इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.मौत बेचती शराब
मंडी के सलापड़ में सात लोगों की मौत का प्याला जिस जहर से भरा था, उसके लिए कोई एक पक्ष नहीं, बल्कि व्यवस्था के कान-नाक और आंखें भी दोषी हैं। नकली शराब का धंधा हमारी रगों में बहते-बहते जहर कैसे बना, यह एक बड़े तंत्र की ओर इशारा कर रहा है। मरने वाले ऐसे तपके के लोग हैं, जो मेहनत से सराबोर माहौल को शराब की लत में भिगोते हुए अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेते हैं। आश्चर्य यह कि सस्ती ब्रांड का सेवन घातक अंजाम तक कैसे पहुंचा और यह नागफनी आबकारी विभाग के प्रांगण में कैसे पैदा हुई। बेशक अब विभाग चैतन्य अवस्था में इस पूरे प्रकरण की तह में घुस रहा है, लेकिन मरघट पर लेटी व्यवस्था के लिए यह नासूर इतनी आसानी से भरेगा नहीं। बेशक शराब पीने की आदत को न सामाजिक और न ही नैतिक समर्थन मिलता है, लेकिन इसका आर्थिक व वैयक्तिक पहलू हमारे बीच मौजूद है। सरकार शराब न बेचे तो सार्वजनिक खजाने की इज्जत चौराहे पर आ जाएगी और अगर आबकारी नीति न हो तो कौन शराब पीने की जुर्रत करेगा।
विडंबना यह भी है कि हिमाचल में कई महिला आंदोलन शराब की असली दुकानों का विरोध करते रहते हैं, लेकिन ‘शराबबंदी’ पर सोचने के बजाय हमारी नीति इस फिराक में रहती है कि किस तरह इसकी बिक्री बढ़ाकर अधिकतम शुल्क वसूली की जाए। इस तरह हमारी आबकारी नीति शराब की बिक्री को इतनी महंगी दरों पर पहुंचा चुकी है, जहां चोरी-छिपे तस्करी या नकली शराब के धंधों की आहट बढ़ रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में सलापड़ में बिकती रही शराब का अर्थ गणित भी रहा होगा, जहां विभागीय चादर के नीचे इस तरह धंधा पनपता रहा है। अवैध शराब के महाकुंभ में माफिया किस प्रकार धनवर्षा से नहा रहा है, यह न तो आबकारी और न ही पुलिस व्यवस्था से छिपा होना चाहिए, लेकिन अब सात लोगों के मातम में यह अपराध चीख-चीख कर यह बता रहा है कि कब्र में कितने सांप लेटे हैं। अब अगर सतर्क निगाहें सलापड़ में बिक रही शराब को जांच की चारदिवारी में बंद भी कर दंे, मसला दफन नहीं होगा क्योंकि सस्ती और अवैध शराब के चक्कर में हिमाचल के पियक्कड़ हालात सभी जगह मौजूद हैं। जाहिर है सात लोगों की लाशें कई प्रश्नों के कफन ओढ़े हमारे सामने हैं। ये प्रश्न आबकारी नीति, विभागीय कौशल, पुलिस इंतजाम व व्यवस्थागत प्रबंधन से सीधे पूछ रहे हैं कि क्यों शराबियों को अब माफिया अपना धंधा या लक्ष्य समझ रहा है।
क्या हम शराब के जरिए आमदनी बढ़ाते हुए कभी यह सोच पाते हैं कि अंततः यह प्रदेश शराब की लत में डूबे व्यक्ति को और अधिक पीने के लिए एक क्षमता की तरह मान रहा है या आंखें बंद करके हिमाचल ने कबूल कर लिया है कि इस धंधे को बढ़ाकर ही बेहतरी होगी। जो भी हो, शराब बिक्री का वर्तमान दौर यह सुनिश्चित नहीं कर रहा कि इन राहों पर कितने व किस तरह के खतरे हो सकते हैं। यह पूर्वानुमान लगाना कठिन नहीं कि महंगी शराब को सस्ता बेच रहे लोग आखिर कर क्या रहे हैं। शराब की गंदी बस्ती में कम से कम व्यवस्था हर खरे-बुरे की पहचान के लिए महिला मंडलों की राय जान सकती है। क्या आबकारी नीति के तहत महिलाओं की आपत्तियां खारिज करने के प्रति सरकारें कभी गंभीर होंगी। क्या शराब के प्रति आकर्षण को कम करने या इसके गुणात्मक वितरण को लेकर कड़ी प्रक्रिया शुरू की जाएगी। सलापड़ की घटना ने लोगों की जिंदगी से ऐसा सौदा किया है, जहां समाज, सरकार, नीति और व्यवस्था पूरी तरह घाटे में है। कुछ तो ऐसे प्रयास किए जाएं कि शराब न केवल एक जिंदगी, बल्कि कई घर-परिवार उजाड़ न सके।
