इस खंड में, हम अपने पाठकों / आकांक्षाओं को राष्ट्रीय दैनिक के चयनित संपादकीय संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। द हिंदू, द लाइवमिंट, द टाइम्सऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इकोनॉमिक टाइम्स, पीआईबी आदि। यह खंड सिविल सर्विसेज मेन्स (जीएस निबंध), पीसीएस, एचएएस मेन्स (जीएस ,निबंध) की आवश्यकता को पूरा करता है!
1.शहरों को कबायली बजट
हिमाचल में जनजातीय उपयोजना के तहत खर्च की एक नई मांग अब नगर निगमों के गठन को परिभाषित कर रही है। प्रदेश के धर्मशाला व पालमपुर नगर निगम अपनी राजनीतिक ऊर्जा में कबायली मंतव्य को सजाते हुए नए प्रश्न भी खड़े कर गए। देश के मात्र यही दो नगर निगम हैं जो जनजातीय समुदाय के लिए सीटें आरक्षित करते हैं। धर्मशाला में दो जबकि पालमपुर में एक सीट आरक्षित है। इतना ही नहीं धर्मशाला में चुने गए छह पार्षद सीधे कबायली वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। अब तक 1994 के नगर निकाय कानून के तहत रिकांगपिओ, केलांग, उदयपुर, काजा, सांगला, किलाड़, भरमौर व ताबो को साडा के तहत विकसित तथा संरक्षित करने की परिकल्पना तैयार हुई है, लेकिन ट्राइबल सब प्लान में इसके तहत कुछ विशेष नहीं हुआ है। इस वर्ष प्रदेश की प्रस्तावित जनजातीय उपयोजना 711 करोड़ की है और इसके तहत वर्गीकृत व्यय के कई विषय व क्षेत्र हैं, लेकिन इनका सीधा संबंध किसी ऐसे शहर के साथ नहीं है जहां कबायली मतदाताओं के लिए सीटों का आरक्षण हो। यह आश्चर्य का बिंदु है कि नगर निगम के चरित्र में कबायली चेहरा क्यों आरक्षित है और अगर यह जरूरी है, तो उपयोजना की राशि से धर्मशाला और पालमपुर निगमों के वित्तीय संसाधनों की पूर्ति तथा विकास के लिए विशेष बजट रखना होगा।
हिमाचल की 392126 कबायली आबादी के हिसाब से यह राज्य की कुल आबादी का 5.7 प्रतिशत हिस्सा है। दूसरे देश की कुल कबायली आबादी में हिमाचल की हिस्सेदारी नाममात्र .4 फीसदी आंकी गई है, जबकि राज्य की बजटीय व्यवस्था में इसे सबसे अधिक समर्थन मिला है। कबायली उपयोजना का सामाजिक, राजनीतिक व विकासात्मक दोहन स्पष्ट दिखाई देता है। प्रदेश भर में जनजातीय छात्रावासों के तहत काफी राशि व्यय हुई है और मौजूदा दौर में भी एनआईटी और हिमाचल विश्वविद्यालय में दो छात्रा होस्टल का निर्माण चल रहा है। यह दीगर है कि कुछ कबायली क्षेत्रों में ऐसी वित्तीय व बजटीय व्यवस्था का दुरुपयोग बढ़ा है। प्रदेश में करीब चार लाख कबायली जनता की सबसे बड़ी संख्या चंबा में 135550 जबकि कांगड़ा में 84564 लोग रहते हैं। इसके बाद किन्नौर में 48746, लाहुल-स्पीति में 25707, सोलन में 25645, कुल्लू में 16862 तथा शिमला में 8755 है। प्रदेश के कमोबेश हर जिला और यहां तक कि ऊना में भी 8601 जनजातीय संख्या मौजूद है। भले ही जनजातीय क्षेत्रों में किन्नौर, लाहुल-स्पीति, पांगी और भरमौर ही गिने जाते हों, लेकिन आबादी के आधार पर 405 ऐसे गांव चिन्हित हैं जहां कबायली आबादी सौ से अधिक है। इसी आधार पर धर्मशाला व पालमपुर नगर निगमों के बढ़ते दायरे ने कबायली आबादी के साथ बजटीय व्यवस्था के नए संबंध जोड़ लिए हैं। धर्मशाला के दायरे से छूटी कुछ अन्य पंचायतें अगर शहरी विस्तार में जुड़ती हैं, तो कम से कम एक और वार्ड एसटी के खाते बढ़ा देगा।
