इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है
1.जनरल को आखिरी सलाम
भारत के सर्वोच्च सेनापति, प्रथम चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, जनरल बिपिन रावत को नियति ने हमसे छीन लिया। वह, उनकी पत्नी मधुलिका और 11 अन्य जांबाज सैनिक एक खौफनाक, भयावह, दर्दनाक और त्रासद हेलीकॉप्टर हादसे के शिकार हो गए। यकीन नहीं होता इस सामूहिक मौत पर…! हेलीकॉप्टर भी असाधारण श्रेणी का था-एमआई-17वी5। देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी इस हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करते रहे हैं। सेना के रणबांकुरे जवान भी इस रूसी हेलीकॉप्टर के जरिए आवाजाही करते रहे हैं।
इसे दुनिया का सबसे मजबूत, विश्वसनीय और सुरक्षित हेलीकॉप्टर माना जाता रहा है, लेकिन उसकी उड़ान भारत के सर्वोच्च सेनापति, सैन्य रणनीतिकार और सेनाओं की थियेटर कमान के सूत्रधार जनरल रावत को हमेशा के लिए लील गई। असामयिक, अकाल्पनिक, अस्वाभाविक मौत…..! बेशक देश विक्षुब्ध है, ग़मगीन है और मन के भीतर ढेरों सवालों को मथते हुए संयमित है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों? हवाई हादसे होते रहे हैं। साल में औसतन 20 विमान दुर्घटनाएं भारत में होती हैं। 1963 की वह घोर त्रासदी भी याद आती है, जब एक ही हवाई हादसे ने हमारे कई वरिष्ठ सैन्य कमांडरों को छीन लिया था। मौजूदा हादसा उससे भी वीभत्स और हत्यारा साबित हुआ है, क्योंकि हेलीकॉप्टर में देश के प्रधान सेनापति मौजूद थे। उस अतिविशिष्ट पदेन चेहरे की सुरक्षा हर कीमत पर पुख्ता की जानी चाहिए थी। यकीनन वायुसेना के अधिकारियों, इंजीनियरों और पायलटों ने पुरजे-पुरजे को जरूर खंगाला होगा। सुरक्षा सुनिश्चित की होगी। उनकी विलक्षण योग्यता पर कोई संदेह या सवाल नहीं है, लेकिन इसी को नियति कहते हैं। वायुसेना की विशेषज्ञ जांच उन कारणों की गहराई और सच्चाई तक जरूर पहुंचेगी, जिनके कारण देश के प्रथम सीडीएस को ‘शहीद होना पड़ा। हमारे प्रशिक्षित सैन्य अधिकारी और कमांडो भी ‘शहीद हो गए। क्या इस नुकसान की कीमत आंकी जा सकती है? क्या इस शून्य की यथाशीघ्र भरपाई संभव है? सीडीएस जनरल रावत एक सपने को यथार्थ में परिणत कर रहे थे।
हमारी तीनों सेनाओं के बीच एकजुटता, साझापन और समन्वय ऐसा हो कि कोई विरोधाभास न रहे, लिहाजा जनरल रावत 22 दिसंबर, 2023 तक के कार्यकाल में ही थियेटर कमान की स्थापना करना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि प्रधानमंत्री मोदी 15 अगस्त को लालकिले से इस कमान की घोषणा करें। जनरल रावत कमाल, अद्वितीय, कर्मयोगी सेनापति थे, लिहाजा अमरीका ने जो काम 30 साल में किया था, उसे वह तीन साल में ही अंजाम देना चाहते थे। वह चीन के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होना चाहते थे। वह आतंकवाद के जबरदस्त खिलाफ थे, लिहाजा आतंकियों को ढेर करना ही उनका बुनियादी लक्ष्य रहा था। ‘ऑपरेशन ऑल आउट उनकी ही स्वप्निल उपज थी। बहरहाल अब सब कुछ अधूरा लटक गया। सेना के संपूर्ण आधुनिकीकरण का पुरोधा और स्वप्नजीवी सेनापति चला गया। अब नए सिरे से शुरुआत करनी होगी। लेकिन कमोबेश वायुसेना को अपनी हवाई सुरक्षा पर व्यापक और गहन मंथन करना