इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव
हिमाचल में नए साल के राजनीतिक संबोधन आगामी चुनाव की पराकाष्ठा सुनाएंगे, तो इस बार विपक्ष में बैठी कांग्रेस के लिए भी यह गला साफ करने का वर्ष है। कांग्रेस के लिए पहली बार मनोवैज्ञानिक लड़ाई का कुरुक्षेत्र हिमाचल में पैदा होगा और इस दृष्टिकोण से भाजपा को महारत हासिल है। भाजपा की मनोवैज्ञानिक पिच पर कांग्रेस के लिए यह केवल उद्गार बदलने का मुकाबला नहीं, बल्कि राजनीति की मार्केटिंग में खुद को अव्वल साबित करने का नया संघर्ष है। बेशक चार उपचुनाव जीत कर कांग्रेस का चुनावी गणित सुधरा है, लेकिन इस हार ने भाजपा में रणनीति को नए अवतार में पेश करने की शिद्दत पैदा की है। भाजपा को एक तरफ डबल इंजन सरकार को पेश करना है, तो दूसरी ओर यह एहसास दिलाना है कि वीरभद्र सिंह के प्रति इनसानी संवेदना का असर वोटर मानसिकता के खेल पर नहीं होगा। सत्तारूढ़ दल आगामी बजट को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से परिपूर्ण करने की हरसंभव कोशिश करेगा, तो कांग्रेस के भीतरी कक्ष में फसाद खोजने के लिए एड़ी-चोटी लगा देगा। हिमाचल में कांग्रेस के लिए पंजाब-उत्तराखंड के चुनाव अगर मनोवैज्ञानिक प्रभाव रखते हैं, तो उत्तर प्रदेश में चुनावी करवटें बता देंगी कि भाजपा के भीतर जीत के प्रति कितनी आग है। बेशक यही आग कांग्रेस ने उपचुनावी शक्ति में पारंगत की, लेकिन इस जीत के साथ जनाक्रोश भी खड़ा रहा।
भाजपा इसी जनाक्रोश के प्रति चिंतित है और इसे दूर करने के फैसलों में सरकारी कर्मचारियों की आंख में सत्ता का सुरमा डाला जा रहा है। सरकार के अहम फैसलों में सरकारी कर्मचारियों से रिश्ते-नाते सुधरेंगे और ताबड़तोड़ तरीके से प्रदेश का खजाना अर्पित होगा। जाहिर तौर पर भाजपा अपने हर फैसले में ऐसा मनोविज्ञान पैदा करना चाहेगी जिससे जनाक्रोश व सरकार विरोधी लहर टूटे, लेकिन इससे कहीं अधिक विपक्ष के सुर टूटे या उसे विषय ही उठाने नहीं दिए जाएं। मंडी में भाजपा सरकार की चौथी वर्षगांठ में प्रधानमंत्री का शगुन दरअसल ऐसे ही मनोविज्ञान की कार्यशाला थी, जहां यह साबित किया गया कि समर्थकों का सैलाब पड्डल मैदान से निकलकर पूरे प्रदेश में फैलेगा। समर्थकों के मनोविज्ञान में कांग्रेस खुद को कितना सिद्ध कर पाती है, यह कशमकश पार्टी के राज्य नेतृत्व से आलाकमान तक देखी जाएगी। आक्रोश की रैलियों में ही अगर चुनाव हो जाए, तो अलग बात है, लेकिन अब भाजपा अपनी सत्ता के क्षेत्ररक्षण में हमेशा दो कदम आगे चलकर विपक्ष की रणनीति को विचलित करने का हुनर जानती है और इसी के परिप्रेक्ष्य में हिमाचल का ‘मिशन रिपीट’ खाक छान रहा है। मिशन रिपीट का अपना एक मनोविज्ञान रहा है, जिसके चलते कमोबेश हर पूर्ववर्ती सरकार ने आम जनता को नशा सुंघाने की कोशिश की। अपने पोस्टरों को बड़ा किया और विकास के खाके में हर क्षेत्र का क्षेत्ररक्षण किया। ऐसे में भाजपा का इस बार ‘मिशन रिपीट’ का मनोविज्ञान, कांग्रेस के आत्मबल को जरूर तोड़ना चाहेगा। ऐसे में देखना यह होगा कि विपक्ष का श्वेतपत्र इस बार बाहर निकलकर कोई गुल खिला पाता है या इससे पहले भाजपा के चक्रव्यूह में कांगे्रस की इस संपत्ति का भी नुकसान हो जाएगा।
