इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.क्रिसमस से लोहड़ी तक
विंटर कर्निवाल में पुन: महानाटी ने हिमाचल की सांस्कृतिक पलकें खोल दीं। ‘माहणू बोला शोभले उझी-मनाली रे, पाणी बोला ओकती यारा ओ’ के सामूहिक स्पंदन में छह सौ महिलाओं ने दृश्य और परिदृश्य का केवल मनोरंजन नहीं किया, बल्कि हिमाचल का सांस्कृतिक नेतृत्व भी किया। इन दिनों विंटर कार्निवाल के हर दरवाजे पर पर्यटन के साथ जुड़ता हिमाचल का प्रवेश हो रहा है, तो इस कैनवास को बड़ा करना होगा। वर्षांत पर्यटन से नए वर्ष के शुभारंभ को जोड़ते हुए अगर हम योजना बनाएं तो सर्द हवाओं में भी आर्थिकी की गर्माहट आएगी। विंटर कार्निवाल के जरिए पर्यटन निवेश की मनाली में सुध ले पाएगा या कोविड काल में गिरा ग्रॉफ बंद होटलों के दरवाजे खोल पाएगा। दरअसल हिमाचल में पर्यटन को नई परिभाषा चाहिए ताकि सैलानियों का कौतुक बना रहे। इसके लिए संदर्भ, साक्ष्य और सिलसिले चुनने पड़ेंगे। वर्षांत पर्यटन को लोहड़ी के हुजूम तक खड़ा करने का प्रयास करें तो तत्तापानी का खिचड़ी समारोह और गरली-परागपुर के अंगीठे ही नहीं दिखाई देंगे, बल्कि कांगड़ा-बैजनाथ मंदिरों का घृत मंडल भी इसके लिए योगदान करेगा।
इस तरह पंद्रह दिसंबर से 15 जनवरी को एक राज्य पर्यटन समारोह की खूबसूरती में रोड मैप तैयार किया जा सकता है। प्रवेश द्वारों से डेस्टिनेशन टूरिज्म तक स्थानीय उत्पादों की प्रदर्शनियों, फूड फेस्टिवल, एग्रोटूरिज्म, स्नोफेस्टिवल, वाटर स्पोट्र्स, एंग्लिंग, बर्ड वाचिंग, हिमालय उत्सव, लोक नाट्य व लोकगीत संगीत उत्सवों के आयोजन को एक साथ कई स्थानों पर शुरू किया जाए तो यह एक अनूठा सीजन होगा। हम चाहें तो अटल टनल में इस दौरान एक ही दिन में पहुंचे 7515 वाहनों के रिकार्ड को जश्र बना लें, लेकिन चुनौती यह है कि इन गाडिय़ों के पहिए आवारा या असंतुष्ट न हों। पूरे हिमाचल में पर्यटक आगमन के साथ कई नसीहतें हैं। यानी पर्यटक अब वाहन आगमन को चिन्हित करता है, तो मनोरंजन का यह दस्तूर अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे में अगर अटन टनल पहुंचने वाले 7515 वाहनों के रिकार्ड को दैनिक रूप से एक हजार तक सीमित किया जाए, तो यही आगमन अगले सात दिन की रौनक में तबदील हो जाएगा। मनाली का विंटर कार्निवाल जिन रास्तों से सैलानियों को आकर्षित करता है, क्या हम उसी तर्ज पर बिलासपुर से मंडी तक समानांतर फेस्टिवल नहीं जोड़ सकते।
दरअसल किसी भी डेस्टिनेशन का प्रवेश द्वार से जुडऩा आवश्यक है। यह निजी तौर पर हो रहा है, लोग भीड़ से विमुख शांति-विश्रांति चाहते हैं। इसलिए इस बार मकलोडगंज के होटल खाली रहे, जबकि साथ लगते इलाकों में होम स्टे या कैंपिंग साइट्स में सैलानियों ने मनोरंजन तलाशा। हमें याद रखना होगा कि अगर एक ही दिन में 7515 वाहन अटल टनल पहुंचेंगे, तो यह अजीब कशमकश होगी। ऐसे में या तो ट्रैफिक जाम से निकल कर पर्यटक हिमाचल से भाग जाएंगे या महंगे होटलों की सुविधाओं को भूल कर वह ग्रामीण पर्यटन के जरिए अपने बिगड़े मूड को सहलाएंगे। ग्रामीण विकास मंत्रालय को पर्यटन विभाग के साथ प्रमुख डेस्टिनेशन के साथ लगते इलाकों में विकास की ऐसी तहजीब पैदा करनी होगी, जो सैलानियों को सुकून दे सके। बहरहाल इस वक्त हम पैरवी करना चाहेंगे कि पर्यटक कैलेंडर बनाते समय एक बड़ा मानचित्र बनाया जाए ताकि पूरा हिमाचल कवर करने के लिए प्रवेश से डेस्टिनेशन तक आयोजन, आकर्षण, मनोरंजन सुविधाएं पैदा करते हुए अधिक समय के लिए सैलानी को रोका जा सके। पंद्रह दिसंबर से 15 जनवरी के पर्यटक सीजन में क्रिसमस से लोहड़ी पर्व को मनाते हुए जश्न में नव वर्ष आगमन, खिचड़ी पर्व के अलावा घृतमंडल समारोह को जोड़ते हुए व्यापक आकार दिया जा सकता है।