2.तीन लाख के पार ‘चरम’
दो-तीन दिन कुछ राहत महसूस की थी। कोरोना के संक्रमित मामले लगातार घट रहे थे। संक्रमण की जांच कम क्यों की जा रही थी, हम आज तक इस सवाल का जवाब नहीं समझ पाए। हालांकि विशेषज्ञ लगातार आगाह कर रहे थे कि कम टेस्टिंग खतरनाक है, लेकिन बुधवार के जो आंकड़े सामने आए, उन्होंने चौंका दिया। कुछ चिंता भी हुई। पहली बार संक्रमण के आंकड़े 3,16,384 तक पहुंचे हैं और ये नतीजे 24-25 दिनों के ही हैं। कोरोना की पहली दो लहरों में भी संक्रमण 3 लाख के पार गया था। पहली लहर में कुल मरीज 1.22 करोड़ और दूसरी लहर में 2.34 करोड़ दर्ज किए गए। दूसरी लहर मध्य फरवरी, 2021 में शुरू हुई थी और 3 लाख तक पहुंचने में 60 दिन लगे थे। कई दिनों तक 3 लाख के इर्द-गिर्द मामले घूमते रहे। अंततः 15 मई को 3.11 लाख से कुछ अधिक संक्रमित केस दर्ज किए गए। उसके बाद आंकड़ों ने घटना शुरू किया। हालांकि दूसरी लहर के दौरान ‘चरम’ की स्थिति में मामले 4 लाख से भी ज्यादा दर्ज किए गए। करीब 8 महीने के बाद संक्रमण के मामले एक बार फिर 3 लाख को पार कर गए हैं, लेकिन मौतें 441 दर्ज की गई हैं। देश के 13 राज्य ऐसे हैं, जहां रोज़ाना मौतें दहाई में हो रही हैं। केरल में पिछली मौतों को भी जोड़ कर बताया जा रहा है। अलबत्ता वास्तविक मौतों की संख्या कम हो सकती है। दूसरी लहर के दौरान 3 लाख के आंकड़े पर हररोज़ 2000 से अधिक मौतें दर्ज की जा रही थीं। कोरोना की मौजूदा तीसरी लहर के दौरान अभी तक करीब 31 लाख संक्रमित मरीज दर्ज किए जा चुके हैं।
जो टेस्टिंग के दायरे में नहीं आए हैं या जिन्होंने घर पर ही कोरोना किट से जांच कर नतीजे सरकार को नहीं बताए हैं, उन आंकड़ों को किस श्रेणी में रखा जाएगा, यह भी एक गंभीर सवाल है। संक्रमण तो हुआ है और वायरस भी फैला है, लिहाजा विदेशी मीडिया में छप रहा है कि संक्रमित मामलों और मौतों की असल संख्या 10 गुना है। इस स्थिति का बिम्ब ही भयानक लगता है। भारत में विश्लेषण 31 लाख संक्रमित मामलों के मद्देनजर किए जा रहे हैं। चूंकि इस दौरान मौतें 6912 दर्ज की गई हैं, लिहाजा मृत्यु-दर 0.2 फीसदी मानी जा रही है। यह दुनिया में सबसे कम मृत्यु-दर है। अर्थात 1000 मरीजों पर मात्र 2 मौतें….! बेशक इस लहर के दौरान मौतें कम हुई हैं। सवाल यह है कि तीसरी लहर में क्या कोरोना संक्रमण अपने ‘चरम’ के करीब है अथवा ‘चरम’ पर पहुंच चुका है? आईसीएमआर के शीर्ष वैज्ञानिक डॉ. समीरन पांडा का आकलन है कि भारत में 11 मार्च, 2022 तक कोरोना एक ‘स्थानीय या क्षेत्र-विशेष की महामारी’ (एंडेमिक) की स्थिति तक पहुंच जाएगा। यदि कोरोना का कोई नया स्वरूप सामने नहीं आया, तो मार्च के अंत तक भारत में कोरोना के नए मरीज मिलने लगभग समाप्त हो जाएंगे। अमरीकी राष्ट्रपति