूदगी आखिरी चरण में है। उसी दौरान आतंकी हमले बढ़ गए हैं और आईएसआईएस-खुरासान अमरीका को धमका भी रहा है।

खुरासानी आतंकी अफगान के नांगरहार, हेरात और काबुल प्रांतों में ही सक्रिय नहीं हैं, बल्कि पाकिस्तान से सटे सरहदी इलाकों में भी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि उन्हें पाकिस्तान में भी पनाह दी गई है, लिहाजा 31 अगस्त को अमरीकी सेना की पूरी वापसी के बाद ही आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई नहीं रुकनी चाहिए। यह अमरीका और उसके राष्ट्रपति बाइडेन की प्रतिष्ठा का सवाल भी है। यह अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत की स्थिरता के लिए भी ज़रूरी है, क्योंकि तालिबान और आईएस-खुरासान के दरमियान वर्चस्व की लड़ाई को पूरी दुनिया जानती है। अकेले तालिबान आईएस के आतंकवाद को खत्म करने में अक्षम हैं। अमरीका ने आईएस के खलीफाई सरगना बगदादी को भी मारा था। हवाई हमले के जरिए ईरान में नंबर-दो की शख्सियत सुलेमानी को भी ढेर किया था। यदि अमरीका तालिबानी अफगानिस्तान में अमन-चैन, स्थिरता और आर्थिक पुनरोत्थान चाहता है, तो उसे चिह्नित कर आतंकियों और उनके अड्डों को समाप्त करना होगा। यह जमात इंसानियत के नाम पर कलंक है। अभी अफगानिस्तान में अफरा-तफरी है, अराजकता है।

देश एक जंगल हो गया है। नकदी का बहुत भारी संकट है। पैसा नहीं होगा, तो लोग क्या करेंगे? खाना कैसे खाएंगे? रोजमर्रा की जरूरतें कैसे पूरी होंगी। देश में भुखमरी होगी, तो गृहयुद्ध के हालात को भी बहुत दिनों तक टाला नहीं जा सकता है। अमरीका ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अफगानिस्तान में राष्ट्र-निर्माण के लिए नहीं आया था, लिहाजा वे उम्मीदें तो समाप्त हैं। आतंकवाद के खिलाफ अमरीकी रणनीति स्पष्ट है कि यदि इसी इलाके में आतंकियों के फन नहीं कुचले गए, तो वे आने वाले कल में अमरीका पर भी आतंकी हमला बोल सकते हैं। अफगानिस्तान में फिलहाल तालिबान के सहयोग के बिना आतंकवाद का मोर्चा जीता नहीं जा सकता है, लेकिन तालिबान भी बार-बार चेतावनी दे रहा है कि अमरीका और हवाई हमले न करे। यदि उसके पास कोई सूचना है, तो तालिबान से बात करे। कार्रवाई तालिबान ही करेंगे। अमरीका को ये शर्तें मंज़ूर होंगी, ऐसा लगता नहीं है, तो फिर अहम सवाल है कि वह आतंकियों से कैसे निपट पाएगा? यदि अमरीका नाकाम रहता है, तो वह अपनी सुरक्षा के बंदोबस्त कर सकता है। वैसे भी वह अफगान से बहुत दूर स्थित है, लेकिन पड़ोसियों का क्या होगा, इस सवाल पर भी विमर्श होना चाहिए

3.चिकित्सा का सुखद एहसास

हिमाचल के चिकित्सा क्षेत्र के लिए यह उपलब्धि काफी अहमियत रखती है, क्योंकि कोविड काल में कई प्रतिष्ठित अस्पताल भी अपनी निम्र भूमिका के लिए प्रश्नांकित हुए हैं। शिमला स्थित आईजीएमसी में जागते हुए व्यक्ति के दिमाग का आपरेशन हुआ और इस तरह सुखद एहसास के पल, सरकारी मेडिकल कालेज के इतिहास को फिर से लिख गए। आठ डाक्टरों का दल नई तकनीक के जरिए चिकित्सा विज्ञान का सफल सूत्रधार बना और हिमाचल के लिए यह फख्र के साथ-साथ विश्वास का माहौल भी पैदा कर गया। हालांकि कहानियां हर बार सरकारी संस्थानों में खलनायक ढूंढती हैं या प्राय: मरीजों के अनुभव अस्पताल की दीवारों से टकराकर घायलावस्था में ही रहते हैं।