आश्चर्य यह है कि भाजपा की सत्ता को पांचवें साल में भी कांग्रेस रक्षात्मक नहीं बना पा रही है और न ही चार उपचुनावों की जीत के बावजूद विपक्ष अपने मुद्दों को तीखा कर पाया है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री बेशक अपने विरोध की लाइन लंबी कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के अन्य नेताओं की टेढ़ी लाइनों का मिलन नहीं हो रहा। इस दौरान कुछ आंदोलन और कुछ विरोध प्रदर्शन हुए और कांग्रेस के बाज़ आकाश में उड़े जरूर हैं, लेकिन सामूहिक जिम्मेदारियों में नेताओं के बीच अपनी-अपनी भूमिका के संशय हैं, जबकि भाजपा की चुनावी गिद्ध दृष्टि पीछा कर रही है। सरकार और विपक्ष के बीच कौन किसकी ज्यादा गलतियां चुन पाता है और कौन किसकी फांस में आ जाता है, इस चुनावी मनोविज्ञान में अंतिम वर्ष की परीक्षा बड़ी होती जाएगी। भाजपा के खिलाफ कर्मचारी, व्यापारी, बस मालिक-होटल व्यवसायी और युवा मसले रहे हैं, लेकिन सरकार अपनी दुरुस्ती के आलम में दयालु भुजाओं से ताबड़तोड़ फैसले कर रही है, जबकि कांग्रेस के भीतर वीरभद्र सिंह के प्रभुत्व से विहीन होने का नकारात्मक प्रभाव बड़े नेताओं की नींद हराम कर रहा है। पिछले चुनाव में कुछ नेताओं ने आपसी शिकार में पार्टी वर्चस्व को चोट पहुंचाई थी, तो क्या इस बार नेताओं के बीच सौहार्द की वजह रहेगी।
- यह बच्चों का खेल नहीं
तीन जनवरी, 2022 का दिन भी इतिहास में दर्ज हो जाएगा, जब भारत में 15-18 आयु वर्ग के किशोर बच्चों का टीकाकरण शुरू किया गया। यह भी महत्त्वपूर्ण अभियान है। करीब 7.40 करोड़ बच्चों को कोरोना-रोधी टीके लगाए जाएंगे। इसके बाद 5-14 आयु वर्ग के करीब 24 करोड़ बच्चे भी उतने ही संवेदनशील पक्ष हैं, क्योंकि बच्चों के समग्र टीकाकरण के बाद ही देश की कुल इम्युनिटी, प्रतिरोधक क्षमता, का विश्लेषण किया जा सकता है। अभी तक बाल-टीकाकरण को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद रहे हैं। विभिन्न शोधात्मक अध्ययनों के निष्कर्ष थे कि बच्चों में कोरोना संक्रमण की संभावनाएं नगण्य हैं, जबकि दूसरे पक्ष के शोध यह दावा करते हैं कि टीका लगने के बावजूद बच्चे संक्रमण फैला सकते हैं। जाहिर है कि वे खुद भी संक्रमित होंगे। इस आशय का अध्ययन ब्रिटेन में किया गया है, जिसमें भारत सरकार के सीएसआईआर, जापान, हांगकांग के शोध संस्थानों ने भी सहयोग किया है। बहरहाल अब अंतिम निष्कर्ष यह है कि हमने बाल-टीकाकरण का आगाज़ कर दिया है। यह स्कूल और अभिभावकों के लिए बेहद राहत की ख़बर है, क्योंकि कोरोना संक्रमण, डेल्टा और ओमिक्रॉन स्वरूपों समेत, एक बार फिर फैल रहा है। भारत में संक्रमण के मामले एक दिन में 33,000 को पार कर चुके हैं। यह एक ही दिन में करीब 21 फीसदी की बढ़ोतरी है।
बीते 12 सप्ताहों में सबसे ज्यादा है। बाल-टीकाकरण से माता-पिता की बुनियादी चिंता समाप्त होगी और स्कूल भी संक्रमण से निश्चिंत होंगे। वैसे ज्यादातर राज्यों में स्कूल-कॉलेज बंद हैं, लेकिन ऐसा कब तक चलता रह सकता है। इसका बच्चों के मानसिक और शैक्षिक विकास पर जो प्रभाव पड़ेगा, उसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, लिहाजा बाल-टीकाकरण की गंभीरता को समझा जा सकता है। विश्व के 105 देशों में बच्चों को टीके लगाए जा रहे हैं। उनमें पांच