इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.रियायतों के पार भी
रोजी-रोटी की रियायत मांग रहे हिमाचल व्यापार मंडल के लिए सुखद संकेत है कि सरकार कुछ ढिलाई के साथ बाजार के कबाड़ खोलना चाहती है। व्यापार की ऊर्जा से प्रदेश के हजारों चूल्हे जलते हैं और इस तरह अनलॉक होने के अर्थ पढ़े व समझे जाएंगे, लेकिन रियायतों के परे हिदायतें समाप्त नहीं हो पा रहीं, बल्कि कोई भी छूट केवल सुविधा है, अधिकार नहीं। हिमाचल सरकार, व्यापार और जनता के सरोकार जब तक सीधी लाइन में खड़े नहीं होंगे, खतरे आसान नहीं होंगे। सरकार कमोबेश उन्हीं सुझावों पर विचार कर रही है, जिनका जिक्र हम इसी कॉलम में करते रहे हैं यानी बाजार को अनुशासित ढंग से चलाने के लिए हर दिन की पैमाइश रहे। हफ्ते के सातों दिन किसी न किसी वर्ग के लिए बाजार उपलब्ध हो और साथ ही बाजार भीड़ न बने।
अभी सामाजिक तफरीह की इजाजत नहीं मिल सकती क्योंकि कोविड ने हिमाचल को भी सबक सिखा दिए हैं। आरंभिक दौर के मुकाबले चरण दो में हिमाचल की लापरवाही तथा लचर चिकित्सा प्रबंधन हमारे लिए घातक साबित हुआ है। तमाम नसीहतों से मुक्त समाज ने भी इस बुरे वक्त में बचने-बचाने के बजाय दिखावे के प्रपंच में मनोरंजन ढूंढने की गुस्ताखी की है। मौत हमारे दामन में छुपी है, इसलिए कोई भी छूट आत्मानुशासन व सामाजिक पहरेदारी के बिना असंभव है। दरअसल कहने के लिए हिमाचल नब्बे फीसदी ग्रामीण नजर आता है, लेकिन उपभोक्ता मामलों व आधुनिक सुविधाओं में संलिप्तता के कारण राज्य की जनता को शहरी मानसिकता में पढ़ना होगा। कोविड के बढ़ते मामलों का विश्लेषण बाजार-मनोरंजन गतिविधियों, सांस्कृतिक प्रदर्शन, धार्मिक व राजनीतिक उल्लास दर्ज कर रहा है। हिमाचल का बाजार अब हट्टी नहीं रहा और न ही शहरी व ग्रामीण परिदृश्य में मांग अलहदा है। इसलिए भले ही पूरा बाजार खुले, लेकिन काम की अवधि सीमित रखने से ही सुरक्षा रहेगी। यह इसलिए कि हिमाचल का घरेलू बाजार स्थानीय न होकर व्यापक व पहियों पर दौड़ता है। प्रदेश में दर्जनों ऐसे बाजार विकसित हो चुके हैं, जहां पचास से सौ किलोमीटर तक के ग्राहक जुड़ते हैं। इस आवागमन को रोकने के लिए ग्राहक को सीमित अवधि के लिए स्थानीय बाजार में ही रोकना होगा।
छूट में बाजार की नई परिभाषा कितनी अनुशासित नजर आती है, यह सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा। इसी के साथ हिमाचल को देश के सबसे अधिक शहरी आबादी वाले राज्यों यानी महाराष्ट्र व दिल्ली से भी सीखना होगा। खास तौर पर महाराष्ट्र ने जिस तरह होम आइसोलेशन को फिर संस्थागत क्वारंटीन बनाने के आदेश दिए हैं, उससे सीखते हुए हिमाचल को भी अपनी पुरानी व्यवस्था में लौटना होगा। प्रदेश में मौत