ऐसे में अब जबकि नगर निगमों में हार-जीत के प्रश्न पर राजनीति अपनी छाती पीट रही है, यह प्रश्न अहम हो जाता है कि विकास व शहरी आत्म निर्भरता के द्वार पर इस संभावना या अनिवार्यता को खंगाला जाए कि ट्राइबल सब प्लान का कितना हिस्सा इन दो शहरों को मिलना चाहिए। कम से कम शिक्षा, खेल, चिकित्सा तथा सांस्कृतिक गतिविधियों की मद में ट्राइबल सब प्लान से रास्ते पुख्ता होंगे। यहां धर्मशाला के महत्त्व में गद्दी संस्कृति के साथ-साथ जुड़े सामाजिक व आर्थिक विषयों पर एक व्यापक अध्ययन हो सकता है। शहर के सार्वजनिक पुस्तकालय में हर साल सैकड़ों कबायली छात्र अपनी उपस्थिति का नया मानचित्र खड़ा करते हैं, तो इसी तरह अब गद्दयाली गीत-संगीत से कांगड़ी परिदृश्य की नई सांस्कृतिक पहचान भी यहां से पनप रही है। शहर की आर्थिकी के विस्तार में कबायली मेहनत, जोश व रंगत का असर इस लिहाज से भी देखा जा सकता है कि सबसे अधिक रोजगार के अवसर इसी वर्ग को मिल रहे हैं। खासतौर पर पर्यटन क्षेत्र की मिलकीयत से परिवहन तक कबायली संख्या का उत्थान उल्लेखनीय रूप से दर्ज है। धर्मशाला नगर निगम के तहत महानगर की परिभाषा में अगर दो सीटें कबायली वर्ग के नाम आरक्षित हैं या इसी वर्ग के छह पार्षदों का चुना जाना कुल सत्रह सीटों में 35 प्रतिशत हिस्सेदारी बनती है, तो इस हिसाब से ट्राइबल सब प्लान का माकूल पैसा भी शहर को मिलना चाहिए।
- संप्रभुता में सेंध
अमरीकी नौसेना के एक समुद्री बेड़े ने भारतीय सीमा में गुपचुप ऑपरेशन किया। उसे सैन्य अभ्यास भी मान सकते हैं। अभ्यास के लिए भारत सरकार के संबद्ध विभाग की पूर्व अनुमति नहीं ली गई। सूचना तक विदेश और रक्षा मंत्रालयों को नहीं दी गई। क्या ऐसा ऑपरेशन या अभ्यास किसी अंतरराष्ट्रीय कानून की परिधि में आता है? क्या इसे भी दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी और दोस्ती का एक अध्याय माना जाए? क्या अमरीका में ‘वैश्विक दादागीरी’ का स्थायी भाव गहराता जा रहा है? क्या चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर अमरीका ने यह गारंटीशुदा मान लिया है कि वह भारत के समुद्री क्षेत्र में अतिक्रमण कर सकता है? बेशक अमरीका की नीयत और नीति में कोई खोट न हो, बेशक उसने ‘क्वाड’ के बुनियादी सिद्धांत का उल्लंघन न किया हो, लेकिन यह भारत की राष्ट्रीय संप्रभुता में सेंध है, लिहाजा चिंताजनक भी है। हमें विश्वास है कि भारत के विदेश और रक्षा मंत्रालयों के बड़े अधिकारियों ने अमरीका के बाइडेन प्रशासन के समकक्षी अधिकारियों को सावधान कर दिया होगा और प्यार से आपत्ति भी दर्ज कराई होगी! खुद अमरीकी नौसेना बेड़े ने माना है कि उसने भारत के ‘एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन’ में अभ्यास किया है। अमरीकी विज्ञप्ति स्पष्ट खुलासा करती है कि उसके नौसैनिक और समुद्री बेड़े पहले भी भारतीय सीमा में आते रहे हैं।