2.सामुदायिक संक्रमण की नौबत
केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय कोरोना संक्रमित होकर एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव और एक राज्यमंत्री के संक्रमित होने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पृथक्वास में जाना पड़ा है। बंगाल के ही एक अस्पताल में 70 डॉक्टर संक्रमित हुए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के ‘जनता दरबार’ में 6 लोग संक्रमित पाए गए। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, उनकी पत्नी, बेटी, बहू समेत परिवार के 11 सदस्य संक्रमित दर्ज किए गए हैं। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव संक्रमण की जकड़ में आने के बाद क्वारंटीन में हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी क्वारंटीन में हैं, क्योंकि उनका एक परिजन और स्टाफ का सदस्य संक्रमित पाए गए हैं। मध्यप्रदेश में एक ही दिन में 221 नए संक्रमित मामले दर्ज किए गए हैं। उनमें से आधे मरीज तो अकेले इंदौर में ही हैं। आईआईटी, खडग़पुर में कोरोना विस्फोट ने 31 छात्रों को बीमार कर दिया है। कुछ और स्कूलों और शैक्षिक संस्थानों में सैंकड़ों छात्र संक्रमित हुए हैं। फिल्मी दुनिया में बुजुर्ग अभिनेता प्रेम चोपड़ा और उनकी पत्नी, निर्माता एकता कपूर, अभिनेता जॉन अब्राहम और उनकी पत्नी प्रिया संक्रमित होकर उपचाराधीन हैं। ये कुछ मामलेे कोरोना संक्रमण के विस्तार के सारांश भर हैं। करीब 139 करोड़ के विशालकाय देश में न जाने ऐसे कितने मामले होंगे, जो दर्ज नहीं हुए होंगे अथवा मीडिया की सुर्खियां नहीं बन पाए होंगे! संक्रमण बीते एक सप्ताह के दौरान करीब 200 फीसदी बढ़ा है। देश में सोमवार देर रात्रि तक 36,500 संक्रमित केस सामने आए हैं।
रोज़ाना ऐसे मरीजों की संख्या 6 दिन में 6 गुना से ज्यादा बढ़ी है। यह गति दुनिया के देशों में दर्ज किए जा रहे मामलों में सर्वाधिक है। औसतन राष्ट्रीय संक्रमण दर 5 फीसदी के करीब पहुंच चुकी है। इसे पार करते ही महामारी को ‘अनियंत्रित’ माना जाएगा। विशेषज्ञ चिकित्सक इसे ही ‘सामुदायिक संक्रमण’ की स्थिति मान रहे हैं। उन्होंने इसे ही ‘तीसरी लहर’ की शुरुआत आंका है। विशेषज्ञों के जीनोम सीक्वेंसिंग के विश्लेषणों के बाद आकलन हैं कि संक्रमण के मौजूदा चरण में करीब 86 फीसदी मामले ओमिक्रॉन स्वरूप के हैं। डॉक्टर हल्के लक्षण, अस्पताल में भर्ती होने की दर, ऑक्सीजन, आईसीयू और वेंटिलेटर तक की नौबत, फेफड़ों में संक्रमण नहीं और कम मृत्यु-दर की स्थितियों को ‘अद्र्धसत्य’ करार दे रहे हैं। उन्होंने आगाह किया है कि 31 जनवरी, 2022 तक का इंतज़ार कर लें। हकीकत देश के सामने होगी। ओमिक्रॉन के अलग से आंकड़े देखें, तो उसके मरीज भी 2000 की संख्या छू रहे हैं। दुनिया भर में कोरोना वायरस के कुल संक्रमित मामले 8.30 लाख को पार कर चुके हैं। अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस सरीखे विकसित देशों में कोरोना की ‘उफनती लहर’ के हालात हैं, जबकि उन देशों में टीकाकरण के बाद ‘बूस्टर डोज़’ भी दी जा रही है।