के प्रमुख चिकित्सा सलाहकार डॉ. एंथनी फाउची ने ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ को संबोधित करते हुए दावा किया है कि ओमिक्रॉन ही एक वैश्विक महामारी को स्थानीय महामारी के चरण तक पहुंचाएगा। कोरोना वायरस को खत्म करने की स्थिति पैदा करेगा। ऐसा तभी होगा, जब पिछले स्वरूप की तरह मानवीय इम्यून सिस्टम को धोखा देने और प्रभावित करने वाला कोई नया स्वरूप नहीं आएगा। बहरहाल भारत में कोरोना के ‘चरम’ की स्थिति एक साथ नहीं आ सकती, क्योंकि संक्रमण का विस्तार भिन्न है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में औसतन 40,000 संक्रमित मामले रोज़ाना सामने आ रहे हैं। केरल में 30,000 केस दर्ज किए गए हैं। उसके बाद तमिलनाडु और गुजरात का स्थान है, जहां हररोज़ संक्रमित मामले 20,000 से ज्यादा हैं। उप्र, दिल्ली, राजस्थान, ओडिशा, बंगाल और आंध्रप्रदेश आदि राज्यों में संक्रमित मामले 10-20 हजार रोज़ाना के बीच हैं। सभी राज्यों में संक्रमण-दर तो बहुत है, लेकिन अस्पताल जाने की नौबत और मौत के आंकड़े बहुत कम हैं। यकीनन यह करिश्माई प्रभाव टीकाकरण का है या ओमिक्रॉन का संक्रमण ही ऐसा है। कमोबेश एक माह के आंकड़ों और रुझानों के मद्देनजर अब यह निष्कर्ष दिया जा सकता है कि कोरोना वायरस का जबरदस्त मुकाबला करना हम सीख गए हैं। इसके बावजूद सतर्कता बरतना जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी बार-बार सचेत कर रहा है कि कोरोना नए-नए रूप बदल रहा है, इसलिए लोगों का सचेत रहना जरूरी है। लोग आजकल मास्क लगाना भी भूल गए हैं। इस तरह वे लापरवाही बरत रहे हैं जो भावी संकट पैदा कर सकती है। अगर स्थितियां फिर लॉकडाउन की बनीं, तो फिर से अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी जिससे हर व्यक्ति को नुकसान होगा। अतः कोरोना प्रोटोकॉल का पालन जरूरी है।
3.सावधानी का समय
भारत में जैसे ही कोरोना जांच में वृद्धि हुई है, संक्रमण के मामले भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचे नजर आए हैं। पांच दिनों में संक्रमण के मामलों में कमी देखी जा रही थी, लेकिन अब संक्रमण तीन लाख के आंकड़े को पार कर गया है। आठ महीने बाद ऐसी स्थिति बनी है, ऐसे में भी महाराष्ट्र में सोमवार से स्कूल खोलने का फैसला निंदनीय है। जब वर्क फ्रॉम होम की पैरोकारी हो रही है, तब स्कूल खोलने का फैसला कितना सही है? पिछले दिनों शादी-विवाह के मौसम और बाजारों, धर्मस्थलों में बढ़ी आवाजाही का नतीजा हम भुगत रहे हैं। बड़े पैमाने पर कोरोना संक्रमण का विस्फोट हुआ है। मौतों की संख्या भी बढ़ी है, तब स्कूल खोलने का फैसला त्रासद है। क्या महाराष्ट्र में कोरोना मामले काबू में आ गए हैं? नहीं, सच्चाई यह है कि महाराष्ट्र कोरोना महामारी के मामले में नेतृत्व कर रहा है। भारत के चिकित्सा प्रभारियों को महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले पर आपत्ति करनी चाहिए। होता यह है कि एक सरकार जब कोई फैसला लेती है, तब दूसरी सरकारों पर ऐसे ही फैसले के लिए दबाव बढ़ता है। अत: यह जरूरी है कि हर सरकार समझदारी के साथ कदम बढ़ाए। ध्यान रहे कि यह लहर बच्चों को भी समान रूप से