कोविड काल ने आशा वर्कर जैसे अस्थायी व मामूली से पद की गरिमा को ऊंचा किया या वार्डों के भीतर पैरामेडिकल स्टाफ ने सांसें बचाईं, लेकिन किस्सों के किरदार में दक्ष या वरिष्ठ डाक्टरों द्वारा दर्शायी गई उपेक्षा से सारी व्यवस्था ही असहाय व लचर रही है। चिकित्सा सेवाओं के लिए कोविड काल एक मानक की तरह असंवेदनशीलता माप गया है और इसीलिए आज भी सरकारी अस्पताल की पर्चियां मरीज के सामने कई किंतु-परंतु पैदा करती हैं। कोविड उपचार घर की दहलीज के भीतर आत्मविश्वास से जिंदगी के एहसास से जुड़ा रहता है, लेकिन घटते मरीजों के बावजूद कोविड अस्पतालों के अनुभव में बिछुड़ते रिश्तों की सिसकियां सुनी जा सकती हैं। ऐसे में क्या हम कोविड के खिलाफ हिमाचली डाक्टरों की प्रतिष्ठित सेवाओं का सुख हासिल कर पाए या कोविड वॉरियर जैसी घोषणाओं में चिकित्सा सेवाओं का वास्तविक मूल्यांकन हुआ। चिकित्सा संस्थानों के वर्तमान स्वरूप में राष्ट्रीय औसत से बेहतर गिनती हिमाचल कर सकता है, लेकिन बेहतर संस्थानों की गिनती में प्रदेश को अभी कई मंजिलें हासिल करनी हैं। इमारतों के घनत्व के बीच मेडिकल कालेजों का वर्तमान, अतीत के जिला अस्पतालों से बेहतर हो पाया है क्या। आश्चर्य यह कि मेडिकल कालेज तक सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे उपकरणों को तरस रहे हैं और यह भी एक तथ्य है कि बढ़ते सरकारी अस्पतालों के बावजूद हिमाचल के चिकित्सा क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ रहा है। दूसरी ओर सरकारी ढांचा भी आउटसोर्स सेवाओं पर केंद्रित होकर निजी क्षेत्र के आईनों को विस्तार दे रहा है।

हकीकत भी यही है कि चिकित्सा सलाह के नाम पर सरकारी पर्चियों पर निजी अस्पतालों के नाम प्रस्तावित किए जा रहे हैं। बहरहाल ऐसी अवधारणा के बीच अगर आईजीएमसी अपनी उपलब्धियों के सन्नाटे तोड़ता है, तो यह सरकारी संस्थाओं की प्रासंगिकता को नए मुकाम तक पहुंचाना है, क्योंकि गांव-देहात की जनता आज भी सरकारी मेडिकल कालेजों को ही तरजीह देती है। इसमें दो राय नहीं कि अन्य राज्यों की तुलना में हिमाचल का चिकित्सा ढांचा सुदृढ़ हुआ है, लेकिन अभी बाहरी राज्यों के लिए रैफरल सिस्टम रुका नहीं। हिमाचल की चिकित्सकीय जरूरतों को समझते हुए मेडिकल कालेज व मेडिकल यूनिवर्सिटी आगे चल कर व्यवस्था सुधार सकते हैं, लेकिन इसी के साथ प्रदेश के करीब पचास शहरों को सुपर स्पेशियलिटी सिटी अस्पताल चाहिएं, जिन्हें पीपीपी मोड पर चलाया जा सकता है। इसके अलावा कम से कम दस जिला अस्पतालों को किसी रोग विशेष का राज्य स्तरीय अस्पताल बना देना चाहिए ताकि चिकित्सकीय प्रतिबद्धता, अनुसंधान और जनता के विश्वास पर आधारित सेवाओं का विस्तार हो सके। ऐसे राज्य स्तरीय अस्पताल मेडिकल टूरिज्म की दिशा में अपना औचित्य निभा सकते हैं तथा इमारतों के समूहों की जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी।