गौरतलब है कि किसी भी तटीय देश के ‘एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन’ की सीमा समुद्री तट से 200 नॉटिकल मील अर्थात् करीब 370 किलोमीटर की दूरी तक होती है। यह ज़ोन भारत के लक्षद्वीप के करीब है, जहां अमरीकी नौसेना बेड़े ने अभ्यास किया है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि अमरीकी अभ्यास के जरिए समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र समझौते और संधि पत्र का भी उल्लंघन किया गया है। यह कानून किसी भी अन्य देश को सैन्य अभ्यास, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में गतिविधि करने, महाद्वीपीय जल-सीमा में प्रवेश और खासकर हथियारों और विस्फोटकों वाले अभ्यास के लिए अधिकृत नहीं करता। यानी पूर्व अनुमति अपरिहार्य है। बेशक अमरीका हमारा मित्र-देश है, लिहाजा वह हमारे समुद्री क्षेत्र में अभ्यास कर सकता है। हिंद-प्रशांत सागर के और दक्षिण चीन सागर वाले क्षेत्र में भारत और अमरीका के समुद्री पोत सक्रिय रहे हैं, अभ्यास करते रहे हैं, लेकिन उनका मकसद तथा रणनीति कुछ और रही है। इस संदर्भ में अहम और संवेदनशील सवाल यह है कि अमरीका ने भारत सरकार से अनुमति क्यों नहीं ली? सूचना तक साझा करना भी जरूरी नहीं समझा। अमरीका ऐसे ऑपरेशन या अभ्यास को भारत सरकार से छिपाता क्यों रहा है? छिपाने का सवाल उठा है, तो उसमें संदेह का भाव भी निहित है। क्या ऐसा कुछ है, जो अमरीका अपने रणनीतिक मित्र से छिपाता रहा है? यदि अमरीका ने कुछ छिपाया है, तो यकीनन विशेषज्ञों का चिंतित होना स्वाभाविक है, लिहाजा ऐसी चिंता और सरोकार को अमरीका सरीखे रणनीतिक मित्र को सकारात्मक भाव से संबोधित भी करना चाहिए। बीते मार्च में ‘क्वाड’ के चारों सदस्य देशों-भारत, अमरीका, जापान और ऑस्टे्रलिया-के प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपति ने वर्चुअल रूप से संवाद किया था। अगला सम्मेलन अमरीका ही आयोजित करेगा। उस शिखर-संवाद में चीन के अतिरिक्त समुद्री क्षेत्र के सम्मान का मुद्दा भी छाया रहा।
व्यापक विमर्श किया गया। उसके बावजूद अमरीका ने ऐसा उल्लंघन किया है, तो भौंहें तनना स्वाभाविक है। गौरतलब है कि जब ऐसा ही अतिक्रमण और खतरा चीन की ओर से भारत के अंडेमान-निकोबार द्वीपसमूह के करीब पैदा किया गया था, तो हमने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी। वैसी प्रतिक्रिया भले ही भारत अमरीका के संदर्भ में न दे, लेकिन इतना दबाव बनाया जाना चाहिए कि अमरीका मित्रता की शालीनता और गरिमा न भूल सके और बदले में ऐसे ही शब्दों में स्पष्टीकरण दे, लेकिन उसमें भी अमरीका का अडि़यलपन झलक रहा है। अमरीका ने इसे अतिक्रमण या कानूनन उल्लंघन स्वीकार नहीं किया है, बल्कि कहा है कि भारत के समुद्री क्षेत्र संबंधी दावे ‘अत्यधिक’ हैं। अमरीका ने अपने नौसेना पोत द्वारा नौपरिवहन अधिकारों का उपयोग अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप किया है। उसे अमरीका अपने स्वतंत्र नौपरिवहन से जोड़ कर देख रहा है। अब इसका तार्किक जवाब क्या होना चाहिए, भारत सरकार के साउथ ब्लॉक में बैठे मंत्रियों और नौकरशाहों को तय करना चाहिए। इस मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
- वैक्सीन से जुड़े सवाल