पीड़ित कर रही है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार को बताया कि दुनिया इस समय कोरोना की चौथी लहर से गुजर रही है। दुनिया में पिछले एक सप्ताह में प्रतिदिन 29 लाख मामले दर्ज किए जा रहे हैं। जब अफ्रीका और यूरोप में कोविड मामले घट रहे हैं, तब एशिया में बढ़त दिख रही है। भारत में अभी लगभग 19 लाख सक्रिय मामले दर्ज हैं। विशेषज्ञ जानते हैं कि पीड़ितों की वास्तविक संख्या इससे ज्यादा हो सकती है। संक्रमण के मामले अगर ऐसे ही बढ़ते रहे, तो जनजीवन स्वत: बाधित हो जाएगा। खैर, आधिकारिक रूप से सरकार ने मान लिया है कि देश में महामारी की तीसरी लहर चल रही है। ऐसे में, सरकार को अपनी बचाव संबंधी नीतियों को और चाक-चौबंद कर लेना चाहिए। पॉजिटिविटी दर 16 प्रतिशत के आसपास होना बहुत चिंताजनक है। स्कूल खोलने के लिए लालायित महाराष्ट्र की ही अगर बात करें, तो वहां साप्ताहिक पॉजिटिविटी रेट दो फीसदी से बढ़कर 22 प्रतिशत हो गई है। केरल में पॉजिटिविटी रेट 32 प्रतिशत व दिल्ली में 30 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में पॉजिटिविटी दर महज छह प्रतिशत दर्ज की जा रही है, लेकिन पूरी सावधानी बरतना समय की मांग है।
बेशक, हम अभी बेहतर स्थिति में हैं। दूसरी लहर के चरम दौर में केवल दो प्रतिशत आबादी का टीकाकरण हुआ था, जबकि अब लगभग 72 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण हो चुका है। शायद यही कारण है कि इस बार मौतें कम हो रही हैं। दूसरी लहर 30 अप्रैल 2021 को चरम पर थी, उस दिन 3,86,452 नए मामले आए थे, 3,059 लोगों की जान गई थी और कुल सक्रिय मामले 31,70,228 थे। वहीं 20 जनवरी 2022 को 3,17,532 नए मामले, 380 मौतें और 19,24,051 सक्रिय मामले हैं। मामले यहां से और ऊपर न जाएं, इसके लिए हमें मिलकर बचाव, जांच, इलाज के पूरे इंतजाम से रहना होगा। देश जान-माल का और नुकसान झेलने की स्थिति में नहीं है। ध्यान रहे, गुरुवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि आने वाले 25 साल कड़ी मेहनत, त्याग व तपस्या की पराकाष्ठा होंगे। देशवासियों को यह साबित करने में मनोयोग से जुट जाना चाहिए।
4.सुरक्षा कवच का साल
जान के साथ जहान बचाने की चले मुहिम
एक वैश्विक महामारी के खिलाफ स्वदेशी व देश में निर्मित टीकों की मदद से टीकाकरण का कामयाब साल पूरा करना हमारी उपलब्धि है। इतने कम समय में वैज्ञानिकों ने टीका हासिल किया, राजसत्ता ने इच्छाशक्ति दिखायी और चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों तथा फ्रंट लाइन वर्करों ने उसे अंजाम तक पहुंचाया। सब कुछ जीरो से शुरू करने जैसा था, फिर भी देश ने न केवल सवा अरब से ज्यादा आबादी का ख्याल रखा बल्कि दूसरे देशों की भी मदद की। हम याद रखें कि देश की आर्थिक स्थिति कैसी है, हमारा चिकित्सा तंत्र किस हाल में था और संसाधनों की क्या स्थिति है। दूसरी लहर के दौरान कई बड़े देशों ने वैक्सीन की कच्ची सामग्री देने में आनाकानी की और चीन ने कई तरह के व्यवधान पैदा किये। इतने बड़े व भौगोलिक जटिलताओं के देश के गांव-देहात में जाकर टीके लगाना निस्संदेह कठिन था। टीकों का उत्पादन और फिर सुरक्षित तापमान में लक्षित