ऐसे हालात में उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ओमिक्रॉन को ‘वायरल फीवर’ करार दें और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ‘छोटे-मोटे बुखार के लक्षण’ मानें, तो उनके बयान हास्यास्पद लगते हैं। राजधानी दिल्ली में संक्रमण दर 7 फीसदी तक पहुंचने को है। हालात ‘संपूर्ण कफ्र्यू’ के बन चुके हैं। पाबंदियां पहले से ही थोपी जा चुकी हैं। अब ‘आंशिक लॉकडाउन’ की प्रतीक्षा है। ऐसा नहीं है कि हल्के लक्षण होने के कारण ओमिक्रॉन के केस अस्पताल तक कम जाएंगे। डॉक्टरों का आकलन है कि यदि जनवरी-फरवरी में संक्रमित मामलों की संख्या 4-5 लाख रोज़ाना तक पहुंच गई, तो अस्पतालों में हररोज़ 25-50,000 बिस्तरों की आवश्यकता पड़ेगी। अनुपात में दबाव आईसीयू और वेंटिलेटर पर भी पड़ेगा। वह स्थिति सामान्य नहीं होगी। भारत बीती मई, 2021 में 4.41 लाख से ज्यादा केस रोज़ाना देख चुका है। हालांकि टीकाकरण और व्यापक स्तर पर संक्रमण झेलने के बाद भारतीयों में ‘हाईब्रिड इम्युनिटी’ मौजूद है। टीके कोरोना वायरस से लडऩे में सहायक साबित हुए हैं। प्रभाव का औसत अलग-अलग हो सकता है, लेकिन हमारे टीके वाकई ‘संजीवनी’ सिद्ध हुए हैं, लिहाजा अभी तक अस्पतालों में ज्यादातर बिस्तर खाली हैं और मौतें भी अभी तक कुल 118 ही हुई हैं। हम एक दिन में 4000 से ज्यादा मौतों के मंजर देख-झेल चुके हैं। लिहाजा डॉक्टरों की अपील मानिए और कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कीजिए। यह दौर भी समाप्त होता लगेगा। यह भी खबर है कि 15 जनवरी आते-आते अकेले दिल्ली में ही रोज 20 हजार से 25 हजार केस आने की संभावना है। अगर यह अनुमान सही रहा, तो निश्चित ही स्थिति काफी जटिल हो जाएगी। इसलिए सतर्क होना पड़ेगा।
3.त्वरित कदम उठाएं
देश की राजधानी दिल्ली में ‘सप्ताहांत कफ्र्यू’ समेत अनेक पाबंदियों के एलान से यह साफ हो जाना चाहिए कि कोविड-19 संक्रमण की तीसरी लहर तेजी से गंभीर रूप लेती जा रही है। दिल्ली में इसकी पॉजिटिविटी दर 8.37 फीसदी पर पहुंच गई है, तो वहीं गोवा में यह 26.43 प्रतिशत के आंकडे़ को छू चुकी है। ऐसे में, बगैर आतंकित हुए पर्याप्त एहतियात बरतने की जरूरत है। ओमीक्रोन वेरिएंट की संक्रमण क्षमता को देखते हुए न तो यह दर अप्रत्याशित है और न ही हमारा तंत्र इस बार गाफिल है। फिर ज्यादातर स्वास्थ्य विशेषज्ञ ओमीक्रोन वेरिएंट के लक्षणों को देखते हुए इसे कम जोखिम वाला बता रहे हैं। अलबत्ता, तमाम राज्य सरकारों को भरपूर सतर्कता बरतनी होगी। कई राज्य रात्रिकालीन कफ्र्यू लगा चुके हैं, तो कई जगहों पर टीकाकरण अभियान को तेज करने के साथ दूसरे कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन एक कमी तमाम राज्यों में समान रूप से देखी जा सकती है, वह है लोगों के स्तर पर लापरवाही। सार्वजनिक स्थलों पर अनिवार्यत: मास्क पहनने और भीड़भाड़ से बचने की हर हिदायत जैसे हरेक जगह दम तोड़ रही है।