दुनिया में लोगों का वैक्सीन के प्रति विश्वास कमोबेश जम गया है, लेकिन एक वैक्सीन ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका को लेकर इन दिनों ज्यादा चिंता जाहिर की जा रही है। इस वैक्सीन की वजह से अनेक लोगों के खून में थक्के बनने की शिकायत बढ़ रही है। यह असामान्य स्थिति है, जिससे तमाम वैक्सीन के प्रति आशंका में इजाफा हो सकता है। वैज्ञानिक इस कोशिश में लगे हैं कि जल्द से जल्द समाधान खोजकर इस महत्वपूर्ण और सबसे नामी वैक्सीन को निरापद बनाया जाए। हफ्तों तक जांच के बाद यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) ने 7 अप्रैल को घोषणा की है कि थक्के और वैक्सीन के बीच एक जुड़ाव की आशंका है। इसे बहुत दुर्लभ दुष्प्रभाव करार दिया जा रहा है। शायद वैक्सीन में कोई ऐसा तत्व है, जो रक्त को बाधित कर रहा है या उत्पादन प्रक्रिया में कोई कमी छूट जा रही है। इस नामी वैक्सीन का दुष्प्रभाव अगर मस्तिष्क या फेफड़ों में हो जाए, तो बहुत बड़ी समस्या पैदा हो जाती है। क्या यह दुष्प्रभाव केवल उन लोगों में हो रहा है, जो खून को पतला करने की खास दवा लेते हैं या कोई और कारण है, अनेक वैज्ञानिक व अस्पताल इस खोज में युद्ध स्तर पर लगे हैं।
एस्ट्राजेनेका को ज्यादा सावधानी और अध्ययन के लिए कहा गया है। गौर करने की बात है कि इस वैक्सीन से महिलाओं को ज्यादा परेशानी हो रही है। इसकी वजह का पता अभी नहीं लग रहा है। क्या 60 से कम उम्र के लोगों में परेशानी हो रही है? क्या दुनिया के कुछ ही देशों में दुष्प्रभाव हो रहा है? अकेले यूरोप में ही 22 अस्पताल वैक्सीन की इस कमी की पड़ताल में लगे हैं। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के फॉर्मूले से ही तैयार कोविशील्ड का भारत में प्रयोग अब तक बहुत सफल है और इससे किसी भी तरह का दुष्प्रभाव सामने नहीं आया है। शिकायतें यूरोपीय देशों और अमेरिका से आ रही हैं, लेकिन भारत में सीरम कंपनी जो कोविशील्ड वैक्सीन बना रही है, उसकी आपूर्ति आम तौर पर विकासशील देशों में हुई है और वहां से अभी तक शिकायत नहीं आई है। भारत सरकार ने बहुत सोचने-समझने के बाद यह कह दिया है कि भारत के टीकाकरण अभियान में कोविशील्ड का इस्तेमाल जारी रहेगा। पश्चिम में जो कंपनियां कोविशील्ड का निर्माण कर रही हैं, उन्हें भारत की सीरम कंपनी से अनुभव लेना चाहिए। जहां एक ओर वैक्सीन के दुष्प्रभाव को लेकर सवाल उठ रहे हैं, वहीं यह सवाल भी उठ रहा है कि दुनिया में क्या वैक्सीन की कमी होने लगी है। जैसे-जैसे टीकाकरण तेज हुआ है, वैसे-वैसे उत्पादन में कमी महसूस होने लगी है। दुनिया में पांच अरब विभिन्न टीकों का सालाना उत्पादन पहले होता था, लेकिन कोविड के टीकों के बाद कुल उत्पादन दोगुना हो गया है। अभी की क्षमता के अनुसार, वर्ष 2021 में दुनिया में 9.5 अरब कोविड वैक्सीन खुराक का उत्पादन हो सकेगा, जबकि जरूरत लगभग 12 अरब खुराक की है। भारत में जब टीकाकरण अभियान तेज हो रहा है, तब प्रतिदिन 40 लाख से ज्यादा वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी, लेकिन मोटे तौर पर उत्पादन अभी प्रतिदिन 25 लाख से ज्यादा नहीं है। तात्कालिक कमी से घबराना नहीं चाहिए। अब समय आ गया है, देश में दूसरी कंपनियों को वैक्सीन बनाने की इजाजत दी जाए, ताकि देश और दुनिया में वैक्सीन की कोई कमी न हो।
