इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.कातिल नशे का आखेट
मसला शराब का जहर बनने तक सीमित होता, तो उसके अंजाम में एक घटनाक्रम का अफसोस, आक्रोश और आक्रंदन होता, लेकिन यहां तो पूरी फितरत ही तबाही के आगोश में रची बसी है। यह मसला जहरीली शराब के सरगना, सप्लायर या उपभोक्ता के बीच का तंत्र नहीं, बल्कि अमानवीय कृत्यों की पनाह का बन चुका है। हम चाहें तो पुलिस व्यवस्था की 72 घंटे की कार्रवाई में घटना को सुलझा लें और चाहें तो राजनीति में उलझा लें, लेकिन सत्य यही है कि माफिया अब हमारे जीवन से खिलवाड़ करने में माहिर है। उसेे राजनीतिक शरण, व्यवस्था का अपहरण और पैसों का आवरण हासिल करने के लिए हिमाचल की तमाम पद्धतियां और कायदे-कानून रास आ रहे हैं, वरना हमीरपुर में प्रशासनिक व्यवस्था के बीच बोटलिंग प्लांट किस तरह काम कर पाता। अब हम रिकार्ड के लिए जांच कर सकते हैं, लेकिन इस तरह के संगठित अपराध के लिए खुद को माफ नहीं कर सकते। यानी संुदरनगर में जहरीली शराब से सात लोग न मरते या नकली शराब के फार्मूले में जहर न भरता, तो प्रदेश अमन चैन से शराब गटकता रहता। नशा सिर्फ शराब के नकली होने से पकड़ में आए, तो एक कानूनी मजबूरी की तरह से दिखाई देता है, लेकिन सत्य यह है कि हिमाचल की नसों में जहर भर कर कमाने वालों का एक बड़ा तंत्र सक्रिय है। पड़ोसी राज्यों के साथ और व्यवस्था की शिथिलता के बीच, कातिल नशे के आखेट में कई लोग लगे हैं। भले ही हमीरपुर कांग्रेस ने जिला महासचिव नीरज ठाकुर को पद से हटा दिया, लेकिन इससे राजनीतिक आचरण की गिरावट का अंदेशा कम नहीं होता। माफिया की शक्ति और सामर्थ्य के पीछे राजनीति की चमक रू-ब-रू होती है। उसकी राजनीतिक लंबाई का हिसाब उन पैसों से सुनिश्चित होता है जो आज समाज को भी इसी के पलड़े में तौलता है। हिमाचल में बढ़ती संपत्तियों का ब्यौरा कहीं न कहीं धन की माफियागिरी भी तो है। जहां हर काम राजनीतिक आंख के इशारे से होने लगें, वहां नीरज ठाकुर सरीखा पात्र आगे बढ़ता है और कानून व्यवस्था ऐसे लोगों के पीछे छुप जाती है।
हमीरपुर में नकली शराब बनाने का ढर्रा बता रहा है कि किस तरह अंतरराज्यीय गिरोह कानून की मांद में जहर भरने के लिए स्वतंत्र रहा। यह एक दिन का खेल नहीं और मौजूदा सरकार इस पाप से किनारे नहीं हो सकती। हम पहले भी कह चुके हैं कि हमारी आबकारी नीति, पुलिस इंतजाम तथा कानूनी सतर्कता इस मामले में कहीं दोषी है या आज भी माफिया के साथ गलबहियां डाले हमारे कानूनी हथियार जंग खा चुके हैं। आश्चर्य तब होता है जब पुलिस की नेक नीयत पर शक करते हुए राजनीतिक दबाव, कर्मठ अधिकारियों को ‘एक्शन मोड’ से हटा कर खुड्डे लाइन लगा देता है। जरा खंगाल कर देखें कि ड्रग माफिया से लड़ते कुछ पुलिस अधिकारी आज कहां हैं। कांगड़ा, ऊना और बिलासपुर में ऐसे पुलिस अधिकारी चर्चाओं में आए जो सर्वप्रथम अपने ही दल को चौकस करते दिखे और साथ ही नशे के सौदागरों की शामत के लिए दिन रात एक करते रहे। जब से सुंदरनगर शराब कांड हुआ है, हिमाचल ने अपने दामन में लगे इसके दाग धोने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। धरपकड़ में कई खुलासे हो रहे हैं, अवैध शराब की बोतलें पकड़ी जा रही हैं और दो अवैध फैक्ट्रियां भी सामने आ गई हैं, लेकिन