4.उपलब्धि के बावजूद

हम देश की उस दोहरी उपलब्धि पर गर्व करें, जिसमें हमने लक्षित आबादी के आधे लोगों को एक वैक्सीन लगा दी है और एक दिन में एक करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य हासिल किया। देश ने नब्बे करोड़ वयस्क आबादी को कोविड-19 के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने हेतु टीकाकरण का लक्ष्य रखा है। पिछले दिनों हमने इसमें से आधी आबादी को टीका लगा दिया। हालांकि अभी पंद्रह फीसदी आबादी को ही दोनों टीके लगे हैं। बीते शुक्रवार को हमने एक करोड़ टीके लगाने का लक्ष्य हासिल किया। गत सोलह जनवरी को शुरू हुए टीकाकरण अभियान में यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। टीकाकरण पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ सलाहकार समूह ने उम्मीद जगाई है कि सवा करोड़ टीके एक दिन में लगाने का लक्ष्य हासिल किया जायेगा। इस उम्मीद का आधार यह है कि पहले दस करोड़ टीके जहां 85 दिन में लगे, वहीं पचास से साठ करोड़ टीके लगने में महज 19 दिन लगे। टीकाकरण का अनुभव व टीकों की उपलब्धता भी इसमें सहायक साबित होगी। निस्संदेह यह हमारे स्वास्थ्य तंत्र की बड़ी उपलब्धि है। दरअसल, 31 दिसंबर तक देश की वयस्क आबादी के टीकाकरण लक्ष्य को हासिल करने के लिये रोज एक करोड़ लोगों को टीका लगाने की जरूरत है। लेकिन अक्तूबर में तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच टीकाकरण के उच्च लक्ष्य हासिल करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, जिसमें केंद्र के साथ ही राज्यों की भी उतनी ही जिम्मेदारी बनती है। यह अच्छी बात है कि अगस्त माह में टीकाकरण अभियान में हमने आशातीत सफलता हासिल की है, जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र सबसे आगे हैं। हिमाचल में भी 99 फीसदी लक्षित आबादी को एक टीका लग चुका है। राज्य ने तीस नवंबर तक पूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य रखा है। देश में 63 करोड़ लोगों को अब तक एक टीका लग चुका है। हालांकि, यह चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा है, लेकिन पूरी आबादी को टीका लगाने का लक्ष्य अभी चुनौती है।

फिर भी हम न भूलें कि बीते रविवार को कोरोना संक्रमण का आंकड़ा पिछले दो माह में सर्वाधिक पैंतालीस हजार से ऊपर पहुंचा है। इसी चिंता के चलते मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों समेत कई कोरोना से जुड़े प्रतिबंधों का दायरा सितंबर तक बढ़ा दिया। स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार तीसरी लहर को लेकर चेता रहे हैं। वैसे तो कोरोना संक्रमण के आंकड़ों में आया उछाल केरल में तेजी से बढ़ते आंकड़ों की वजह से है, लेकिन शेष देश को भी अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए। केरल सरकार से पूछना चाहिए कि तुष्टीकरण के चलते एक धार्मिक आयोजन पर कोरोना कर्फ्यू में तीन दिन की छूट सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को नजरअंदाज करके क्यों दी गई थी? क्यों कोरोना महामारी से सफलता से जूझने वाली स्वास्थ्य मंत्री को हटाया गया, जिसके प्रयासों की विश्व स्वस्थ्य संगठन ने भी तारीफ की थी? साथ ही महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम आदि राज्यों में संक्रमण की बढ़ती दर चिंता की बात है दरअसल, कोरोना संक्रमण में आई गिरावट को देखते हुए हमने मान लिया कि शायद कोरोना की विदाई हो गई। हमने बचाव के प्राथमिक उपायों, मसलन मास्क लगाना, सुरक्षित दूरी और साबुन से हाथ धोने की अनदेखी शुरू कर दी। चिंता की बात यह है कि देश में रक्षाबंधन व जन्माष्टमी के साथ ही त्योहारों की शृंखला शुरू हो गई है। जिस अवधि में तीसरी लहर की आशंका है, उसमें पितृपक्ष, नवरात्रों, दशहरा व दीपावली की पर्व शृंखला शुरू होती है। वहीं स्कूल-कालेज खोलने का सिलसिला शुरू हो गया है। बच्चों के लिये देश में निर्मित वैक्सीन क्लीनिकल ट्राइल में तो सफल रही है लेकिन टीका उपलब्ध होने में वक्त लगेगा, तब तक सावधानी ही विकल्प है। निश्चित रूप से त्योहारी माहौल में लापरवाही खतरनाक साबित हो सकती है। अमेरिका-यूरोपीय देशों में ऐसी लापरवाही के चलते कोरोना संकट एक बार फिर गंभीर हुआ है। जब तक हम लक्षित आबादी को दोनों डोज उपलब्ध नहीं करा देते, तब तक कोविड-19 से हमारी लड़ाई जारी रहनी चाहिए। 

 

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