देशों-अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, इज़रायल और इटली-में 50 फीसदी से ज्यादा बच्चों में टीकाकरण किया जा चुका है। क्यूबा एकमात्र ऐसा देश है, जहां 2 साल के बच्चे को भी टीका लगाया जा रहा है। सोच सकते हैं कि भारत बाल-टीकाकरण के लिहाज से कितना पीछे है! बहरहाल शुरुआत हो चुकी है। भारत में स्कूली बच्चों की संख्या करीब 6.5 करोड़ है। टीका उन बच्चों में भी लगाया जाएगा, जो किसी भी कारणवश स्कूल से बाहर हैं। इस बार टीकाकरण का दायित्व सिर्फ कोवैक्सीन पर ही है। कोवोवैक्स और कोर्बवैक्स नामक दो टीकों को हाल ही में आपात इस्तेमाल की मंज़ूरी दी गई है, लेकिन बच्चों के टीके को लेकर उनके परीक्षण अभी किए जा रहे हैं।
जायड्स कैडिला के जायकोव-डी टीके को भारत सरकार ने एक करोड़ खुराकों का ऑर्डर दे रखा है, लेकिन अपरिहार्य कारणों से फिलहाल उसे टीकाकरण अभियान से अलग रखा गया है। भारत बायोटेक कंपनी ने कोवैक्सीन टीका बच्चों के लिए अलग से बनाया है और विशेषज्ञों ने उसके परीक्षण का डाटा स्वीकार कर उसकी अनुशंसा की थी। हालांकि वयस्कों के टीकाकरण में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के कोविशील्ड टीके से कोवैक्सीन काफी पीछे रहा है। उसके उत्पादन और आपूर्ति की क्षमताएं पूरे 2021 के दौरान सवालिया रही हैं। अब कोवैक्सीन की अग्नि-परीक्षा है। चूंकि देश में बाल-टीकाकरण का आगाज़ हो चुका है, लिहाजा अब कोवैक्सीन की जिम्मेदारी है कि टीकाकरण में अवरोध पैदा नहीं होने चाहिए। बच्चों के टीके के अलावा, स्वास्थ्य कर्मियों, फ्रंटलाइन वर्करों और बीमार बुजुर्गों को जो ‘एहतियाती खुराक’ अगले सोमवार से दी जानी है, उसमें भी कोवैक्सीन की जरूरत पड़ सकती है। राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह मिक्सिंग और मैचिंग फॉर्मूले की अनुशंसा करता है, तो जिन लोगों ने कोविशील्ड की दो खुराक ले रखी हैं, उन्हें एहतियाती खुराक कोवैक्सीन की दी जा सकती है। बाल-टीकाकरण बच्चों का खेल नहीं है, क्योंकि संक्रमण पर नियंत्रण पाना है, तो सभी बच्चों को टीका लगना चाहिए।
3.सावधानी का समय
अमेरिका से भारत तक कोरोना के बढ़ते मामले हमें चिंता में डालने लगे हैं। पिछले सप्ताह से भारत में कोरोना संकट तेजी से बढ़ने लगा है। यदि प्रतिदिन 33 हजार से ज्यादा लोगों में कोरोना संक्रमण मिलने लगा है और ठीक होने वालों का दैनिक आकंड़ा महज 11 हजार के आसपास ही है, तो इसका मतलब है, सक्रिय मामलों की संख्या बढ़ने लगी है। गनीमत है, मरने वालों की संख्या सवा सौ के आसपास है और यह आंकड़ा बढ़ना नहीं चाहिए। ओमीक्रोन के मामले अभी भी कम हैं, लेकिन क्या डेल्टा का हमला फिर तेज हुआ है? डेल्टा क्या दूसरी लहर के समान ही घातक है? आने वाले दिनों में जब और आंकड़े सामने आएंगे, तब पता चलेगा। तीसरी लहर अगर शुरू हो गई है, तो स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए जिम्मेदार लोगों को विशेष रूप से सक्रिय हो जाना चाहिए? देश में कुल मामले डेढ़ लाख का आंकड़ा पार करने वाले हैं, क्या इस बार कुल मामलों को हम दो लाख से नीचे रोक पाएंगे? हम कैसे भुला दें, पिछले वर्ष मई में दूसरी लहर के समय प्रतिदिन चार लाख से ज्यादा मामले आने लगे थे और प्रतिदिन लगभग चार हजार लोग जान गंवा रहे थे। आज जरूरी है, उस बेहद बुरे दौर को याद कर लिया जाए और हर स्तर पर यथोचित तैयारी रखी जाए।