इससे पहले ये शाबाशियां क्यों मौत का खंजर हाथ में लिए पर्दे में थीं। नशा केवल शराब या नकली शराब नहीं, बल्कि उस सारे सामान का जिक्र है जो हमारी बस्तियों में किसी न किसी रूप में आजमाइश कर रहा है। नशे के खिलाफ हल्ला बोलने के लिए सामाजिक, राजनीतिक व सरकार का पक्ष जब तक एक साथ खड़ा नहीं होगा, इक्का-दुक्का उदाहरणों से आगे कुछ नहीं होगा। इससे भी बड़ा प्रश्न माफिया को दंडित करने का है, जिसके लिए राज्य की इच्छा शक्ति सर्वोपरि है, वरना सरकारी पहुंच और राजनीतिक प्रश्रय से पैदा हो रहे ‘नीरज’ की पहचान करना मुश्किल होगा।
2.जरा याद करो कुर्बानी
‘यह दुर्भाग्य रहा कि आज़ादी के बाद देश की संस्कृति और संस्कारों के साथ ही अनेक महान व्यक्तियों के योगदान को मिटाने का काम किया गया। स्वाधीनता संग्राम में लाखों लाख देशवासियों की तपस्या शामिल थी, लेकिन उनके इतिहास को भी सीमित करने की कोशिशें की गईं। आज आज़ादी के दशकों बाद देश उन गलतियों को डंके की चोट पर सुधार रहा है।’ प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ही संदर्भ में नहीं, बल्कि असंख्य गुमनाम क्रांतिकारियों के लिए भी बेहद सटीक और आत्म-स्वीकृति वाला है। स्वतंत्रता के रणबांकुरों को देश के आम आदमी ने नहीं, सरकारों और सियासत की वंशावलियों ने भुलाया है। उन्हीं की सोच और प्राथमिकताओं में सुधार करने की जरूरत है। मौका ‘नेताजी’ की 125वीं जयंती, प्रतीकात्मक प्रतिमा, गणतंत्र दिवस के कालखंड और आज़ादी के ‘अमृत महोत्सव’ का था, लिहाजा आज़ादी के लड़ाकों को याद किया गया।
सुखद और सकारात्मक लगा कि दिल्ली में ‘इंडिया गेट’ पर ‘अमर जवान ज्योति’ के स्थान पर प्रधानमंत्री ने ‘नेताजी’ की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया और देश के अपने-अपने क्षेत्रों में ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, स्टालिन, बसवराज बोम्मई और योगी आदित्यनाथ सरीखे मुख्यमंत्रियों ने भी ‘नेताजी’ को भावुक श्रद्धांजलि दी। हमारा मानना है कि ‘नेताजी’ देश के सर्वोच्च योद्धाओं में एक थे और उनकी प्रतिमा सही स्थान पर स्थापित की जा रही है। ‘नेताजी’ ने गुलाम भारत में ही ‘आज़ाद हिंद फौज’ का गठन किया था और विदेशी ज़मीन पर प्रथम भारत सरकार के तौर पर शपथ ली थी। भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में सुभाष चंद्र बोस, सावरकर समेत असंख्य क्रांतिवीर ऐसे होंगे, जिन्हें उचित स्थान नहीं दिया गया, उचित पहचान और सम्मान नहीं दिए गए। ‘नेताजी’ का आह्वान-‘तुम मुझेे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’-आज भी भारतवासियों का खून खौला देता है। ‘नेताजी’ कहा करते थे-‘मैं आज़ादी भीख में नहीं लूंगा, बल्कि आज़ादी हासिल करूंगा।’ ऐसे देशभक्त योद्धा को आज़ादी के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने सिर्फ जापान और जर्मनी के साथ जोड़ कर देखा। उनकी असल पहचान और आज़ादी के लिए प्रयासों की अनदेखी की गई। उसके संकेत तभी मिलने लगे थे, जब सुभाष चंद्र बोस अपने दम पर कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे, लेकिन महात्मा गांधी ने उन्हें इस्तीफा देने को बाध्य किया था, क्योंकि वह जवाहर लाल नेहरू के लिए चुनौती बन सकते थे। ऐसी ही चुनौती सरदार पटेल समझे गए थे। बहरहाल नेहरू के सत्ता-काल, 1947-64, के दौरान ‘नेताजी’ की बहुत उपेक्षा की गई।