के आंकड़े कम करने के लिए यह आवश्यक कदम माना जा रहा है। मुख्यमंत्री ने जिस सावधानी से कर्फ्यू लगाया है, उसी एहतियात से बाजार को पूरी तरह खोलना होगा। देखना यह होगा कि बाजार के साथ प्रदेश की गतिविधियां कहां तक खुलती हैं। सार्वजनिक परिवहन का खुलना सीधे बाजार और बाजार की दिहाड़ी से जुड़ता है, लेकिन इसे निर्बाध नहीं छोड़ा जा सकता। तीन या चार घंटे के बाजार के लिए परिवहन व्यवस्था का क्या प्रारूप होगा और नागरिक अपने भीतर समूह पैदा न करें, इसके लिए क्या शर्तें होंगी। जाहिर है इस बार तमाम व्यापार मंडलों के नजदीकी सहयोग से ही बाजार खुलने के सही अर्थ सामने आएंगे। सरकार अपने बंद कार्यलयों की कुंडियां किस हद तक खोलती है और यह भी कि आवश्यक सेवाओं, सरकारी प्रक्रियाओं तथा दफ्तरों में अटके जनता के कार्यों को कैसे पूरा करवाती है। सरकार के अपने कार्य भी बंद दफ्तरों में अटके हैं, अतः छूट की प्राथमिकता के बावजूद, संकट से उबरने की पहरेदारी भी देखी जाएगी।
2.कोरोना के विकराल आंकड़े!
विश्व स्तर के विशेषज्ञों का अनुमान है कि सामान्य स्थितियों में भी भारत में करीब 40-42 करोड़ लोग संक्रमित हुए। मौतें भी करीब 6 लाख होनी चाहिए। खराब स्थितियों में संक्रमण का आंकड़ा करीब 53.9 करोड़ होना चाहिए और मौतें 16 लाख तक जा सकती हैं। सबसे खराब हालात में 70.7 करोड़ लोग संक्रमित हुए और मौतों का आंकड़ा 42 लाख तक पहुंच सकता है। सारांश यह है कि भारत में कोरोना वायरस से 6 लाख और 42 लाख के बीच मौतें होनी चाहिए। यह कोई दावा नहीं, बल्कि अनौपचारिक आकलन है, जो भारत में किए गए तीन सीरो सर्वे के डाटा पर आधारित है। ये आंकड़े चौंकाने वाले और भयावह हैं। अमरीका के ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ अख़बार ने 12 विशेषज्ञों के आकलन के आधार पर एक रपट तैयार कराई है, जो भारत में कोरोना संक्रमण की एक अलग और असल तस्वीर चित्रित करती है। रपट के मुताबिक, भारत की 50 फीसदी आबादी, अर्थात् करीब 70 करोड़ लोग कोरोना संक्रमण के शिकार हो चुके हैं। संक्रमितों का असल आंकड़ा 13.5 से 28.5 गुना तक अधिक हो सकता है। विशेषज्ञों ने 11 मई-4 जून, 2020, 18 अगस्त-20 सितंबर, 2020 और 18 दिसंबर,’20-6 जनवरी, 2021 को भारत में संक्रमण और मौतों के सही आंकड़ों का अनुमान लगाने के लिए तीन सीरो सर्वे के डाटा का इस्तेमाल किया।