विशेषज्ञों की नजर में फिलहाल राहत यही है कि ज्यादातर लोगों का इलाज घरों में ही चल रहा है और अस्पतालों पर दबाव बढ़ना नहीं शुरू हुआ है। फिर भी समय रहते सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी मरीज को बिस्तर या ऑक्सीजन से वंचित न रहना पड़े। इस बार अगर किसी तरह की चूक हुई, तो अक्षम्य होगी। दूसरी लहर की तमाम खामियों, लापरवाहियों से हमने क्या सीखा है, यह सामने आने वाला है। ऐसे विशेषज्ञ सही सिद्ध होने चाहिए, जो तीसरी लहर के कम घातक होने का अनुमान लगा रहे हैं। तीसरी लहर को रोकने में टीकाकरण का कितना योगदान है, यह भी आने वाले दिनों में पता चलेगा। एक खतरा यह भी है कि अगर टीकाकरण के बावजूद लोग बड़ी संख्या में संक्रमित हुए, तब लोगों का टीकों पर से विश्वास उठ जाएगा। अपने देश में अभी ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो टीकों के लिए सहर्ष सामने नहीं आ रहे हैं। इसी महीने भारत में टीकाकरण को एक साल पूरा हो जाएगा, अभी करीब 64 प्रतिशत लोगों को ही टीके की दोनों खुराक मिली है। ऐसे में, टीकाकरण और तेज करने की वकालत कतई गलत नहीं है।
सोमवार से देश में 15 से 18 साल के किशोरों को कोरोना टीका लगाने की शुरुआत स्वागतयोग्य है। टीकाकरण शुरू होने से पहले इस उम्र वर्ग के आठ लाख किशोरों ने जिस उत्साह के साथ पंजीकरण कराया है, उससे साफ है कि इस आयु वर्ग के टीकाकरण में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। इसके बाद 10 जनवरी से 60 से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों, स्वास्थ्यकर्मियों व अन्य कोरोना योद्धाओं को बुस्टर डोज लगने की विधिवत शुरुआत हो जाएगी। लेकिन टीके से भी ज्यादा जरूरी है कि अपनी सुरक्षा के लिए सचेत रहना। याद रखें, पूर्ण रूप से टीकाकरण के बावजूद इजरायल भी चिंता में है और अमेरिका में तो कोरोना की नई लहर आ गई है। भारत को हर तरह से सचेत रहकर कोरोना महामारी से लड़ना है और साथ ही, यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि फिर से लॉकडाउन की नौबत न आने पाए।
- उम्मीदों का टीका
किशोरों के टीकाकरण से कोरोना से लड़ाई मजबूत
प्रतिकात्मक चित्र
सोमवार को पंद्रह से अठारह साल के किशोर-किशोरियों में वैक्सीन लगाये जाने को लेकर जो उत्साह नजर आया, उससे पता चलता है कि किशोर व अभिभावक संक्रमण से बचाव को लेकर खासे फिक्रमंद थे। नये वेरिएंट के तेज होते संक्रमण में किशोरों का टीकाकरण और अन्य पाबंदियां निस्संदेह दोहरी प्रतिरक्षा प्रदान करेंगी। काफी लंबे विमर्श के बाद किशोरों का टीकाकरण आरंभ हुआ। इससे जहां कोरोना से लड़ाई को मजबूती मिलेगी, वहीं शिक्षण संस्थानों में स्थिति शीघ्र सामान्य बनाने में भी मदद मिलेगी। गत 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने तीन जनवरी से किशोरों के टीकाकरण व 10 जनवरी से स्वास्थ्य कर्मियों, अग्रिम मोर्चे के कार्यकर्ताओं तथा साठ साल से अधिक उम्र के लोगों को तीसरी सुरक्षा डोज देने की घोषणा की थी। ओमीक्रोन की तेज संक्रमण दर के बाद यह जरूरी हो गया था। हालांकि, देशभर में अब तक 146 करोड़ से अधिक वैक्सीन की डोज लगायी जा चुकी हैं, जिसमें