होगा। एमआई-17 हेलीकॉप्टर के कारण ही कई बार परेशानियां हुई हैं और हादसों में 40 से अधिक लोगों की मौत भी हुई है। हमें पता है कि सेना की जांच सार्वजनिक नहीं की जाती। उस पर गोपनीयता की कई चादरें और परतें होना स्वाभाविक है, क्योंकि यह देश की सुरक्षा का मामला है, लेकिन सबसे मजबूत और सुरक्षित हेलीकॉप्टर की नए सिरे से जांच की जानी चाहिए। हमारी सेना में अब भी पुराने और खटारा विमान और हेलीकॉप्टर होंगे। उन्हें सेना यथाशीघ्र बदलेगी, यह काम भी करना है।
2.इस सत्र की अनेक मुद्राएं
जब कभी तपोवन विधानसभा परिसर में सत्र का आयोजन होगा हिमाचल के राजनीतिक शिल्पकार, वीरभद्र सिंह याद आएंगे। आज से आहूत विधानसभा सत्र भले ही इसकी मकदार में छोटा है, लेकिन जिस विशालता से पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कांगड़ा जिला को यह मुकुट पहनाया, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसी तर्ज पर कांग्रेस के मुददे, मसले और सियासी मकसद, विधानसभा सत्र के आगाज को अंजाम तक पहुंचाने की करवटें लेंगे। पिछली सरकार के जिन वादों से वर्तमान सरकार मुकर गई या जिस हालात में विकास के पहिए क्षेत्रवाद की सौगात ढोते रहे, उनके कुछ चि_े खुलेंगे। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार के संबोधन अपने ही आंकड़ों से मेलजोल करेंगे, तो विपक्ष के श्वेत पन्नों पर अंकित पड़ताल का जिक्र भी होगा। सरकार के पास प्रदेश में सौ फीसदी वैक्सीनेशन का आंकड़ा है, तो एम्स, पीजीआई सेटेलाइट सेंटर की बुनियाद का जश्न भी रहेगा। घोषणाओं के कई अपवाद और घोषणाओं के कसूरवार जब आपस में मुकाबला करेंगे, तो विपक्ष भी अपनी रिक्तियां भरेगा। कांग्रेस के लिए यह सत्र जुबान और जायदाद का भी है, क्योंकि सदन के भीतर जो बोला जाएगा उसे बाहर राजनीतिक संपत्ति के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
अंतिम वर्ष में सत्ता के लिए अपने ही निष्कर्षों से युद्ध और पैरवी में वे तमाम इश्तिहार जो बेडिय़ां पहनकर चल रहे हैं। यानी सदन में इस बार विधायकों की शिनाख्त में अगर कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है या पार्टी का एक सदस्य बढ़ गया है, तो इस लम्हे और लहजे में विपक्ष के कठघरे में सत्ता की चमक तो रहेगी ही। चार उपचुनावों में सत्ता की हार के कारण चाहे कांग्रेस की जीत की वजह न हों, फिर भी चुनावी अभियान की चुगली में सत्र तपेगा जरूर। महंगाई की डायन उपचुनावों से चलकर विधानसभा सत्र तक को अपना हाल बताएगी तो कानून व्यवस्था के छिलकों पर फिसलने का माहौल विपक्ष पैदा करेगा। बेशक चुनावी हार के बाद भाजपा ने न संगठन और न ही सरकार के किसी ओहदे को ताबूत में बंद किया, लेकिन इससे कांगे्रस का आत्मबल तो सामने आएगा ही।