फिलहाल देश में संक्रमितों का आधिकारिक और सरकारी आंकड़ा 2.73 करोड़ से ज्यादा है और मौतें 3.15 लाख को पार कर चुकी हैं। विशेषज्ञों के आकलन और सरकारी डाटा में अत्यंत गहरे फासले हैं। यदि आकलन और मूल्यांकन सटीक समझे जाएं, तो वे सरकारी सच से कई गुना ज्यादा हैं। क्या भारत में इतने संक्रमित मरीज और मौतें हो सकती हैं अथवा हो चुकी हैं? यह सवाल बेहद महत्त्वपूर्ण है। चूंकि प्रधानमंत्री मोदी एक अवसर पर राज्य सरकारों और संबद्ध पक्षों से अपील कर चुके हैं कि यदि संक्रमण और मौत के आंकड़े ज्यादा हैं, तो उन्हें भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए। कोरोना काल में यह पारदर्शिता भी जरूरी है, लिहाजा ऐसा कुछ सामने आया है कि कोरोना का डाटा देश से छिपाया जा रहा है और प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा है। कोरोना संक्रमण के जो आंकड़े बताए जा रहे हैं, उनमें कई अर्द्धसत्य निहित हो सकते हैं। अलबत्ता हम सरकारी डाटा को भी नकार नहीं रहे हैं, क्योंकि हमारे लिए वही अधिकृत आंकड़े हैं, लेकिन अमरीका शोध संस्थान और विशेषज्ञों ने भारत में एक करोड़ और दूसरी लहर में 2 करोड़ संक्रमितों की भविष्यवाणी भी की थी। हालांकि सरकार के स्तर पर उन आंकड़ों को खारिज किया गया, लेकिन आज नंगा यथार्थ सामने मौजूद है। सीरो सर्वे के निष्कर्ष भी महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि उससे थाह मिलती है कि कितने संक्रमित हुए और कितने लोगों के शरीर में एंटीबॉडी बनी हैं।
विशेषज्ञों का आकलन है कि सीरो सर्वे के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 15, 20 और 26 गुना संक्रमण फैला है, नतीजतन मौत के आंकड़े 6-42 लाख के बीच संभव हैं। इन आकलनों और आंकड़ों पर विश्वास किया जा सकता है, क्योंकि हमारी व्यवस्था में अस्पताल के बाहर के आंकड़े गायब हैं। गंगा नदी में जो शव तैरते हुए देखे गए हैं, उनकी गिनती कहां की गई है? उन्हें कोरोना के कारण हुई मौतें माना गया है क्या? श्मशानघाट और कब्रिस्तान बनाम सरकारी आंकड़ों में ही गंभीर विरोधाभास पाए गए हैं। सरकारी दफ्तरों से जितने मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाए गए हैं और जितनी कोरोना मौतें घोषित की गई हैं, उनमें भी विवादास्पद आंकड़े हैं। अस्पतालों में जो मौतें होती हैं, सभी की वजह डॉक्टर कोरोना संक्रमण नहीं लिखते। कुछ अन्य बीमारियों के मत्थे मौतें मढ़ दी जाती हैं। जिनकी मौत घर में कोरोना संक्रमण के कारण हुई हैं, वे आंकड़े लुप्त या अनिश्चित हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत जैसे विशाल और विविध देश में मृत्यु-दर का आंकड़ा प्रति हजार 3 से 6 है, तो संभव है कि कोरोना संक्रमण से अब तक करीब 42 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। बेशक यह बेहद भयावह सच है। सवाल है कि क्या विदेशों में सक्रिय विशेषज्ञों के गणितीय फॉर्मूलों पर यकीन किया जा सकता है? क्या भारत में कोरोना संक्रमण के असल आंकड़े यही हैं? हमारे सवालों की पुष्टि कौन करेगा?