- आहत लोकतंत्र
कूचबिहार की हिंसा से उपजे सवाल
चुनावी संग्राम का रणक्षेत्र बने पश्चिम बंगाल में चौथे चरण के मतदान के बीच कूचबिहार में हुई हिंसा में चार लोगों की मौत दुखद ही कही जायेगी, जिसको लेकर टीएमसी और बीजेपी आमने-सामने हैं। एक-दूसरे पर आरोप लगाकर चुनाव आयोग से कार्रवाई करने की मांग की गई है। वहीं इस मुद्दे पर राजनीति रोकने के लिये चुनाव आयोग ने किसी भी राजनेता के 72 घंटे तक इलाके में जाने पर रोक लगा दी है। भाजपा जहां इसे दीदी की बौखलाहट बता रही है, वहीं टीएमसी केंद्र पर सुरक्षा बलों के दुरुपयोग की बात कर रही है। आरोप है कि कूचबिहार जिले के सीतलकूची इलाके के माथाभंगा में सीआईएसएफ के जवानों का स्थानीय लोगों द्वारा घेराव करने के बाद राइफल छीनने की कोशिश की गई। इससे पहले वोटिंग लाइन में खड़े पहली बार मतदान करने जा रहे युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। भाजपा ने उसे अपना कार्यकर्ता बताया था। भाजपा के कूचबिहार से सांसद बूथ लूटने का प्रयास करने का आरोप टीएमसी कार्यकर्ताओं पर लगाते हुए कहते हैं कि केंद्रीय बलों ने आत्मरक्षा में गोली चलाई। वहीं टीएमसी ने इस बाबत चुनाव आयोग से शिकायत करके अपने कार्यकर्ताओं के मारे जाने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर भाजपा कह रही है कि पार्टी के पक्ष में जनसमर्थन देखकर टीएमसी में बौखलाहट है। आयोग ने मतदान केंद्र 126 का मतदान स्थगित किया है।
यह विडंबना ही है कि पिछले चार चरण के मतदान में वोटिंग तो खूब हुई लेकिन ममता सरकार के दस साल के कार्यकाल में विकास और रोजगार के मुद्दों की चर्चा होने के बजाय अनर्गल बयानबाजी और टीका-टिप्पणी खूब हुई। राइटर्स बिल्डिंग पर कब्जे की होड़ में इस चुनाव में तेजी से ध्रुवीकरण हुआ है। ममता बनर्जी से भी चुनाव आयोग ने अल्पसंख्यकों के बाबत दिये बयान के बाबत पूछताछ की है। वहीं नंदीग्राम के भाजपा प्रत्याशी पर भी सांप्रदायिक भाषण देने का आरोप लगा है। दरअसल, कूचबिहार में हिंसा का पुराना इतिहास रहा है। गत छह अप्रैल को भी टीएमसी व भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हुई थीं। सात अप्रैल को भाजपा के दिलीप घोष पर हमला हुआ था और आरोप टीएमसी पर लगा था। बताते हैं कि कूचबिहार में चुनाव से छह माह पूर्व राजनीतिक हिंसा में दर्जनभर मौतें हुई हैं, जिसके चलते स्थानीय लोगों में भय का माहौल व्याप्त है। दरअसल, पिछली बार कूचबिहार क्षेत्र के नौ विधानसभा क्षेत्रों में से टीएमसी ने आठ पर जीत हासिल की थी। लेकिन हाल के आक्रामक चुनाव प्रचार के जरिये कार्यकर्ताओं को जोड़कर इलाके में भाजपा ने अपनी बढ़त हासिल की है। ऐसे में टीएमसी की हताशा हिंसा के रूप में सामने आ रही है। इलाके में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कवायद भी तेज हुई है। यह इलाका पिचहत्तर फीसदी हिंदू बहुल है, जिसमें भाजपा सेंध लगा चुकी है। वह ममता पर लगातार मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगा अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करती रही है।