सरकार ने उपचुनावों के बाद अपनी गति को विस्तार देते हुए कई विधानसभा क्षेत्रों में उपचार शुरू किया है, तो करोड़ों के वादे-दावों के बीच कुछ उद्घाटन व कुछ शिलान्यास करके जो चमक पैदा की जा रही है, उसका उल्लेख भी तो होगा। इसी दौरान जेसीसी बैठक से निकला घोषणापत्र सरकार को कहने के लिए उच्च स्थान देता है। आखिर इसी साल 7500 करोड़ का हिसाब-किताब करते हुए वह कर्मचारियों को अंतिम चुग्गा दे रही है, तो बजट से बड़ी खैरात का कुछ तो असर होगा। यह दीगर है कि कांग्रेस अपनी विपक्षी भूमिका में यह चिंता करेगी कि राज्य की बजटीय कंगाली के लिए अनावश्यक ऋण क्यों लिया जा रहा या यह भी कि आर्थिक सुधारों की शून्यता पर फिजूलखर्ची का आलम क्यों। शीतकालीन सत्र के दौरान भागते अनेक आंदोलन अगर तपोवन पहुंच रहे हैं, तो विपक्ष की भाषा में इनका प्रतिनिधित्व होगा और सवाल सदन तक पहुंचते हुए सवर्ण आयोग के गठन या पुलिस जवानों के पे बैंड तक पूछे जा सकते हैं।
जाहिर है सत्ता का कांगड़ा आगमन एक वार्षिक परीक्षा है और इस रिवायत की पलके खुलते ही वीरभद्र याद आएंगे। इस बार सदन में वीरभद्र सिंह को स्मरण करते विषय होंगे, लेकिन जिन विषयों को लेकर वीरभद्र सिंह ने तपोवन के अस्तित्व में प्रदेश का राजनीतिक-आर्थिक संतुलन शिमला से धर्मशाला तक जोड़ा था, वह लावारिस क्यों है। धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा कांगड़ा की घोषित योजनाओं-परियोजनाओं पर सन्नाटा या केंद्रीय विश्वविद्यालय के अस्तित्व की खामोशी को लेकर प्रश्र तो पूछने होंगे। पूछना यह भी होगा कि वित्तायोग से धन प्राप्त करके भी कांगड़ा एयरपोर्ट का विस्तार क्यों अटक गया। कांगड़ा-शिमला और कांगड़ा-मंडी फोरलेन के अलावा पठानकोट-मंडी रेल लाइन का ब्रॉडगेज होना क्यों पहेली बन चुके हैं। ऊना से हमीरपुर रेल लाइन, धर्मशाला से राष्ट्रीय खेल छात्रावास, नादौन स्पाइस पार्क, धर्मशाला आईटी पार्क व पौंग पर्यटन परियोजनाएं कहां चली गईं, लेकिन सबसे बड़ा प्रश्र तो यही कि क्या पांच दिवसीय सत्र इस हालात में होगा भी कि प्रश्र उठ जाएं। इतनी कम अवधि के सत्र को दो हफ्ते का विस्तार देने की जरूरत पर अगर पक्ष-प्रतिपक्ष, अपना-अपना औचित्य बढ़ा लें, तो यह पहल सार्थक होगी। कांग्रेस के भीतर वीरभद्र सिंह की रिक्तता के बाद सदन में एकजुटता, आपसी संवाद-तालमेल और सत्ता को घेरते नेताओं को सुनना, इस बार नई ऊर्जा से मुखातिब होगा।
3.समापन की ओर आंदोलन
लगभग चौदह महीने की जद्दोजहद के बाद किसान आंदोलन का आखिरकार समापन तक पहुंचना राहत और स्वागत की बात है। 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के साथ ही साफ संकेत मिल गया था कि सरकार अब किसानों की मांग के आगे झुकने को तैयार है। हालांकि, तब किसान वापसी के लिए तैयार नहीं हुए थे। शायद सरकार पर विश्वास कम था, तो किसानों ने संसद से कानून के रद्द होने का इंतजार किया। 29 नवंबर को लोकसभा और राज्यसभा में तीन कृषि कानूनों का निरस्तीकरण हुआ। इसके बाद भी किसान दिल्ली की सीमाओं से नहीं हटे, क्योंकि वे बाकी मांगों को भी लगे हाथ मनवाना चाहते थे। किसानों में एक भय भी था, जिसे संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश सिंह टिकैत ने जाहिर भी कर दिया था कि जो भी जल्दी घर जाएगा, वह जेल जाएगा। यह किसानों की एक बड़ी चिंता थी कि आंदोलन के दौरान दर्ज हुए मुकदमे सरकार पहले वापस ले। जबकि सरकार चाहती थी कि किसान पहले आंदोलन खत्म करें, तब मुकदमे वापस होंगे, लेकिन किसानों ने मुकदमा वापस लेने के आश्वासन मिले बिना आंदोलन खत्म करने से इनकार कर दिया। जिस ढंग से किसानों ने इस समग्र आंदोलन को चलाया है, उसकी आलोचना भले संभव है, पर आंदोलन को सफल मानने की अनेक वजहें दर्ज हो चुकी हैं।