3.अर्थव्यवस्था पर असर
पिछले एक साल से ज्यादा वक्त से चल रही कोरोना महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया है। महामारी से जो देश सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, उनमें तो भारत है ही, जिन देशों की अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है, उनमें भी भारत का नंबर बहुत ऊपर है। ऐसे में, कोरोना नियंत्रण के साथ यह सवाल भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि अर्थव्यवस्था को कैसे संभाला जाए? सीआईआई के अध्यक्ष और कोटक महिंद्रा बैंक के प्रमुख उदय कोटक के कई इंटरव्यू इस बीच कई जगह प्रकाशित हुए, जिनमें उन्होंने कोरोना और अर्थव्यवस्था पर इसके असर को लेकर लंबी बातचीत की है। हम यह मान सकते हैं कि कोटक की राय से देश के बहुत सारे अर्थशास्त्री और उद्योगपति भी सहमत होंगे। कोटक ने मुख्यत: दो मुद्दों पर बात की है। एक मुद्दा यह है कि अर्थव्यवस्था की तरक्की इस बात पर निर्भर है कि हम कोरोना से निपटने के लिए क्या रणनीति बनाते हैं। उनका कहना है कि अगर हम अगस्त तक लगभग 15 करोड़ टीके हर महीने लगाने की स्थिति में पहुंच जाएं, तो यह भरोसा हो सकता है कि कोरोना पर हम नियंत्रण कर लेंगे और अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी ।
कोटक का दूसरा मुद्दा यह है कि इस वक्त सरकार को अपनी मौद्रिक नीति को और उदार बनाना चाहिए। जो बात कई जानकार लगभग एक साल से कह रहे हैं, कोटक ने उसे ही आगे बढ़ाया है कि सरकार को लोगों, खासकर कमजोर वर्गों की आर्थिक सहायता करनी चाहिए। कोटक के मुताबिक, इसके लिए नोट छापने पड़ेंगे, पर अगर यह नोट छापने का सही वक्त नहीं है, तो फिर कौन सा होगा? एक तरफ, सरकार को गरीब लोगों के हाथों में सीधे पैसे पहुंचाने चाहिए, तो दूसरी ओर उद्योगों की मदद के लिए पिछले साल कर्ज का जो पैकेज घोषित हुआ था, उसे तीन लाख करोड़ से बढ़ाकर पांच लाख करोड़ रुपये कर देना चाहिए। बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के एक अध्ययन के मुताबिक, कोरोना काल में पिछले साल लगभग 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए। अर्थव्यवस्था की आज जो स्थिति है, उसके मद्देनजर इस आंकड़े में अभी और बढ़ोतरी होगी। लोगों की नौकरियों का जाना, आय में कमी और काम-धंधे के बंद हो जाने का असर सभी क्षेत्रों और लगभग सभी वर्गों पर पड़ा है। इससे लोगों की तकलीफें तो बढ़ी ही हैं, आर्थिक तंगी और असुरक्षा के चलते उनकी खर्च करने की क्षमता कम हुई है, जिसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था की गति धीमी हुई है और इसकी बेहतरी का रास्ता कठिन हो गया है। यह एक ऐसा चक्र है, जो तभी टूटेगा, जब लोगों के हाथों में पैसा आएगा, उनकी खर्च करने की हैसियत बढ़ेगी और आत्मविश्वास बढे़गा।
अब तक भारत सरकार का रवैया अर्थव्यवस्था में बहुत सावधानी भरा रहा है। सरकार ने जो आर्थिक पैकेज घोषित किए थे, उनमें ज्यादातर बजट घोषणाओं की री-पैकेजिंग और कर्ज की योजनाएं ही थीं। लेकिन कर्ज लेने का उत्साह तो तभी होगा, जब फलने-फूलने की उम्मीद होगी? फिलहाल तो स्थिति यह है कि लोगों को सहायता की जरूरत है। अगर सरकार अभी से इस दिशा में सोचना शुरू करे, तो लोगों को राहत मिलेगी और इस साल के अंत तक देश की अर्थव्यवस्था में भी उम्मीद दिख सकती है।
4. तूफानों का उफान
सबक ले मुकाबले को बने कारगर तंत्र