यदि उनकी विमान दुर्घटना की अंतरराष्ट्रीय जांच शिद्दत से कराई जाती, तो यथार्थ सामने आ सकता था। खैर….जैसा नियति ने तय किया था, लेकिन हम अपने राष्ट्रनायकों को हमेशा याद तो रख सकते हैं। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी ने ‘नेताजी’ की देशव्यापी पहचान और नायकत्व को स्थापित करने के लिए कई कोशिशें की हैं। उनके जन्मदिन, 23 जनवरी, को ‘पराक्रम दिवस’ घोषित किया गया है। उससे ‘आपदा प्रबंधन पुरस्कार’ को जोड़ा गया है। बल्कि 2019-21 के दौरान के विजेताओं को ‘इंडिया गेट’ पर ही सम्मानित किया गया है। वहीं ‘नेताजी’ की ग्रेनाइट प्रतिमा स्थापित की जाएगी, तो उनके सम्मान में राष्ट्रीय समारोह भी मनाए जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘नेताजी’ से जुड़ी फाइलों, चिट्ठियों, ऐतिहासिक दस्तावेजों और चित्रों आदि को सार्वजनिक कराया है। उनका डिजिटलीकरण भी किया जा रहा है। यदि उनकी ग्रंथावली भी प्रकाशित कर दी जाए, तो इतिहास जीवंत हो उठेगा और वह साक्ष्य के तौर पर भी मौजूद रहेगा। एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य शेष है-‘नेताजी’ को ‘भारत-रत्न’ से विभूषित करना। हालांकि 1992 में तत्कालीन भारत सरकार ने ‘नेताजी’ को यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान देना तय किया था, लेकिन विमान-दुर्घटना और उनकी मौत को ऐसा विवादास्पद रूप दिया गया कि सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। ‘भारत-रत्न’ के संदर्भ में यह अकेला ऐसा केस है। अब की भारत सरकार उसे सुधार सकती है। बल्कि ‘नेताजी’ के साथ सावरकर को भी यह सर्वोच्च सम्मान दिया जाना चाहिए। यह देश की आज़ादी के 75 साल पूरे होने का कालखंड है, लिहाजा एक-एक क्रांतिवीर की कुर्बानी को याद करना चाहिए।
3.शेयरों में गिरावट
कोरोना महामारी के समय भी जिस भारतीय शेयर बाजार को हम चढ़ते हुए देख रहे थे, क्या वह अब बुरे दौर से गुजरने लगा है? सोमवार को सप्ताह के पहले ही दिन शेयर बाजार में भारी गिरावट ने तमाम संभावनाओं और आशंकाओं पर सोचने को मजबूर कर दिया है। सोमवार को सेंसेक्स और निफ्टी, दोनों में ढाई फीसदी से अधिक की गिरावट देखी गई है। सेंसेक्स 1545.67 अंकों का गोता लगाकर 57,491.51 के स्तर पर बंद हुआ है, जबकि निफ्टी 468.05 अंक गिरकर 17,149.10 पर पहुंच गया है। कुछ अचरज भी होता है कि देश का आम बजट आने वाला है और शेयर बाजार में लगातार पांचवें दिन गिरावट दर्ज हुई है। सोमवार को शेयर बाजार को करीब 10 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हुआ है। पिछले पांच दिन में सेंसेक्स करीब 3,900 अंक टूट चुका है। पांच दिन में निवेशकों को 17 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। सिरमौर समझी जाने वाली चंद कंपनियों ने भी निराश किया है। गौर करने वाली बात है कि सोमवार को अर्थव्यवस्था के लगभग सभी सेक्टर्स में कमजोरी देखी जा सकती है, रियल एस्टेट, मेटल, मीडिया, आईटी और ऑटो में सबसे ज्यादा कमजोरी देखने को मिली है।