कोविड की इस नई लहर को हल्के में लेने की कोई भी हिमाकत फिर से गंभीर मुसीबत खड़ी कर सकती है। उदाहरण हमारे सामने है। अमेरिका में पर्याप्त टीकों व तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद करोड़ों लोगों ने अपने नागरिक अधिकारों का हवाला देते हुए वैक्सीन लगवाने से परहेज बरता। आज आलम यह है कि नए संक्रमण के मामलों की संख्या एक दिन में 10 लाख के आंकड़े को पार कर गई है। जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी का ताजा अध्ययन बताता है कि अमेरिका में संक्रमण-दर उस सर्वोच्च शिखर को छूने लगी है, जो अप्रैल 2020 में थी। तीसरी लहर ने दुनिया भर में अस्पतालों पर दबाव बढ़ा दिया है और कई मुल्कों में तो सख्त लॉकडाउन की वापसी हो गई है। इसलिए भारत सरकार को अपनी तरफ से वे तमाम जरूरी कदम उठाने चाहिए, ताकि वह नौबत ही न आने पाए, जो कई यूरोपीय मुल्क अभी भुगत रहे हैं।
महामारी के शुरुआती दिनों से डब्ल्यूएचओ लगातार आगाह करता आ रहा है कि जब तक दुनिया के हरेक मुल्क की बहुसंख्य आबादी का टीकाकरण नहीं होगा, इस वायरस के नए-नए वेरिएंट मानवता को घाव देते रहेंगे। ओमीक्रोन की संक्रामकता से दुनिया अभी जूझ ही रही है कि अब फ्रांस से एक और नए शक्तिशाली वेरिएंट के पैदा होने की खबरें आ रही हैं। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि केंद्र सरकार खास तौर से अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर जांच की अचूक व्यवस्था सुनिश्चित करे। भारत में करोड़ों लोग अभी टीकाकरण के सुरक्षा दायरे के बाहर हैं। ऐसे में, उनके लिए तीसरी लहर में कहीं अधिक जोखिम है। सुखद बात यह है कि अब न तो टीकों की कमी है और न ही जांच की। इसलिए स्थानीय प्रशासन की सक्रिय भागीदारी से विशेषकर उन राज्यों में टीकाकरण को गति देने की जरूरत है, जो इसमें पिछड़े हुए हैं। जिस तरह से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनावी रैलियों में हुजूम उमड़ रहा है, वह बेहद जोखिम भरा साबित हो सकता है। चुनाव आयोग को इसका फौरन संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि देश न तो अब दूसरी लहर की तरह गंगा में लाशों को तैरते देखना चाहेगा और न ही अपनी अर्थव्यवस्था को ऐतिहासिक गर्त में लोटते हुए।
4.घातक मनोवृत्ति
महिला विरोधी साइबर अपराधी बख्शे न जाएं
साइबर दुनिया जहां तरक्की की राह दिखाती है, वहीं अपराधियों के घातक मंसूबों को अंजाम देने का साधन भी बन गई है। दरअसल, साइबर अपराधियों के खिलाफ समय रहते सख्त कार्रवाई न होने से ऐसे तत्वों के हौसले बुलंद हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि वर्ग विशेष की मौन सहमति उन्हें प्राप्त है। ऐसे हमले समुदाय या लिंग विशेष पर न होकर पूरी सामाजिकता के ताने-बाने को क्षतिग्रस्त करते हैं। हाल ही में सामने आया ‘बुल्ली बाई’ एप का मामला इसी कड़ी का विस्तार है, जिसमें सोशल मीडिया पर सक्रिय संप्रदाय विशेष की महिलाओं की प्रतिष्ठा व गरिमा को ठेस पहुंचाने की कुत्सित कोशिश की गई। हालांकि, इस मामले में तल्ख प्रतिक्रिया के बाद सरकार ने इस विवादित एप पर रोक लगाई और विद्वेष फैलाने वाले समूह की मास्टर माइंड महिला व एक इंजीनियरिंग के छात्र को गिरफ्तार करके ऐसे तत्वों को सख्त संदेश भी दिया है। लेकिन इससे समाज में जो कटुता व विद्वेष फैला है, उसकी क्षतिपूर्ति इतनी आसान भी नहीं