यह अच्छी बात है कि हाल ही में देश के पश्चिमी तट पर ‘ताउते’ के तुरंत बाद आये ‘यास’ तूफान में ज्यादा मानवीय क्षति तो नहीं हुई, लेकिन संपत्ति के नुकसान को टाला नहीं जा सका। कुछ लोगों की मौत की पुष्टि के साथ बंगाल में करीब एक करोड़ लोग प्रभावित हुए और तीन लाख घरों के तबाह होने की बात कही जा रही है। बंगाल की खाड़ी में उठा चक्रवाती तूफान बुधवार की सुबह उत्तरी ओडिशा के समुद्री तट तथा उससे लगे पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों से टकराया था। तेज हवाओं व समुद्र में ऊंची लहरें उठने के बाद रिहाइशी इलाकों में पानी भरने से नुकसान होने की खबरें हैं। कोलकत्ता के कई निचले स्थानों पर बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। फिर यह तूफान कमजोर होकर झारखंड व बिहार के कुछ इलाकों में बढ़ गया। यह अच्छी बात है कि मौसम विभाग की सटीक सूचनाओं के आधार पर समय रहते ओडिशा में करीब 5.8 लाख और पश्चिम बंगाल में पंद्रह लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया। कोरोना संकट में सुरक्षित दूरी के तहत इन प्रयासों को अंजाम देना निश्चित ही चुनौती भरा काम था। लेकिन इसके चलते हम जन हानि को कम कर सके। बहरहाल, बिजली-पानी की आपूर्ति सामान्य करने और सड़कों को बाधाओं से मुक्त करने में कुछ समय लगेगा। यह अच्छी बात है कि ताउते तूफान आने पर लापरवाही के चलते पी-305 बार्ज पर जो हादसा हुआ था, ऐसी लापरवाही इस बार उजागर नहीं हुई। तूफानग्रस्त इलाकों में नेताओं का हवाई सर्वेक्षण शुरू हो चुका है, नुकसान के आंकड़े आने में अभी कुछ वक्त लगेगा, लेकिन हमें हर तूफान से कुछ नया सीखना चाहिए। यह अच्छी बात है कि हमने तूफान की सूचना समय से हासिल करके सुरक्षात्मक उपाय उठाकर जन-धन की हानि को कम करने में सफलता पाई है। ऐसे तूफान से जूझने की हमारी तैयारियों में पिछले तूफानों का अनुभव काम आया है। निस्संदेह पिछली आपदा का अनुभव अगली आपदा में हमारा मार्गदर्शक बनना चाहिए। इन दो राज्यों के अलावा कई अन्य समुद्री तट पर स्थित राज्यों में बचाव के लिये एनडीआरएफ की टीमें तैनात की गई थीं।
बहरहाल, हमारी कोशिशों के बीच तूफान की तीव्रता से कुछ नुकसानों को टाला नहीं जा सकता। जिसमें पेड़ों का गिरना, जल भराव, कच्चे मकानों का ध्वस्त तथा बिजली व संचार सुविधाओं का बाधित होना शामिल है। फसलों व फलों को होने वाली क्षति भी इसमें शामिल है। समय रहते मछुआरों को सूचित करने व नौकाओं तथा जहाजों को समुद्र से हटाने से भी जन-धन की क्षति कम होती है। लेकिन एक बात तो तय है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम के मिजाज में लगातार आ रहे बदलाव के चलते हमें ऐसे दूसरे तूफानों के लिये तैयार रहना होगा। तूफान के इस मौसम के नवंबर तक चलने की बात कही जा रही है। साथ ही उसी तरह हमें अपने विकास के ढांचे और भवन निर्माण शैली को विकसित करना चाहिए। हमें याद होगा कि पिछले साल इसी समय में भारी-भरकम नुकसान पहुंचाने वाले ‘अम्फान’ तूफान का कहर बरपा था। उसके बाद अप्रत्याशित रूप से असमय ही ‘निसर्ग’ तूफान का हमला हुआ था। तूफान के आने के समय और आवृत्ति कई मायनों में चौंकाने वाली हैं। बहरहाल, ‘ताउते’ और ‘यास’ तूफान ऐसे समय में आये हैं जब देश इस सदी की सबसे बड़ी कोरोना संक्रमण की महामारी से जूझ रहा है। जो उस कहावत को चरितार्थ करता है कि मुसीबत अकेली नहीं आती। बहरहाल, हमें मानकर चलना चाहिए कि निकट भविष्य में ऐसे तूफान और आएंगे, हमें अपनी तैयारी, भविष्यवाणी का तंत्र और राहत-बचाव का ढांचा उच्चतम स्तर का तैयार रखना चाहिए, ताकि जन-धन की हानि को टाला जा सके। इसमें उन्नत तकनीक व विज्ञान के ज्ञान का बेहतर उपयोग होना चाहिए। यह जानते हुए कि वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम के मिजाज में खासी तल्खी आई है और इसका व्यवहार अप्रत्याशित है, ऐसे में और अधिक सतर्क और तैयार रहने की जरूरत है।