बैंकों के शेयर भी दबाव में हैं और कुल मिलाकर आश्वस्त भाव से यह नहीं कहा जा सकता कि फलां कारोबारी सेक्टर अभी सही है। हालांकि, इस गिरावट के बावजूद कुछ कंपनियां ऐसी भी हैं, जो अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। सब कुछ निराशाजनक नहीं है, लेकिन यह सोचने वाली बात है कि ऐन बजट से पहले शेयर बाजार को क्या होने लगा है? सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों, टीसीएस और इन्फोसिस को 1,09,498.10 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। बजट सत्र से पहले ऐसे तनाव या गिरावट को व्यावसायिक रूप से बहुत अस्वाभाविक नहीं मानना चाहिए, लेकिन इस गिरावट की नैतिकता या वजह पर बहस जरूर हो सकती है।
देश के आम बजट में लगभग सप्ताह भर का समय बचा है। ऐसे में, दो-तीन संभावनाओं पर हमें गौर करना चाहिए। जो बाजार कोरोना महामारी के समय भी तेजी से बढ़ रहा था, वह बिना किसी ठोस कारण के लुढ़क रहा है, तो क्या इसके पीछे बड़े निवेशकों की कोई रणनीति है? क्या बजट से ठीक पहले शेयर बाजार अपनी खुशनुमा स्थिति को छिपाकर किसी निराशा का प्रदर्शन करना चाहता है? क्या निवेशकों को बजट से कोई ऐसी उम्मीद है, जिसे पूरा करने की दिशा में वे सक्रिय हो गए हैं या उन्हें कोई प्रतिकूल सूचना मिल गई है? शायद भारत में जो लोग पूंजी के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं, वे बढ़ते अमीर व गरीब की सूची सामने आने के बाद सक्रिय हुए हैं। दुनिया भर में ऐसे अमीर भी हैं, जो आगे बढ़कर बोल रहे हैं कि जब दुनिया मुसीबत में है, तब उसकी बेहतरी के लिए हम पर टैक्स लगा लीजिए। कोरोना के मुश्किल समय में भी भारत में चालीस से ज्यादा नए अरबपति पैदा हो गए हैं। मुश्किल समय में भी शेयर बाजार में पूंजी बढ़ने की वजह सामने आ चुकी है। शायद चंद पंूजीपतियों को लग रहा होगा कि आगामी बजट में उनको मिल रही कुछ रियायत भी छिनेगी और वे कोई नया आर्थिक पैकेज लेने में नाकाम होंगे। ऐसे में, शेयर बाजार का तनाव में आना स्वाभाविक है, लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है कि छोटे निवेशकों का सावधान रहना।
4.शहादत की ज्योति
बलिदानी स्मृतियों को गरिमा
पिछली आधी सदी से इंडिया गेट पर प्रज्वलित ‘अमर जवान ज्योति’ हर देशवासी को राष्ट्र की बलिदानी गाथा से जोड़ती रही है। अमर जवान ज्योति 26 जनवरी, 1972 को अस्तित्व में आई थी, जिसे वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद जवानों की स्मृति में प्रज्वलित किया गया था। वहीं 25 फरवरी, 2019 को इसके निकट ही राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन हुआ, जहां आजाद भारत में शहीद हुए पच्चीस हजार से अधिक जवानों के नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं, जिनकी याद में वहां भी अमर जवान ज्योति प्रज्वलित है। मोदी सरकार ने दोनों ज्योतियों के विलय के बारे में फैसला लिया था और देश के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जन्मशती को इस मौके के रूप में चुना। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया और ऐतिहासिक गलती सुधारने की बात कही। साथ उन असंख्य बलिदानी स्वतंत्रता सेनानियों का स्मरण किया जो त्याग और बलिदान के बावजूद चर्चाओं में न आ सके। दरअसल, इंडिया गेट 1921 में प्रथम विश्व युद्ध तथा तीसरे एंग्लो अफगान युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में बनाया गया था। सत्ता पक्ष के लोग जहां इसे साम्राज्यवादी ब्रिटिश सत्ता का प्रतीक मानते रहे हैं वहीं विपक्षी दलों का कहना है कि आजादी से पहले भारतीय सैनिकों के बलिदान को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। अतीत को लेकर एक समग्र दृष्टि की जरूरत है। बहरहाल, देश में एक समग्र राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की कमी जरूर पूरी हुई है जो देश के बहादुर शहीद सैनिकों के प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता का ही पर्याय है। इसका निर्माण भी नई दिल्ली में विकसित सेंट्रल विस्टा एवेन्यू में इंडिया गेट के पास ही किया गया है जहां अमर जवान ज्योति का विलय राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में प्रज्वलित ज्योति में हुआ है। निस्संदेह, कृतज्ञ राष्ट्र अपने शहीदों के बलिदान से कभी उऋण नहीं हो सकता है। उनके बलिदान की अखंड ज्योति हमेशा नई पीढ़ी को प्रेरणा देती रहेगी कि देश ने अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिये कितनी बड़ी कीमत चुकायी है।
बहरहाल, यह तार्किक ही है कि शहादत को समर्पित ज्योति को दिल्ली में एक ही स्थान पर रखा जाना चाहिए। हालांकि, इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति की अमिट स्मृतियां भारतीय जनमानस के दिलो-दिमाग में सदैव ही रही हैं। इस मार्ग से गुजरते लोगों का ध्यान बरबस इस ओर सम्मान से चला ही जाता था। वहीं सरकार व सेना का मानना रहा है कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक ही वह एकमात्र स्थान हो सकता है जहां शहीदों को गरिमामय सम्मान मिल सकता है। दूसरी ओर, इंडिया गेट क्षेत्र में छत्र के नीचे जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की होलोग्राम प्रतिमा लगायी गई है, वहां कभी इंग्लैंड के पूर्व राजा जॉर्ज पंचम की प्रतिमा हुआ करती थी। निस्संदेह स्वतंत्र भारत में उसका कोई स्थान नहीं हो सकता था। माना जा रहा है कि इस महत्वपूर्ण स्थान में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा का लगाया जाना, उनके अकथनीय योगदान का सम्मान ही है। विगत में सरकारों के अपने आदर्श नायक रहे हैं और उन्हीं के स्मारक नजर भी आते हैं, जिसके मूल में वैचारिक प्रतिबद्धताएं भी शामिल रही हैं। इसके बावजूद देशवासियों में आत्मसम्मान व गौरव का संचार करने वाले नायकों को उनका यथोचित सम्मान मिलना ही चाहिए जो कालांतर में आम नागरिकों में राष्ट्र के प्रति समर्पण व राष्ट्रसेवा का भाव ही जगाते हैं। शहादत की अमर ज्योति भी देशवासियों के दिलों में शहीदों के प्रति उत्कट आदर की अभिलाषा को ही जाग्रत करती है। वहीं स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमा देश की स्वतंत्रता की गौरवशाली लड़ाई का पुनर्स्मरण भी कराती है कि हमने आजादी बड़े संघर्ष व बलिदान से हासिल की थी। ऐसे में यदि ज्योति में ज्योति मिलने से राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की आभा में श्रीवृद्धि होती है तो यह बलिदानियों का कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा किया जाने वाला सम्मान ही कहा जायेगा। वहीं नेताजी की प्रतिमा लगने से इंडिया गेट को भी प्रतिष्ठा मिलेगी।