होगी। इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी शीघ्र कार्रवाई के लिये पुलिस को कहा था। दरअसल, इस विवादित एप पर संप्रदाय विशेष की महिलाओं के चित्र अपलोड करके उनके बारे में अनुचित व अश्लील बातें लिखी गई थीं। इससे पहले गत वर्ष जुलाई में ऐसे ही विवादित एप का मामला संप्रदाय विशेष की महिलाओं को निशाने पर लेने के आरोपों के बीच सामने आया था। लेकिन दिल्ली व यूपी में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई न होने से उससे मिलते-जुलते नये एप का मामला प्रकाश में आ गया। जाहिर बात है कि समय रहते कार्रवाई न होने से साइबर अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं। इसके बावजूद भले ही पुलिस ने मुख्य अपराधियों को पकड़ लिया है, लेकिन सामाजिक समरसता को इससे जो क्षति होती है, उसकी भरपाई संभव नहीं है। ऐसे में साइबर अपराधों से निपटने के लिये सख्त तंत्र विकसित करने की जरूरत है, अन्यथा ऐसी कुत्सित कोशिशों का समाज को बड़ा खमियाजा भुगतना पड़ेगा जो कालांतर कानून व्यवस्था के लिये चुनौती पैदा कर सकता है।
निस्संदेह, वक्त आ गया है कि समाज में नफरत फैलाने वाले साइबर अपराधियों पर मजबूती से शिकंजा कसा जाये। अपराधों की पुनरावृत्ति रोकने के लिये यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ऐसे अपराधियों पर समय रहते निर्णायक कार्रवाई की जाये, जिसके लिये तंत्र की प्रतिबद्धता जरूरी है। दरअसल, दुनिया भर में साइबर स्पेस तेजी से यौन विकृतियों, आर्थिक अपराधियों तथा महिलाओं को निशाने पर लेने वाले ट्रोलर्स का अड्डा बनता जा रहा है। भारत भी उसका अपवाद नहीं है। वर्ष 2020 में देश में महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध के लगभग 2300 मामले प्रकाश में आये। इसके अलावा बड़ी संख्या में ऐसे पीड़ित होते हैं जो कई कारणों से शिकायत दर्ज कराने आगे नहीं आते। वर्ष 2019 में भी 1600 से अधिक ऐसे ही मामले दर्ज हुए। इनमें अधिकतर अपराध यौन सामग्री के प्रकाशन व प्रसारण से जुड़े थे। भयदोहन, मानहानि, फर्जी प्रोफाइल बनाने जैसे हथकंडों से महिलाओं को परेशान व अपमानित करने का कुत्सित खेल खेला जाता है। ऐसे में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के साथ ही कानूनी प्रावधानों को सख्त बनाने की जरूरत है ताकि कानून प्रभावी निवारक के रूप में कार्य कर सके। दरअसल, सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम 2008 साइबर अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की राह प्रशस्त नहीं करता, बल्कि सजा को कई मायनों में लचीला भी बनाता है। समाज में मोबाइल फोन के बढ़ते उपयोग व इंटरनेट के दायरे में विस्तार ने महिलाओं को यौन उत्पीड़न की दृष्टि से संवेदनशील बना दिया है। ऐसे में केंद्र व राज्य सरकारों को महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संकल्पबद्ध होने की जरूरत है ताकि महिलाएं चाहे किसी भी समुदाय से संबंध रखती हों, ऐसे हमलों का शिकार न बनें। सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों को कुत्सित सोच का अड्डा न बनने दिया जाये। सजा इतनी सख्त और तत्काल हो कि फिर असामाजिक तत्व महिलाओं को प्रताड़ित करने की सोच भी न सकें। ऐसा डिजिटल दुनिया को भयमुक्त करने के लिये अपरिहार्य भी है।