आबादी तक पहुंचाना आसान नहीं था। जब राज्यों को टीकाकरण का दायित्व दिया गया तो उस दौरान जो राजनीतिक कोलाहल हुआ, उसे देश ने देखा। सुप्रीम कोर्ट की तल्खी भी देखी। सुखद है कि देश की सत्तर फीसदी वयस्क आबादी को दोनों टीके लगे हैं। करीब 157 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं। वह भी तब जब खुद स्वास्थ्यकर्मियों की जान को भी खतरा था। इनकी प्रतिबद्धता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए राष्ट्र ने डाक टिकट जारी किया। लेकिन ऐसे वक्त में जब रोज नये संक्रमण के मामले दो लाख से अधिक आ रहे हैं और सक्रिय मामलों का आंकड़ा दस लाख पार कर गया है, तो सतर्क रहने की जरूरत है। नये वेरिएंट का खतरा टला नहीं है और वायरस के रूप बदलने की आशंका बनी हुई है। कहा जा रहा है कि ओमीक्रोन के कम घातक होने के कारण केवल अस्पताल में भर्ती होने वाले तथा मरने वालों का ही आंकड़ा जारी किया जाये। साथ ही अनावश्यक प्रतिबंधों में तार्किक ढंग से ढील दी जाये ताकि समाज के अंतिम व्यक्ति के लिये रोजी-रोटी का संकट पैदा न हो। सख्ती एक नई मानवीय त्रासदी को जन्म दे सकती है।
वहीं, यह अच्छी बात है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय मार्च से बारह से पंद्रह साल के बच्चों के टीकाकरण की दिशा में बढ़ रहा है। निस्संदेह, इससे जहां अभिभावकों की चिंता दूर होगी, वहीं स्कूलों को सामान्य ढंग से खोलने में मदद मिलेगी। विकसित देश पहले ही इस दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। बल्कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके बारह साल से छोटे बच्चों के टीकाकरण के लिये सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है। वहीं दिव्यांगों के टीकाकरण के बाबत दायर याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार ने हलफनामा दायर किया है कि किसी को जबरन टीका लगाने को बाध्य नहीं किया जाएगा। साथ ही दिव्यांगों को टीकाकरण का प्रमाणपत्र दिखाने की बाबत कहा कि किसी मानक प्रक्रिया के तहत यह अनिवार्य नहीं है। बहरहाल, इतना जरूर है कि दिव्यांगों की दिक्कतों के चलते उनके घर-घर जाकर टीका लगाने की जरूरत है। लेकिन जब भारत में कोरोना संक्रमण के मामले अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर हैं तो नागरिकों से सजग-सतर्क व्यवहार की उम्मीद है। हम न भूलें कि इतने बड़े अभियान के बाद करोड़ों लोग ऐसे भी हैं जो आज भी टीका लगाने से बच रहे हैं। तीसरी लहर के आंकड़े बता रहे हैं कि अस्पताल में भर्ती होने वालों व मरने वालों में वे ही लोग ज्यादा हैं, जिन्होंने टीका नहीं लगवाया। निस्संदेह, दोनों टीके लगाने के बाद भी कुछ लोगों को संक्रमण हुआ है, लेकिन यह कम घातक रहा और अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आयी। बहरहाल, एक अनजानी महामारी से फौरी तौर पर लोगों को सुरक्षा कवच तो मिला ही है। जिन लोगों के लिये पहली-दूसरी लहर में संक्रमण घातक हुआ उनमें से अधिकांश लोग पहले से ही गंभीर रोगों से ग्रस्त थे। बहरहाल, जो टीकाकरण से रह गये हैं उन्हें जल्दी से जल्दी टीका लगवाना चाहिए। तभी महामारी का खात्मा संभव है।