केंद्र सरकार से लिखित आश्वासन लेने के बाद ही संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान आंदोलन को फिलहाल खत्म करने का एलान किया है। दिल्ली की सीमा और अन्य कम से आधा दर्जन जगहों से किसानों के प्रमुख जमावड़ों की वापसी 11 दिसंबर से शुरू हो जाएगी। दिल्ली की ओर जाने वाले तमाम रास्ते 15 दिसंबर तक पूरी तरह खुल जाने की उम्मीद है। बड़ा दिल दिखाते हुए किसान नेता शिवकुमार कक्का ने कहा है कि हम देश के उन तमाम लोगों से माफी मांगते हैं, जिन्हें इस आंदोलन के चलते परेशानी हुई है। जिन इलाकों में लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था, उनके लिए तो आंदोलन का खत्म होना किसी खुशखबरी से कम नहीं है। निश्चित रूप से आंदोलन के खत्म होने से आवागमन ही नहीं, आम लोगों और अर्थव्यवस्था को भी मदद मिलेगी। साथ ही, यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि ऐसे आंदोलनों की लागत बहुत होती है, भविष्य में फिर कभी ऐसी नौबत न आए, यह सुनिश्चित करने का काम सरकार का है।
आंदोलन खत्म हो रहा है, लेकिन किसानों की समस्याओं के समाधान में अभी वक्त लगेगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर समिति बने, किसानों की मर्जी से ही मूल्य तय हो, देश के सभी किसानों को अपनी फसलों का यथोचित मूल्य मिले, लोग यही चाहते हैं। कृषि पर सरकार इतना ध्यान दे कि कृषि को लोग जीविका का लाभदायक साधन मानें। किसानों के हित में कृषि उत्पादों की कीमतों में इजाफे के लिए सभी को तैयार रहना चाहिए। हर राज्य सरकार को अपने-अपने स्तर पर देखना चाहिए कि उनके यहां किसानों का शोषण रुके, लागत की भरपाई के साथ ही न्यायपूर्ण आर्थिक लाभ भी जेब में आए। 40 किसान संगठनों की ऐतिहासिक एकता इस आंदोलन की सफलता पर ही खत्म नहीं होनी चाहिए। किसानों का शोषण करने वाले व्यापारियों और नेताओं पर लगाम लगाए रखने की जिम्मेदारी भी किसान संगठनों को उठानी पड़ेगी।
4.अपूरणीय क्षति
देश याद रखेगा जनरल रावत का योगदान
ऐसे समय में जब देश चीन-पाक सीमा पर सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है, सेना के आधुनिकीकरण और तीनों सेनाओं के बीच रणनीतिक दृष्टि से बेहतर तालमेल बनाने वाले प्रमुख रक्षा अध्यक्ष यानी सीडीएस जनरल बिपिन रावत की हेलिकॉप्टर हादसे में मृत्यु देश के लिये अपूरणीय क्षति है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी रावत की आवश्यकता देश की सुरक्षा से जुड़े विभिन्न आयामों के लिए अपरिहार्य थी। जब राजग सरकार ने देश की सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर तीनों सेनाओं में बेहतर तालमेल और कारगर निर्णय क्षमता के लिये सीडीएस पद सृजित किया तो वे देश की पहली पसंद थे। थल सेनाध्यक्ष के कार्यकाल के रूप में उनका योगदान उन्हें इस महत्वपूर्ण पद के लिये अतिरिक्त योग्यता के रूप में देखा गया। दुखद ही है कि इस हादसे में बिपिन रावत, उनकी पत्नी समेत सेना के वरिष्ठ अधिकारियों, चालक दल के सदस्यों व जवानों समेत तेरह लोगों को देश ने खोया है। एक लेफ्टिनेंट जनरल के पुत्र बिपिन रावत ने सेना को अपना भविष्य बनाने के संकल्प के साथ देश की सेवा में एक