अस्सी करोड़ से ज्यादा को पहली व साठ करोड़ से अधिक को दूसरी डोज लगायी जा चुकी है। लेकिन यह हमारे लिये चिंता की बात होनी चाहिए कि करीब चौंसठ फीसदी वयस्क आबादी को ही दोनों डोज लग पायी हैं। फिक्र यह भी कि केवल पचपन फीसदी युवा आबादी ने दोनों टीके लगवाए हैं। बहरहाल, हालिया चरण में करीब आठ से नौ करोड़ किशोर-किशोरियों को दोनों डोज लगायी जाएंगी। उन्हें भारत बायोटेक का कोवैक्सीन टीका दिया जायेगा। इस आयुवर्ग के किशोर कोविन वेबसाइट पर नामांकन दर्ज करा सकते हैं। पहले से बने परिवार के सदस्य के अकाउंट के जरिये भी टीकाकरण के लिये रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है। इसके साथ ही टीकाकरण केंद्रों में भी किशोरवय पंजीकरण करवा सकते हैं। निस्संदेह, वयस्क आबादी के करीब इस आयुवर्ग को टीका दिया जाना सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आबादी संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील है। वहीं दूसरी डोज छह हफ्ते के अंतराल में दी जानी है।
उल्लेखनीय है कि कोवैक्सीन निर्माता कंपनी भारत बायोटेक के दो वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चों पर किये गये ट्रायलों के नतीजे उत्साहवर्धक रहे थे जो आयु के हिसाब से तीन वर्गों में किये गये थे, जिसमें इंजेक्शन लगने से हाेने वाले दर्द के अलावा कोई गंभीर नकारात्मक प्रभाव देखने में नहीं आया। कंपनी का दावा है कि वैक्सीन को ऐसे बनाया गया है कि यह वयस्कों व बच्चों में बराबर प्रभावी है। यूं तो माना जाता है कि बच्चों की इम्यूनिटी आमतौर पर बेहतर होती है, लेकिन वे संक्रमण के वाहक हो सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद ऐसे अभिभावकों की कमी नहीं है जो बच्चों के टीकाकरण को लेकर संकोच कर रहे हैं। यह स्वाभाविक है, विगत में भी देश में बच्चों के टीकाकरण को लेकर ऐसी ऊहापोह की स्थिति देखी गई थी। बहरहाल, यह वैक्सीन उन किशोरों के लिये बेहद उपयोगी होगी, जो किसी प्रकार के गंभीर रोगों के शिकार हैं। साथ ही मोटापा आदि की समस्या से जूझ रहे हैं। हाल के दिनों में देश के बच्चों में मोटापा एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। वैसे देश के स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब बारह से पंद्रह वर्ष के बच्चों को टीका लगाने की संभावनाओं पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। कुछ समय बाद देश के पास बच्चों को नाक से दी जाने वाली वैक्सीन का भी विकल्प होगा क्योंकि बड़ी संख्या में बच्चे इंजेक्शन लगाने से घबराते हैं। वैसे तो अमेरिका, यूरोप व एशिया के कई मुल्कों में छोटे बच्चों को वैक्सीन देना शुरू हो चुका है और चीन ने इसे बीते साल ही पूरा कर लिया बताया जाता है। हालांकि हर देश की परिस्थिति के हिसाब से ऐसे निर्णय लिये जाते हैं। उल्लेखनीय है कि देश में जायडस कैडिला की वैक्सीन जायकोव-डी को भी बच्चों के इस्तेमाल के लिये मंजूरी मिल चुकी है, जिसके जल्द ही बाजार में उपयोग के लिये आने की उम्मीद है। बहरहाल, किशोरों को वैक्सीन की शुरुआत आश्वस्त करती है कि हम नये संक्रमण का कारगर ढंग से मुकाबला कर सकेंगे। साथ ही, देश की बाकी रह गई युवा आबादी को टीकाकरण के लिये प्रोत्साहित करने की जरूरत है।