बेदाग भूमिका निभायी। हालांकि, अपनी स्पष्टवादिता के चलते कई बार उनके बयानों को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आई हैं, लेकिन शत्रुओं के खिलाफ उनकी रणनीति स्पष्ट और लक्ष्यों को हासिल करने वाली थी। पुलवामा हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण मानी गई थी। कारगर कार्यशैली के चलते ही वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ बेहतर तालमेल के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अभियानों को बेहतर ढंग से अंजाम दे पाये। उन्हें इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि मौजूदा रक्षा चुनौतियों के बीच वे भारतीय सेना के तीनों अंगों के संरचनात्मक परिवर्तन के माध्यम बने। इसके जरिये सेना के तीनों अंगों में बेहतर तालमेल स्थापित हो पाया। उम्मीद थी कि अपने बचे एक साल के कार्यकाल में वे देश की सुरक्षा से जुड़े बाकी मुद्दों को निर्णायक दिशा दे पायेंगे। मृत्यु से एक दिन पूर्व एक कार्यक्रम में जैविक युद्ध के खतरे के प्रति चेताकर उन्होंने नई सुरक्षा चुनौतियों की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था।
निस्संदेह, देश का हर महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने आप में विशिष्ट होता है, उसका कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे में उसकी रक्षा देश का दायित्व ही होता है। तमिलनाडु में कुन्नूर के निकट हुए हादसे ने महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े किये हैं। यूं तो वे वायुसेना के जांचे-परखे एम.आई-17, बी-5 के जरिये यात्रा कर रहे थे, जो उन्नत किस्म का हेलिकॉप्टर है, लेकिन इस हादसे ने इसकी उपादेयता पर नये सिरे से बहस छेड़ी है। हालांकि, बकौल रक्षामंत्री इस हादसे की त्रिस्तरीय जांच की जा रही है, लेकिन देश को आश्वस्त करना होगा कि इस हादसे से सबक लेकर देश की अनमोल हस्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। निस्संदेह, दुर्घटना की हकीकत जांच के बाद ही सामने आएगी, लेकिन देश के रक्षा के महत्वपूर्ण निर्णयों से जुड़े बड़े सैन्य अधिकारी की हवाई दुर्घटना मौत में साजिश के कोण से भी जांच होनी चाहिए। विगत में हमने देश के अपने क्षेत्रों के अनमोल रत्नों को संदिग्ध हादसों में खोया है। देश में युद्धक विमानों व हेलिकॉप्टर हादसों से देश को फिर कोई बड़ी क्षति न उठानी पड़े, इस दिशा में गंभीर प्रयासों की जरूरत है। ताकि देश यह भी जान सके कि यह हादसा सिर्फ कोहरे के कारण कम दृश्यता के कारण हुआ है या फिर इसके पीछे कुछ तकनीकी खामियां थीं। आज जब देश आर्थिक व तकनीक के क्षेत्र में नये आयाम स्थापित कर रहा है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि देश की महत्वपूर्ण हस्तियों की हवाई यात्रा आधुनिक तकनीकी सुविधा से दुर्घटनाओं से निरापद रहे। यूं तो हर भारतीय का जीवन महत्वपूर्ण है, फिर एक जवान का जीवन और महत्वपूर्ण है, तो उन जवानों का नेतृत्व करने वाले सेनानायक का जीवन तो अनमोल होता है, जिसकी कारगर सुरक्षा की जिम्मेदारी देश की है। बहरहाल, जनरल बिपिन रावत और हादसे में मारे गये अन्य सैनिक अधिकारियों व जवानों के बलिदान को कृतज्ञ राष्ट्र याद रखेगा।